Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(द्वादशी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण द्वादशी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-प्रदोष व्रत
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

ग्वालियर के विभिन्न नाम

हमें फॉलो करें ग्वालियर के विभिन्न नाम
वर्तमान में ग्वालियर नाम का संबंध गालव ऋषि की पुण्य भूमि से लगाया जाता है, जो केवल एक भ्रम है। वास्तव में ग्वालियर से गालव ऋषि का कोई संबंध नहीं।

महाभारत से पूर्व ग्वालियर नगर और क्षेत्र का प्राचीनतम नाम गोपराष्ट्र मिलता है। पहले यह गोपराष्ट्र चेदि जनपद के अंतर्गत था। कालांतर में यह स्वतंत्र जनपद हो गया है। उस समय जनपद का अर्थ राष्ट्र के रूप में प्रयोग होने लगा।

इसके चारों ओर भादानक, सूरसेन चेदि, निषध, तोमर आदि राष्ट्र हो गए। ग्वालियर का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में गोवर्धनपुरम्‌, मानसिंह तोमर (1489-1510 ई.) के शिलालेख में गोवर्धनगिरि सन्‌ 525 ई. के मातृचेट शिलालेख में गोपाह्य के नाम से मिलता है।

ग्वालियर के लिए प्रेम और श्रद्धा के वशीभूत होकर अनेक नामों एवं विशेषणों का प्रयोग किया जाता रहा। गिहिरकुल के राज्य के पंद्रहवें वर्ष (सन्‌ 527 ई.) में यहाँ के गढ़ को गोपमूधर, दसवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहारों के शिलालेख में गोपाद्रि तथा गोपागिरि, रत्पनाल कच्छपघात के लगभग 1115 ई. के शिलालेख में गोपाद्रि तथा गोपागिरि, रत्नपाल कच्छपघात के लगभग 1115 ई. के शिलालेख में गोपक्षेत्र विक्रम संवत्‌ 1150 ई. के शिलालेख में गोपाद्रि तथा अनेक शिलालेखों में गोपाचल, गोपशैल तथा गोपपर्वत वि.सं. 1161 के शिलालेख में गोपलकेरि, ग्वालियर खेड़ा कहा गया है।

अपभ्रंश भाषा में कवियों ने इस दुर्ग को गोपालगिरि, गोपगिरि, गोव्वागिरि कहा है। हिंदी में सबसे पहले सन्‌ 1489 में कवि मानिक ने ग्वालियर संज्ञा का प्रयोग किया है। तुर्क इतिहासकारों ने गालेवार या गलियूर लिखा है।

मराठी में ग्वाल्हेर कहते हैं। कश्मीर के सुल्तान नेतुल आवेदीन के राजकवि जीवराज ने गोपालपुर के नाम से संबोधित किया है। इस नाममाला की विशेषता यह है कि इसके सभी मानकों में गोपाचल गढ़ को केंद्र माना है। ग्वालियर नगर और क्षेत्र उसी के अंग हैं।

भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने सं. 1740 में रचि रविव्रत कथा में ग्वालियर को गढ़ गोपाचल लिखा है- गढ़गोपाचल नगर भलो शुभ शानो।

साथ ही अनेक जैन ग्रंथ प्रशस्तियों में एवं जैन प्रतिमा प्रशस्तियों में गोपाचल दुर्ग, गोपाद्रौ, गोयलगढ़, गोपाचल आदि नामों का अधिकतम उल्लेख मिलता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi