योग और अध्यात्म का जो स्वरूप आज पूरे विश्व में है, उसकी परिकल्पना महर्षि महेश योगी को 50 साल पहले कर चुके थे। आज देश में गुरुओं, उपदेशकों और योग व जीवन की कला के बारे में ज्ञान देने वाले कई हैं, लेकिन साठ के दशक में महेश योगी ने इसे प्रचारित और प्रसारित करने का अपने दम पर बीडा़ उठाया और तमाम आलोचनाओं के बाद भी उस पर डटे रहे।
अपने उद्देश्यों में वह कहाँ तक सफल रहे, इस बात का पता पूरे विश्व की योग और आध्यात्मिकता के प्रति बढ़ती रुचि से पता चलता है। यह बात भी सच है कि योग गुरुओं की बढ़ती संख्या के पीछे भी महर्षि महेश योगी का प्रभाव है। उनका प्रभाव ऐसा था कि वर्तमान में पूरे विश्व में उनके करीब 50 लाख अनुयायी हैं।
ट्रांसडेंटल मेडिटेशन : महर्षि महेश योगी ने ‘स्पंदन से उत्तमोत्म ध्यान’ (ट्रांसडेंटल मेडिटेशन- टीएम) को पहली बार विश्व पटल पर लाया। 1960 का यह वह दौर था जब दुनिया नशे और ड्रग की आदी होती जा रही थी। सिगार और धुएँ के कश में डूबे हिप्पियों और युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयासों के लिए पहली बार महर्षि महेश योगी का नाम विश्व पटल पर आया।
ऐसा नहीं था कि यह महर्षि का कोई पहला कार्यक्रम रहा हो। 1969 के पहले भी भारत और अन्य देशों में ध्यान, योग और साधना से आंतरिक बुराइयों पर विजय पाने की दीक्षा दे रहे थे।
जबलपुर से व्लोड्राप : महर्षि महेश योगी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुआ था। हालाँकि उनकी जन्मतिथि के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है लेकिन माना जाता है कि 1918 में उनका जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम महेश प्रसाद वर्मा था।
उनके पिता वन विभाग में कार्यरत थे। महेश योगी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई जबलपुर में पूरी करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने गणित और भौतिकशास्त्र में डिग्री। इलाहाबाद में ही उनका संपर्क स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज (ब्रह्मानंद सरस्वती गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं) से हुआ।
1941 में गुरुदेव के ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य बनने महेश योगी ने उनके साथ करीब 10 साल बिताया। उन्होंने उत्तरकाशी और हिमालय में कठोर योग साधना की। इस दौरान गुरुदेव के सानिध्य में उन्होंने अद्वैत के बारे में जानकारी ग्रहण की। 1955 में गुरुदेव के निधन के बाद उन्होंने दक्षिण भारत का भ्रमण किया और गुरुदेव के संदेश को प्रसारित करने लगे।
इसी क्रम में 1958 में महेश योगी ने विश्वस्तरीय आध्यात्मिक प्रसार अभियान का आरंभ किया। इस प्रसार कार्यक्रम का उद्देश्य मानवता के लिए ध्यान और साधना को प्रचारित करना था।
अभियान के प्रसार के लिए उन्होंने विश्व के कई देशों वर्मा, मलाया, हाँगकाँग, होनुलूलु का भ्रमण किया। उन्होंने अपना सबसे ज्यादा वक्त अमेरिका में बिताया। पाँच फरवरी को उनका निधन नींद के दौरान नीदरलैंड (हॉलैंड) के शहर व्लोड्राप में हो गया।
