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डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस

हमें फॉलो करें डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस
जन्म : 10 अक्टूबर 1910
मृत्यु : 9 दिसंबर 1942

एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस के जिक्र के बिना भारत-चीन संबंधों की चर्चा अधूरी है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान घायल चीनी सैनिकों की सेवा कर इंसानियत, मैत्री और भाईचारे की मिसाल कायम करने वाले भारत माँ के इस सपूत को आज भी वहाँ की जनता श्रद्धा और प्रेम से याद करती है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1937 में जब जापान ने चीन पर हमला किया तो चीन के तत्कालीन जनरल छू ते ने भारत में आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभा रही कांग्रेस पार्टी के नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू से घायल सैनिकों के इलाज में सहायता के लिए चिकित्सक भेजने का अनुरोध किया। भारत स्वयं भी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और यहाँ की जनता भी आजादी की हवा में साँस लेने के लिए छटपटा रही थी। इसके बावजूद नेहरूजी ने पड़ोसी मदद की गुहार अनसुनी नहीं की और पाँच चिकित्सक इंडियन मेडिकल ऐड मिशन टू चायना के तहत वहाँ भेजे। इसमें डॉ. कोटनिस मुख्य हैं, क्योंकि जब बाकी डॉक्टर्स स्वदेश लौट आए तब भी वे पड़ोसी देश में मोर्चा संभाले रहे थे और लगभग पाँच वर्ष तक पड़ोसियों की जी-जान से सेवा की। यही कारण है कि चीन के सैनिकों के दिल उन्होंने अपनी सेवा से जीत लिए।

इसी दौरान डॉ. कोटनिस ने चीन की गुओ क्विंग लांग से विवाह किया और वे यहाँ की जनता के दिलों में पूरी तरह से बस गए। श्रीमती गुओ से उनकी पहली मुलाकात डॉ. नार्मन बैथ्यून के मकबरे के उद्घाटन के दौरान हुई और वे उनसे काफी प्रभावित हुईं। उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि डॉ. कोटनिस चीनी भाषा बोल सकते थे और कुछ हद तक लिख भी सकते थे, जबकि श्रीमती गुओ नर्स थीं और युद्ध के विनाश के उस माहौल में भी उन दोनों का प्यार परवान चढ़ा और वे दोनों दिसंबर 1941 में विवाह बंधन में बंध गए। दोनों का जीवन उस समय खुशियों से भर गया, जब उनके यहाँं एक पुत्र ने जन्म लिया। उसका नाम उन्होंने बड़े प्यार से 'यिनहुआ' रखा। इसका शब्दिक अर्थ था 'यिन' यानी भारत और 'हुआ' यानी चीन, और तभी से वे न सिर्फ भारत बल्कि चीनी नागरिकों के दिलों पर राज करने लगे।

अपने त्याग और समर्पण से दोनों देशों की मैत्री की मिसाल बने डॉ. कोटनिस की मिरगी के कारण अल्पायु (32) में ही मौत हो गई। श्रीमती गुओ क्विंग लांग के मन में भारत के प्रति अटूट प्रेम हैं वे कई बार डॉ. कोटनिस के परिवारजनों से मिलने के लिए भारत आईं। इसलिए डॉ. कोटनिस की याद में उन्होंने 'माई लाइफ विद कोटनिस' भी लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा है कि भारत और भारत के लोग बहुत अच्छे हैं शायद यह सब वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। जिसके कारण भारतीयों की अलग ही पहचान है।

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