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उन्हें एक राष्ट्र के दो झंडे स्वीकार नहीं थे

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस

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राजेन्द्र श्रीवास्तव

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बंगाल ने कितने ही क्रांतिकारियों को जन्म दिया है। स्व. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी इसी पावन बंगभूमि से पैदा हुए थे। 6 जुलाई, 1901 को उनका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे। अभी केवल जीवन के आधे ही क्षण व्यतीत हो पाए थे कि हमारी भारतीय संस्कृति के नक्षत्र अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ. मुखर्जी की 23 जून, 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। यह क्या वास्तविक मौत थी या कोई साजिश? बरसों बाद भी ये राज, राज ही रहा। डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रतिभा से समाज को चमत्कृत कर दिया था। महानता के सभी गुण उन्हें विरासत में मिले थे।

22 वर्ष की आयु में आपने एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसी वर्ष आपका विवाह भी सुधादेवी से हुआ। बाद में उनसे आपको दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं। आप 24 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। आपका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहाँ पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने आपको सम्मानित सदस्य बनाया। वहाँ से लौटने के बाद आप वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए।

आपने कर्मक्षेत्र के रूप में 1939 से राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। आपने गाँधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। एक बार आपने कहा-"वह दिन दूर नहीं जब गाँधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।" आपने नेहरूजी और गाँधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। यही कारण था कि आपको संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा।

अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में आपने वित्त मंत्रालय का काम संभाला। आपने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। आपके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।

1950 में भारत की दशा दयनीय थी। इससे आपके मन को गहरा आघात लगा। आपसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी आपको स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय के लिए आपने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए आपने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।

अटलबिहारी वाजपेयी (तत्कालीन विदेश मंत्री), वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन और टेकचंद आदि को लेकर आपने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा प्रवेश के बाद आपको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 40 दिन तक आप जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में आपकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई।

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