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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

हमें फॉलो करें नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
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जन्म : 23 जनवरी 1897
मृत्यु : 17 अगस्त 1945

नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओरिसा के कुट्टक गाँव में हुआ। उनके पिता जानकीनाथ बोस वकील थे और उनकी माता का नाम प्रभावती था। 'किसी राष्ट्र के लिए स्वाधीनता सर्वोपरि है।' इस महान मूलमंत्र को शैशव और नवयुवाओं की नसों में प्रवाहित करने, तरुणों की सोई आत्मा को जगाकर देशव्यापी आंदोलन देने और युवा वर्ग की शौर्य शक्ति उद्भासित कर, राष्ट्र के युवकों के लिए आजादी को आत्म-प्रतिष्ठा का प्रश्न बना देने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने स्वाधीनता महासंग्राम के महायज्ञ में प्रमुख पुरोहित की भूमिका निभाई।

नेताजी ने आत्मविश्वास, भाव प्रवणता, कल्पनाशीलता और नवजागरण के बल पर युवाओं में राष्ट्र के प्रति मुक्ति इतिहास की रचना का मंगल शंखनाद किया। मनुष्य इस संसार में एक निश्चित, निहित उद्देश्य की प्राप्ति, किसी संदेश को प्रचारित करने के लिए जन्म लेता है। जिसकी जितनी शक्ति, आकांक्षा और क्षमता है वह उसी के अनुरूप अपना कर्मक्षेत्र निर्धारित करता है।

नेताजी के लिए स्वाधीनता 'जीवन-मरण' का प्रश्न बन गया था। बस यही श्रद्धा, यही आत्मविश्वास जिसमें ध्वनित हो वही व्यक्ति वास्तविक सृजक है। नेताजी ने पूर्ण स्वाधीनता को राष्ट्र के युवाओं के सामने एक 'मिशन' के रूप में प्रस्तुत किया। नेताजी ने युवाओं से आह्वान किया कि जो इस मिशन में आस्था रखता है वह सच्चा भारतवासी है। बस उनके इसी आह्वान पर ध्वजा उठाए आजादी के दीवानों की आजाद हिन्द फौज बन गई।
  सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओरिसा के कुट्टक गाँव में हुआ। उनके पिता जानकीनाथ और माता का नाम प्रभावती था। 'किसी राष्ट्र के लिए स्वाधीनता सर्वोपरि है।' इस मूलमंत्र को युवाओं की नसों में प्रवाहित करने वाले नेताजी ने प्रमुख भूमिका निभाई।      


उन्होंने अपने भाषण में कहा था विचार व्यक्ति को कार्य करने के लिए धरातल प्रदान करता है। उन्नतिशील, शक्तिशाली जाति और पीढ़ी की उत्पत्ति के लिए हमें बेहतर विचार वाले पथ का आवलम्बन करना होगा, क्योंकि जब विचार महान, साहसपूर्ण और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत होंगे तभी हमारा संदेश अंतिम व्यक्ति तक पहुँचेगा।

आज युवा वर्ग में विचारों की कमी नहीं है। लेकिन इस विचार जगत में क्रांति के लिए एक ऐसे आदर्श को सामने रखना ही होगा जो विद्युत की भाँति हमारी शक्ति, आदर्श और कार्ययोजना को मूर्तरूप दे सके। नेताजी ने युवाओं में स्वाधीनता का अर्थ केवल राष्ट्रीयबंधन से मुक्ति नहीं बल्कि आर्थिक समानता, जाति, भेद, सामाजिक अविचार का निराकरण, सांप्रदायिक संकीर्णता त्यागने का विचार मंत्र भी दिया।

नेताजी के विचार विश्वव्यापी थे। वे समग्र मानव समाज को उदार बनाने के लिए प्रत्येक जाति को विकसित बनाना चाहते थे। उनका स्पष्ट मानना था जो जाति उन्नति करना नहीं चाहती, विश्व रंगमंच पर विशिष्टता पाना नहीं चाहती, उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं।

नेताजी की आशा के अनुरूप इस जरा जीर्ण होते देश का यौवन लौटाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आज दृढ़ संकल्प लेना होगा। बढ़ते जातिवाद, गिरते मूल्यों और टूटती परंपराओं, सभ्यताओं को सहेजना होगा। एक व्यापक राष्ट्रीय संगठन की स्थापना करनी होगी, अच्छे और बुरे की प्रचलित धारणा को बदलना होगा।

नेताजी के इन शब्दों को हमें पुनः दोहराना और स्वीकारना होगा कि 'स्मरण रखें, अपनी समवेत चेष्टा द्वारा हमें भारत में नए शक्ति संपन्न राष्ट्र का निर्माण करना है। पाश्चात्य सभ्यता हमारे समाज में गहराई तक घुसकर धन-जन का संहार कर रही है। हमारा व्यवसाय-वाणिज्य, धर्म-कर्म, शिल्पकला नष्टप्राय हो रहे हैं। इसलिए जीवन के सभी क्षेत्रों में पुनः मृत संजीवनी का संचार करना है। यह संजीवनी कौन लाएगा?

ऐसे स्वाधीनता महासंग्राम के महायज्ञ में प्रमुख पुरोहित की भूमिका निभाने वाले नेताजी की मृत्यु 17 अगस्त 1945 को बैंकॉक से टोकियो जा रहे विमान दुर्घटना में हुई। लेकिन क्या वर्तमान में मोबाइल, चेटिंग सर्फिंग और एसएमएस में आत्ममुग्ध युवा नेताजी की प्रेरणा पुकार सुनने को तैयार हैं।

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