अकबर के पिता हुमायूं अपने पुस्तकालय में थे। हुमायूं पुस्तकालय से उतर ही रहे थे कि सीढ़ियों पर लड़खड़ाए और गिर पड़ें। उन्हें सख्त चोट आई। कई दिनों तक वे मृत्यु से जूझते रहे। अंत में उनके प्राण-पखेरू उड़ गए।
हुमायूं का वेश पहनकर एक व्यक्ति झरोखे पर बिठाया जाता था कि बादशाह की अकाल की मृत्यु की खबर फैलने से गड़बड़ी न फैल जाए।
अकबर अमृतसर के निकट कलानौर में थे। जल्दी-जल्दी में वहीं 14 फरवरी 1556 को शुभचिंतकों ने अकबर की ताजपोशी की, फिर वे दिल्ली आए। इस प्रकार तेरह वर्ष से तनिक ही अधिक उम्र में अकबर पर मुगल साम्राज्य का भार आ पड़ा। वस्तुतः उस समय मुगल साम्राज्य नाममात्र का था। जितने क्षेत्र पर स्वयं अकबर का अधिकार था, वही उसके अधीन माना जा सकता है।