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कॉलेज से राजपथ तक

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रावी तिवारी

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स्कूल के दिनों में मैंने एक सपना देखा था कि मैं भी एनसीसी की यूनिफॉर्म पहनूँ लेकिन मेरे स्कूल में एनसीसी नहीं होने से तब यह सपना पूरा नहीं हो सका। १२ वीं तक की पढ़ाई साइंस से पूरी करके जब मैं अच्छे प्रतिशत के साथ कॉलेज पहुँची तो मुझे एनसीसी में प्रवेश मिल गया। तब इस बात का पता चला कि पढ़ाई में अच्छा स्कोर करने से दूसरी जगह भी फायदे मिलते ही हैं। धीरे-धीरे मुझे यह अनुभव हुआ कि ब्राइट स्टूडेंट्स को सभी टीचर पसंद करते हैं..।

सीनियर विंग में एनसीसी कैडेट बनना मेरी लिए बहुत बड़ी खुशी की बात थी। यूनिफॉर्म पहने हुए परेड में भाग लेना एक रोमांचक काम था। परेड और पढ़ाई के बीच समय जल्दी निकल गया और आ गया एनुअल कैम्प। यह मेरा घर से दूर कैम्प में रहने का पहला अनुभव था। घर के आराम छोड़कर कैम्प के तंबुओं की टफ स्थितियों में रहना वाकई बहुत कुछ सिखाता है। यहाँ मम्मी-पापा नहीं होते जो हमारा ध्यान रखें और अपने कपड़े-बर्तन धोने से लेकर आधी रात को कैंप की चौकीदारी करने जैसे सारे काम हमें खुद करने पड़ते हैं।

जब इस पहले फर्स्ट एमपी गर्ल्स बटालियन कैम्प में मुझे सांस्कृतिक कार्यक्रम के संचालन का मौका मिला तो मैं खुशी से फूली नहीं समाई। कार्यक्रम के सफल संचालन के कारण मुझे मास्टर ऑफ सेरेमनी पुरस्कार मिला। यह बहुत अच्छा अनुभव था। आखिर, बहुत सारे कैडेट्स के बीच जब आपको पुरस्कार मिलता है तो गर्व तो महसूस होता ही है।

एनसीसी के सेकेंड ईयर में मैंने तय किया कि इस बार मुझे आरडीसी (रिपब्लिक-डे कैम्प) के लिए जाना है। आरडीसी के लिए सिलेक्ट होना हर कैडेट का सपना होता है। राजपथ पर होने वाली परेड में शामिल होना, जीवन के सबसे रोमांचक और गौरवपूर्ण पलों में से एक होता है। पहले साल में मैंने जिस तरह का प्रदर्शन किया था उसी वजह से दूसरे साल मुझे मध्यप्रदेश से नेशनल इंटीग्रेशन कैंप में दिल्ली जाने के लिए चुना गया। इस कैम्प में मैंने अँगरेजी निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

वहाँ से आई तो पता चला कि आरडीसी के लिए सिलेक्शन होना है। मैं तैयारी में जुट गई। आरडीसी के लिए इंदौर, रतलाम और रायपुर के तीनों कैम्प में मेरा सिलेक्शन हो गया। इस दौरान आरडीसी सिलेक्शन कैम्प में जो छह महीने मैंने बिताए वे जिंदगी के कभी न भूलने वाले अनुभव रहे।

मुझे याद है जब मैं आरडीसी के लिए रायपुर में थी तो उन्हीं दिनों दिवाली आई। दिवाली पर अपने घर से दूर होना हमें बहुत बुरा लग रहा था।

गुस्सा यह देखकर भी आया कि दिवाली के दिन भी हमारे खाने के मेनू में कोई बदलाव नहीं था। बल्कि वही कद्‍दू की सब्जी और कत्थई छींटों वाली रोटियाँ। यह देखकर आँसू ‍भी निकल आए। लेकिन फिर दिवाली की रात को कमांडिंग ऑफिसर सर ने हम सभी के लिए मिठाई और पटाखों का इंतजाम किया और तब हमने दिवाली मनाई। उस दीपावली की याद अब भी ताजा है।

मुझे याद है कि आरडीसी के लिए हम 31 दिसंबर को दिल्ली पहुँचे थे। दिल्ली में हम केंट एरिया में रुके थे। यहाँ हमें वीआईपी दर्जा मिला। खाना-पीना, मौज-मस्ती और अलग-अलग राज्यों के कैडेट्‍स से मिलना.... सब कुछ अद्‍भुत था। पूरा मीडिया यहाँ हमें कवर करने पहुँचा था। यह देखकर खुद पर और भी गर्व हुआ। आडीसी सिलेक्शन के लिए हमने बहुत मेहनत की। कई बार सुबह उठकर दौड़ लगाने और परेड करने पर बहुत गुस्सा भी आता था पर जब यहाँ पहुँचे तो पिछली सारी कठिनाइयों को हम भूल चुके थे। रास्ते में आई बाधाओं के सारे काँटे यहाँ पहुँचकर फूल नजर आ रहे थे।

इस कैंप में हमें सेनाध्यक्षों तथा देश के शीर्ष नेताओं से मिलने तथा बातचीत करने का मौका भी मिला। वहीं 26 जनवरी पर यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के अंतर्गत विदेशों से आए स्टूडेंट्‍स को हमने दिल्ली और उसके आसपास की जगहों पर घुमाया। दिल्ली की सर्दी में आरडीसी के दिन फटाफट भाँप बनकर उड़ गए।

दिल्ली से जब मैं लौटकर आई तो मुझे लगा कि मुझमें बहुत बदलाव आ गया है। मैंने पाया कि अब मैं कठिन मुश्किलों को भी हँसते हुए पार कर सकती हूँ। एनसीसी के कैंप मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। स्कूल से कॉलेज तक की क्लास में मैंने जितना कुछ सीखा उससे कहीं ज्यादा मुझे एनसीसी के दो सालों में सीखने को मिला। आत्मविश्वास, कम्युनिकेशन स्किल्स और कठिन परिस्थितियों को जीतना मैंने एनसीसी के दिन याद आते हैं। अगर मैं एनसीसी कैडेट बनने का सपना नहीं देखती तो मैं इतने अच्छे अनुभव कैसे जुटा पाती?

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