विज्ञान और अध्यात्म : महर्षि महेश योगी ने 1963 में अपनी पहली पुस्तक अस्तित्व का विज्ञान और जीने की कला लिखी। 1965 में भगवद गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अपने योग के प्रसार के दौरान इस बात का दावा किया कि ट्रांसडेंटल मेडिटेशन से तनाव और निराशा दूर हो सकती है, जिससे लोगों का जीवन भी सुखमय होता है।
हालाँकि उनके ध्यान के दौरान हवा में तैरने जैसे बातों की काफी आलोचना हुई, लेकिन ध्यान के चमत्कारिक प्रभाव को सभी ने स्वीकार किया। महेश योगी का मानना था कि सिद्ध लोगों के सामूहिक ध्यान करने से एक विशेष वातावरण का निर्माण होता है, जो कि आध्यात्मिक प्रभाव क्षेत्र का निर्माण करता है। इस क्षेत्र के विस्तार के अपराध और बुराइयों पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। महर्षि महेश योगी का यह भी दावा था कि इसका असर स्टॉक मार्केट पर भी होता है।
आलोचना भी सिर-आँखों पर : भारत के अद्वैत और योग के बारे में पहले तो विदेशी लोगों को विश्वास नहीं हुआ और महर्षि महेश योगी की आलोचना भी हुई। योग के समय हवा में तैरने की बात का बतंगढ बनाया गया, लेकिन बाद में लोगों ने इसे महसूस करने की बात भी कही।
1968 में अमेरिका का तत्कालीन मशहूर बैंड बीटल्स ने भारत में उनका दौरा किया। इसके बाद इस बैंड के एक गाने- यू कांट फुल एव्हररीवन, को भी योगी से जोड़ा गया। हालाँकि इस ग्रुप को योगी ने ड्रग छोड़ने के लिए प्रेरित किया था।
योग व ध्यान का साम्राज्य : महर्षि को अपने सिद्धांतों पर अटूट विश्वास था और वह उसके विस्तार से पूरे विश्व को लाभ पहुँचाना चाहते थे। 1971 में उन्होंने लॉस एंजिल्स में महर्षि अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके साथ ही कई करोड़ों का अपना साम्राज्य स्थापित किया।
महर्षि का सिद्धांत का योग की दीक्षा और अत्युत्म ध्यान पर आधारित है, जो शुद्ध चेतना की स्थिति की ओर ले जाने का सरलतम तरीका बताता है। दान और अपने शुल्के बदौलत उन्होंने विश्व के कई शहरों में विश्वविद्यालय, मेडिटेशन पार्क खोले। योगी का ध्येय अपने सामूहिक ध्यान से विश्व में शांति का विस्तार करना और गरीबी का नाश करना था। अपने उद्देश्य की सफलता के लिए उन्होंने कई वाणिज्यिक संस्थान भी खोले।
वैदिक सिद्धांतों को बढ़ावा : वैदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए महर्षि विद्या मंदिर की स्थापना की गई। भारत में इसके करीब 200 शाखाएँ हैं। इसके अलावा महर्षि इंस्टीट्युट का एमबीए, एमसीए, वैदिक विश्वविद्यालय, महर्षि गंधर्ववेद विश्व विद्यापीठ, महर्षि आयुर्वेद विश्वविद्यालय, महर्षि इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी और महर्षि वेद-विज्ञान विश्वविद्यापीठ हैं।
कार्यक्रम : अत्युत्म ध्यान (ट्रांसडेंटल मेडिटेशन), महर्षि वेदिक टेक्नोलॉजी ऑफ कांशियसनेस, महर्षि स्थापत्य वेद, सिद्धी कार्यक्रम, महर्षि ग्लोबल एडमिनिस्ट्रेशन थ्रू नेचुरल लॉ, महर्षि ज्योतिष और योग कार्यक्रम, महर्षि वाणिज्य विकास कार्यक्रम।
जाने के बाद भी प्रासंगिक रहेंगे : अपराध, तनाव और हिंसा के बढ़ते दौर में महर्षि तब भी प्रासंगिक थे और उनके चले जाने के बाद भी प्रासंगिक रहेंगे। उनकी मानवता के लिए शांति, मेलजोल और सामंजस्य के सिद्धांत को विश्व ने सिर आँखों पर लिया और ध्यान के माध्यम से उसे प्रसारित किया।