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बाल गंगाधर तिलक जयंती

23 जुलाई : तिलक जयंती पर विशेष

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- शरदचंद्पेंढारक

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तिलजी ने जब वकालत की परीक्षा पास की, तो उनके मित्रों की धारणा थी कि वे या तो सरकारी नौकरी करेंगे अथवा वकालत चालू करेंगे। उन्होंने जब इस संबंध में चर्चा की तो वे बोले - 'मैं पैसे का लोभी नहीं हूँ। पैसे के लिए मैं सरकार का गुलाम बनना पसंद नहीं करता। रही वकालत की बात, तो मुझे यह पेशा भी पसंद नहीं। मैं तो 'सा विद्या या विमुक्तये' (विद्या वह जो मुक्ति देवे) इस सूक्ति को मानता हूँ। जो विद्या मनुष्य को असत्याचरण की ओर प्रवृत्त करती है, उसे मैं विद्या ही नहीं मानता।'

इस पर मित्र चुप रहे, किंतु कुछ दिनों पश्चात जब उन्हें मालूम हुआ कि तिलक जी 30 रुपए मासिक वेतन पर प्राथमिक शाला के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं, तो उन्हें बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उनके एक घनिष्ठतम मित्र से न रहा गया और वह बोल ही उठा - आखिर तुमने गुरुजी का पेशा ही क्यों चुना? तुम भलीभाँति जानते हो कि आजकल शिक्षकों की आर्थिक स्थिति कैसी है? अरे, तुम जब मरोगे, तो दाह-संस्कार के लिए, तुम्हारे घर में लकड़ियाँ तक न मिलेंगी।'

तिलक जी ने हँसकर जवाब दिया - 'मेरे दाह-संस्कार की चिंता मैं क्यों करूँ हमारी नगरपालिका क्यों बनी हुई है? मेरी चिंता उसे होगी वही सामग्री जुटाएगी और उससे मेरी चिता जलेगी।' यह सुनते ही वह मित्र अवाक् रह गया और उससे कुछ न कहते बना।

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