Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्दशी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त-गुरु अस्त (पश्चिम), शिव चतुर्दशी
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

मानवता के मसीहा आचार्य श्री तुलसी

हमें फॉलो करें मानवता के मसीहा आचार्य श्री तुलसी
-गौतम कोठार
बीसवीं सदी के आध्यात्मिक क्षितिज पर प्रमुखता से उभरने वाला जो नाम है, वह है आचार्य तुलसी। देश की ज्वलंत राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में उनके अप्रतिम योगदान रहे हैं।

सुप्रसिद्ध जैनाचार्य होते हुए भी उनके कार्यक्रम संप्रदाय की सीमा रेखाओं से सदा ऊपर रहें। उनका दृष्टिकोण असाम्प्रदायिक था।

जब लोग उनका परिचय पूछते तब वे स्वयं अपना परिचय इस तरह से देते थे- 'मैं सबसे पहले एक मानव हूँ। फिर मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूँ, फिर में एक साधनाशील जैन मुनि हूँ और उसके बाद तेरापंथ संप्रदाय का आचार्य हूँ'।

आचार्य तुलसी ने संप्रदाय से भी अधिक महत्व मानवता को दिया। मानवता के उत्थान के लिए उन्होंने विविध प्रकार के कार्यक्रम प्रारंभ किए थे। इसलिए वे जैन आचार्य की अपेक्षा एक मानवतावादी संत के रूप में अधिक जाने गए।

जैन आचार्य तो वे थे ही अपने कार्यों से वे जनाचार्य भी बन गए थे। जैन, हिन्दू, मुस्लिम, सिख या अन्य संप्रदायों को मानने वाले लोग भी उनमें आस्था रखते थे।

2 मार्च 1949 को आचार्य श्री तुलसी ने देश की जनता के चरित्र के विकास के लिए 'अणुव्रत' आंदोलन का प्रारंभ किया था। देश में नैतिक मूल्यों के तेजी से होते हुए ह्रास को देखकर वे बड़े चिंतित थे।

उन्होंने यह महसूस किया था कि इस नैतिक पतन को अगर नहीं रोका गया तो राष्ट्र भीतर से खोखला (शक्तिहीन) हो जाएगा। अणुव्रत आंदोलन का प्रारंभ कर आचार्य तुलसी ने देश में नैतिक विकास का शंखनाद किया।

विद्यार्थी, शिक्षक, राज्य कर्मचारी, व्यापारी, राजनीतिज्ञ आदि सभी वर्ग के लोगों के लिए अनिवार्य रूप से पालन करने योग्य एक आचार संहिता का निर्माण कर प्रस्तुत किया गया।

असल में यह विशुद्ध रूप से एक मानवीय आचार संहिता है, जिसे किसी भी धर्म संप्रदाय को मानने वाले लोग अपना सकते हैं और एक अच्छा इंसान बन सकते हैं।

आचार्य श्री तुलसी सर्वधर्म समभाव के प्रतीक पुरुष थे। साम्प्रदायिक कट्टरता को उन्होंने कभी उचित नहीं माना। उनका कहना था कि धर्म का स्थान सम्प्रदाय से ऊपर है।

उन्होंने सभी धर्मगुरुओं को भी साम्प्रदायिक आग्रहों को छोड़कर सद्भाव का वातावरण बनाने के लिए प्रेरित किया, सभी धर्म, सभी जाति एवं सभी वर्ग के लोगों को एक मंच पर लाने में वे कामयाब हुए थे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi