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संबंधों को साझेदारी में बदलना होगा-राष्ट्रपति

- जयदीप कर्णिक, जेनेवा से

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भारत जहां गणित के नए सिद्धांतों, ज्यामिती और शून्य के आविष्कार के साथ अग्रणी रहा है वहीं नवोन्मेष, वैज्ञानिक तकनीक और सृजन के क्षेत्र में स्विट्‍जरलैंड की भी अपनी पहचान है। नवोन्मेष को लेकर यही आग्रह और समानता दोनों देशों को और करीब लाती है। इसीलिए हमारी कोशिश है कि अब हम नीतिगत साझेदारी से आगे बढ़कर विशेषाधिकार साझेदारी की ओर आगे बढ़ें।

ये बातें राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने यहां रविवार को स्विट्‍जरलैंड स्थित भारतवंशियों को संबोधित करते हुए कही। वे स्विट्‍जरलैंड में भारत की राजदूत सुश्री चित्रा नारायणन द्वारा भारतीय दल और यहां रहने वाले भारतवंशियों के स्वागत भोज में शामिल हुईं, उन्होंने कहा कि यहां के भारतवंशियों ने अपने योगदान और कर्मठता से भारत का मान बढ़ाया है।

उन्होंने शनिवार की सर्न यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि वहां भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान को देखकर वे काफी प्रभावित हुईं। उन्होंने कहा की भारत और स्विट्‍जरलैंड के बीच शिक्षा के क्षेत्र में भी आदान-प्रदान बढ़ाए जाने की जरूरत है। ये खुशी की बात है कि कुछ भारतीय छात्र यहां विभिन्न विषयों में अध्ययन कर रहे हैं। इसी तारतम्य में मैं लॉसान विश्वविद्यालय जाकर वहां पढ़ाई के लिए 'टैगोर चेयर' का उदघाटन करूंगी। ये इसलिए भी मौजूं होगा क्योंकि हम इस साल गुरुदेव की 150वीं जन्मशती मना रहे हैं और वे खुद यहां स्विट्‍जरलैंड आकर काफी प्रभावित हुए थे।

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भारत की राजदूत चित्रा नारायणन ने सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उल्लेखनीय हैं कि सुश्री नारायणन भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय केआर नारायणन की सुपुत्री हैं।

गांधीजी को श्रद्धांजलि : इससे पहले राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने जेनेवा स्थित एरियाना पार्क में स्थित गांधीजी की प्रतिमा पर श्रद्धापुष्प अर्पित कर उन्हें आदरांजलि दी। एरियाना पार्क के 'पीस एवेन्यू' में गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण के दौरान स्कूली बच्चों ने 'रघुपति राघव राजा राम' भजन सुनाया।

राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी उनके साथ भजन गाया। इस प्रतिमा की स्थापना 2007 में भारत और स्विट्‍जरलैंड के बीच अगस्त 1948 में की गई मित्रता संधि के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर की गई थी। गांधीजी को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि आज सारी दुनिया गांधीजी को याद करते हुए विश्व अहिंसा दिवस मना रही है। गांधीजी ने न केवल अहिंसा का संदेश दिया बल्कि उसे पूरी उम्र जी कर भी दिखाया।

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