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चीन में मृत्युदंड के नियमों पर चली कैंची

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बीजिंग , सोमवार, 10 जनवरी 2011 (16:31 IST)
प्रति वर्ष हजारों लोगों को मृत्युदंड देने के आरोपों से घिरे चीन ने शीर्ष अदालत से निचली अदालतों द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखने से पहले सबूतों खासकर डरा धमकाकर लिए गए कबूलनामों पर ज्यादा सावधानी से गौर करने का निर्देश दिया है।

एक न्यायिक अधिकारी ने यहाँ बताया कि मृत्युदंड में कमी लाने के लिए सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट (एसपीसी) ने ऐसे मामलों में मौत की सजा को खारिज कर देगा जहाँ अवैध तरीके से बयान या गवाही ली गई हैं।

इससे पहले एसपीसी को मौत की सजा की समीक्षा करते वक्त यदि लगता था कि कोई बयान या गवाही अवैध तरीके से ली गयी है तो पूरक जाँच या दूसरी गवाही का आदेश देती थी।

चाइना नेशनल रेडिया के अनुसार एसपीसी के उपाध्यक्ष झांग जून ने कहा, ‘लेकिन इस साल से ऐसे मामले सीधे ही खारिज कर दिए जाएँगे और इससे स्थानीय अदालतों और अन्य न्यायिक शाखा पर ज्यादा दबाव पड़ेगा।’

झांग ने कहा, ‘डरा धमकाकर कबूल करवाने की बात सही मायनो में है और वकील भी कभी-कभी अदालत में कहते हैं कि कबूलनामे के लिए उत्पीड़न का इस्तेमाल किया गया लेकिन अदालतें बमुश्किल इस पर विचार करती हैं कि ऐसा हुआ। सभी झूठे मामलों में इस तरह की बात सामने आई है।’

सबसे चर्चित मामला हेनान प्रांत के झाओ जुओहाई का है जो 11 वर्ष बाद जेल से छूट गया क्योंकि उसपर जिस व्यक्ति की हत्या का आरोप था वह जिंदा निकला।

झांग ने कहा कि वर्ष 2007 में जब से शीर्ष अदालत को मृत्युदंड की समीक्षा और उनके अनुमोदन का अधिकार दिया गया तब मृत्युदंड में कमी आई है। हालाँकि उन्होंने यह नहीं बताया कि हर वर्ष कितने लोगों को मौत की नींद सुला दी जाती है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार चीन ने वर्ष 2009 में हजारों लोगों को मौत की सजा दी थी लेकिन इस संगठन ने ऐसे लोगों के बारे में सटीक आँकड़े नहीं दिए। (भाषा)

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