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सच्चे का बोलबाला

एक यहूदी ‍लोककथा

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बहुत समय पहले की बात है। एक बार किसी भिखारी का एक पूरा दिन बुरा गुजरा। दिनभर में लोगों से उसे कुछ नहीं मिला। शाम को दुखी मन से वह घर लौट रहा था कि उसकी नजर रास्ते में पड़ी एक थैली पर गई। भिखारी ने थैली को उठाकर देखा तो उसमें सोने के सिक्के थे। भिखारी ने गिनकर देखा तो थैली में पूरे 100 सिक्के निकले।

सोने के सिक्कों को पाकर भिखारी ने सोचा कि ईश्वर ने उसकी मदद के लिए यह उपकार किया है और अब उसकी गरीबी दूर हो जाएगी, पर अगले ही पल उसे खयाल आया कि इस थैली के मालिक को अपने सिक्कों के गुम हो जाने का कितना दुख हो रहा होगा। यह बात मन में आते ही उस ईमानदार भिखारी ने थैली असली मालिक को लौटाने का निश्चय कर लिया।

भिखारी कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक व्यापारी रोता-बिलखता बाजार में दिखा। व्यापारी बहुत परेशान दिख रहा था और बहुत कुछ ढूँढ रहा था। भिखारी ने उसे कहते सुना कि उसकी सिक्कों की थैली गुम हो गई है और पता बताने वाले को वह अच्‍छा इनाम देगा। व्यापारी को परेशान देख भिखारी उसके पास गया और उससे उसकी परेशानी का कारण पूछा। व्यापारी बोला कि उसकी कमर में बँधी हुई सोने के सिक्कों की थैली कहीं गिर गई है और इसलिए वह बहुत परेशान है। अगर थैली नहीं मिली तो वह बर्बाद हो जाएगा।

यह सुनकर भिखारी ने अपने पास से थैली निकालकर व्यापारी के हाथ में रख दी और कहा कि कहीं यह आपकी थैली तो नहीं? व्यापारी थैली पाकर खुशी से उछल पड़ा और बोला - यही तो है। उसने तुरंत थैली के सारे सिक्के गिनकर देखे और अपने रास्ते जाने लगा।

भिखारी ने व्यापारी को याद दिलाया कि आपने कहा था कि आप थैली का पता बताने वाले को कुछ इनाम भी देंगे। व्यापारी लालची था और उसने रुखे स्वर में जवाब दिया - कैसा इनाम? मेरी थैली में 200 सिक्के थे और अब इसमें केवल 100 सिक्के रह गए हैं। तुमने पहले ही 100 सिक्के निकाल लिए हैं। तुम्हें तो सजा मिलनी चाहिए। भिखारी ने कहा कि तुम लालची आदमी हो और मैं तुम्हारे खिलाफ अदालत में जाऊँगा। व्यापारी ने कहा - मैं किसी अदालत से नहीं डरता।

अगले दिन भिखारी अदालत पहुँच गया। व्यापारी को भी बुलाया गया। व्यापारी अदालत में उपस्थित हुआ। न्यायाधीश ने पूरा किस्सा सुना और उन्हें कुछ-कुछ अंदाजा हो गया कि कौन सच्चा है और कौन झूठा। उन्होंने व्यापारी से पूछा - क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि तुम्हारी थैली में 200 सिक्के थे? व्यापारी बोला - जी हुजूर, एकदम पक्का। न्यायाधीश ने भिखारी से पूछा - और तुम्हें कितने सिक्कों से भरी हुई थैली मिली? भिखारी - हुजूर, मुझे जो थैली मिली उसमें तो केवल 100 ही सिक्के थे।

न्यायाधीश ने भिखारी से कहा - इसका मतलब है कि तुम्हें जो थैली मिली वह इस व्यापारी की नहीं है क्योंकि इनकी थैली में तो 200 सिक्के थे ‍जबकि तुम्हें मिली थैली में 100 ही सिक्के थे। इसलिए व्यापारी के पास जो थैली है उस पर तुम्हारा अधिकार है।
न्यायाधीश ने भिखारी से आगे कहा - अगर तुम्हें इस थैली का असली मालिक मिल जाए तो उसे यह थैली लौटा देना वरना इन सिक्कों का उपयोग तुम अपने लिए कर सकते हो। व्यापारी के पास बोलने को कुछ भी नहीं बचा था।

इस तरह व्यापारी को उसके लालच और बुरी नीयत का फल मिल गया और भिखारी को उसकी अच्छाई और ईमानदारी का।

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