Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(नवमी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण नवमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-पंचक प्रारंभ दिन 11.26 से
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

भक्तामर स्तोत्र का महत्व

श्री मानतुंगाचार्य द्वारा रचित अति विश्रुत भक्तामर स्तोत्र

हमें फॉलो करें भक्तामर स्तोत्र का महत्व
WDWD
जैन परम्परा में अति विश्रुत भक्तामर स्तोत्र के रचयिता हैं श्री मानतुंगाचार्य ! इनका जन्म वाराणसी में 'धनदेव' श्रेष्ठि के यहाँ हुआ था। इन्होंने अजितसूरि के सामीप्य में दीक्षा ली। गुरु के पास में अनेक चमत्कारिक विद्याएँ उन्हें प्राप्त हुईं। आचार्य बने। अपने समय के प्रभाविक आचार्य हुए।

धारा नगरी में राजा भोज राज्य कर रहे थे। उस समय धर्मावलंबी अपने धर्म का चमत्कार बता रहे थे। तब महाराजा भोज ने श्री मानतुंगाचार्य से आग्रह किया, आप हमें चमत्कार बताएँ। आचार्य मौन हो गए। तब राजा ने अड़तालीस तालों की एक श्रृंखला में उन्हें बंद कर दिया।

मानतुंगाचार्य ने उस समय आदिनाथ प्रभु की स्तुति प्रारंभ की। स्तुति में लीन हो गए, ज्यों-ज्यों श्लोक बनाकर वे बोलते गए, त्यों-त्यों ताले टूटते गए। सभी ने इसे बड़ा आश्चर्य माना। इस आदिनाथ-स्तोत्र का नाम भक्तामर स्तोत्र पड़ा, जो सारे जैन समाज में बहुत प्रभावशाली माना जाता है तथा अत्यंत श्रद्धायुक्त पढ़ा जाता है।

साधना-विधि- भक्तामर स्तोत्र पढ़ने का सूर्योदय का समय सबसे उत्तम है। वर्षभर निरंतर पढ़ना शुरू करना हो तो श्रावण, भादवा, कार्तिक, पौष, अगहन या माघ में करें। तिथि पूर्णा, नंदा और जया हो, रिक्ता न हो। शुक्ल पक्ष हो। उस दिन उपवास रखें या एकासन करें। ब्रह्मचर्य से रहें।

भक्तामर के काव्यों का जाप एक माला के रूप में प्रतिदिन प्रातःकाल के समय करना चाहिए। यह भक्तामर स्तोत्र महान प्रभावशाली है, सब प्रकार से आनंद मंगल करने वाला है। (पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके पाठ करना उपयुक्त है।)

भक्तामर स्तोत्
यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली एवं अपूर्व आत्म-प्रसन्नता देने वाला है। इस स्तोत्र की गाथाओं में गुंफित शब्दों का संयोजक इतना तो अद्भुत है कि उस शब्दोच्चार से प्रकट होने वाली ध्वनि के परमाणु वातावरण को आंदोलित करते हुए चौतरफा फैल जाते हैं। हालाँकि अनेक चमत्कारों से भरपूर कहानियाँ- किंवदंतियाँ इस स्तोत्र के आसपास मँडराती हैं... गूँथी गई हैं...।

एक बात तो निश्चित है कि इस स्तोत्र में... भक्तामर की गाथाओं में कुछ ऐसा अनोखा तत्व छुपा हुआ है... कि सदियाँ बीत जाने पर भी उसका प्रभाव अविकल है... अविच्छिन्न है। चूँकि यह शाश्वत सत्य है। पूरी आस्था, निष्ठा एवं समर्पण के भावालोक में इस स्तोत्र का गान जब होता है, तब असीम आनंद की अनुभूति में अस्तित्व झूम उठता है... नाच उठता है।

कुछ सूचनाएँ- भूलिएगा नही

* प्रत्येक गाथा के साथ दिए गए ऋद्धि-मंत्र प्राचीन हस्तप्रत पर आधारित हैं। इनकी सत्यता के बारे में निश्चितता होते हुए भी इनका प्रयोग मंत्रसिद्ध गुरुवर्य के आम्नायपूर्वक हो, यह अत्यंत जरूरी है।

* भक्तामर स्तोत्र के पाठ के लिए देहशुद्धि, वस्त्रशुद्धि, स्थानशुद्धि एवं चैतसिक स्वस्थता साहजिक तौर पर अपेक्षित है।

* महिलाओं को इस स्तोत्र के पठन के बारे में विशेष सावधानी बरतना आवश्यक है।

* उपासन का उत्साह भी विधि-निषेधों से नियंत्रित रहे, यह उपयुक्त है। उपासना आशातना तक न जा पहुँचे, वरन्‌ आराधना में सम्मिलित हो, इसका ध्यान रखें।

* भक्तामर-स्तोत्र का पाठ लयबद्ध-मधुर-मंजुल एवं समूह स्वर में सुबह के समय यदि किया जाए तो ज्यादा प्रभावप्रद बनता है।

त्रुटि एवं क्षति के लिए क्षमायाचना।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi