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संत में शिरोमणि संत रविदास

मन चंगा तो कठौती में गंगा

हमें फॉलो करें संत में शिरोमणि संत रविदास
PTI


'मन चंगा तो कठौती में गंगा' यह वाक्य रविदास ने कहे थे। हिंदू धर्म कहता है कि आप जात-पाँत से बड़े या छोटे नहीं होते। मन, वचन और कर्म से बड़े या छोटे होते हैं। संत शिरोमणि रविदास जात से मोची थे, लेकिन मन, कर्म और वचन से ब्राह्मण।

जो ब्रह्म को जानने में उत्सुक है वही ब्राह्मण।


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कार्य ही ध्यान है: -

संत कवि रविदास कबीर के गुरु भाई थे। गुरु भाई अर्थात दोनों के गुरु स्वामी रामानंद थे। लगभग छह सौ साल पूर्व काशी में उनका जन्म हुआ था। चर्मकार कुल में जन्म लेने के कारण जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था। इस व्यवसाय को ही उन्होंने ध्यान विधि बना डाला। कार्य कैसा भी हो यदि आप उसे ही परमात्मा का ध्यान बना लें तो मोक्ष आसान हो जाता है।

रविदासजी अपना काम पूरी लगन और ध्यान से करते थे। इस काम में उन्हें इतना आनंद मिलता था कि वे बिना मूल्य लिए ही जूते भेंट कर देते थे। मानो किसी परमात्मा के लिए जूते बनाए हैं तो फिर मूल्य क्या। मूल्य मोक्ष से कम नहीं।


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मन चंगा तो कठौती में गंगा :-
उनसे एक बार किसी ने गंगा स्नान करने के लिए चलने को कहा तो उन्होंने कहा कि नहीं, मुझे आज ही किसी को जूते बनाकर देना है। यदि नहीं दे पाया तो वचन भंग हो जाएगा। रविदास के इस तरह के उच्च आदर्श और उनकी वाणी, भक्ति एवं अलौकिक शक्तियों से प्रभावित होकर अनेक राजा-रानियों, साधुओं तथा विद्वज्जनों ने उनको सम्मान दिया है।

उनकी इस साधुता को देखकर संत कबीर ने कहा था कि साधु में रविदास संत हैं, सुपात्र ऋषि सो मानियाँ।

रविदास राम और कृष्ण भक्त परम्परा के कवि और संत माने जाते हैं। उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं जिन पर कई धुनों में भजन बने हैं। जैसे, प्रभुजी तुम चंदन हम पानी- इस प्रसिद्ध भजन को सभी जानते हैं।


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