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मजेदार कहानी : अकल की दुकान

- स्मृति आदित्य

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एक था रौनक। जैसा नाम वैसा रूप। अकल में भी उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता था। एक दिन उसने घर के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा- 'यहां अकल बिकती है।'

उसका घर बीच बाजार में था। हर आने-जाने वाला वहां से जरूर गुजरता था। हर कोई बोर्ड देखता, हंसना और आगे बढ़ जाता। रौनक को विश्वास था कि उसकी दुकान एक दिन जरूर चलेगी।

एक दिन एक अमीर महाजन का बेटा वहां से गुजरा। दुकान देखकर उससे रहा नहीं गया। उसने अंदर जाकर रौनक से पूछा- 'यहां कैसी अकल मिलती है और उसकी कीमत क्या है? '

उसने कहा- 'यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम इस पर कितना पैसा खर्च कर सकते हो।'

गंपू ने जेब से एक रुपया निकालकर पूछा- 'इस रुपए के बदले कौन-सी अकल मिलेगी और कितनी?'

'भई, एक रुपए की अकल से तुम एक लाख रुपया बचा सकते हो।'

गंपू ने एक रुपया दे दिया। बदले में रौनक ने एक कागज पर लिखकर दिया- 'जहां दो आदमी लड़-झगड़ रहे हों, वहां खड़े रहना बेवकूफी है।'

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गंपू घर पहुंचा और उसने अपने पिता को कागज दिखाया। कंजूस पिता ने कागज पढ़ा तो वह गुस्से से आगबबूला हो गया। गंपू को कोसते हुए वह पहुंचा अकल की दुकान। कागज की पर्ची रौनक के सामने फेंकते हुए चिल्लाया- 'वह रुपया लौटा दो, जो मेरे बेटे ने तुम्हें दिया था।'

रौनक ने कहा- 'ठीक है, लौटा देता हूं। लेकिन शर्त यह है कि तुम्हारा बेटा मेरी सलाह पर कभी अमल नहीं करेगा।'

कंजूस महाजन के वादा करने पर रौनक ने रुपया वापस कर दिया।

उस नगर के राजा की दो रानियां थीं। एक दिन राजा अपनी रानियों के साथ जौहरी बाजार से गुजरा। दोनों रानियों को हीरों का एक हार पसंद आ गया। दोनों ने सोचा- 'महल पहुंचकर अपनी दासी को भेजकर हार मंगवा लेंगी।' संयोग से दोनों दा‍सियां एक ही समय पर हार लेने पहुंचीं। बड़ी रानी की दासी बोली- 'मैं बड़ी रानी की सेवा करती हूं इसलिए हार मैं लेकर जाऊंगी'

दूसरी बोली- 'पर राजा तो छोटी रानी को ज्यादा प्यार करते हैं, इसलिए हार पर मेरा हक है।'

गंपू उसी दुकान के पास खड़ा था। उसने दासियों को लड़ते हुए देखा। दोनों दासियों ने कहा- 'वे अपनी रानियों से शिकायत करेंगी।' जब बिना फैसले के वे दोनों जा रही थीं तब उन्होंने गंपू को देखा। वे बोलीं- यहां जो कुछ हुआ तुम उसके गवाह रहना।'

दासियों ने रानी से और रानियों ने राजा से शिकायत की। राजा ने दासियों की खबर ली। दासियों ने कहा- 'गंपू से पूछ लो वह वहीं पर मौजूद था।'

राजा ने कहा- 'बुलाओ गंपू को गवाही के लिए, कल ही झगड़े का निपटारा होगा।'

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इधर गंपू हैरान, पिता परेशान। ‍आखिर दोनों पहुंचे अकल की दुकान। माफी मांगी और मदद भी।

रौनक ने कहा- 'मदद तो मैं कर दूं पर अब जो मैं अकल दूंगा, उसकी ‍कीमत है पांच हजार रुपए।

मरता क्या न करता? कंजूस पिता के कुढ़ते हुए दिए पांच हजार। रौनक ने अकल दी कि गवाही के समय गंपू पागलपन का नाटक करें और दासियों के विरुद्ध कुछ न कहे।

अगले दिन गंपू पहुंचा दरबार में। करने लगा पागलों जैसी हरकतें। राजा ने उसे वापस भेज दिया और कहा- 'पागल की गवाही पर भरोसा नहीं कर सकते।'

गवाही के अभाव में राजा ने आदेश दिया- 'दोनों रानी अपनी दासियों को सजा दें, क्योंकि यह पता लगाना बहुत ही मुश्किल है कि झगड़ा किसने शुरू किया।'

बड़ी रानी तो बड़ी खुश हुई। छोटी को बहुत गुस्सा आया।

गंपू को पता चला कि छोटी रानी उससे नाराज हैं तो वह फिर अपनी सुरक्षा के लिए परेशान हो गया। फिर पहुंचा अकल की दुकान।

रौनक ने कहा- 'इस बार अकल की कीमत दस हजार रुपए।'

पैसे लेकर रौनक बोला- 'एक ही रास्ता है, तुम वह हार खरीद कर छोटी रानी को उपहार में दे दो।'

गंपू सकते में आ गया। बोला- 'अरे ऐसा कैसे हो सकता है? उसकी कीमत तो एक लाख रुपए है।'

रौनक बोला- 'कहा था ना उस दिन जब तुम पहली बार आए थे कि एक रुपए की अकल से तुम एक लाख रुपए बचा सकते हो।'

इधर गंपू को हार खरीद कर भेंट करना पड़ा, उधर अकल की दुकान चल निकली। कंजूस महाजन सिर पीटकर रह गया।

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