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एकाएक खत्म नहीं होगा प्रोत्साहन पैकेज

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नई दिल्ली , शनिवार, 5 दिसंबर 2009 (17:43 IST)
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने कहा है कि नरम मौद्रिक नीति को एक झटके में समाप्त नहीं किया जा सकता और यह धीरे धीरे किया जाना चाहिए।

गोकर्ण ने शनिवार को संवाददाताओं से कहा कि दूसरी तिमाही के आश्चर्यजनक 7.9 प्रतिशत की वृद्धि दर के आँकड़े मौद्रिक नीति को तय करने का एकमात्र कारण नहीं होने चाहिए। मुद्रास्फीति भी खाद्य पदार्थों के मूल्यों तथा विनिर्मित उत्पादों के बीच भिन्न-भिन्न संकेत दे रहे हैं।

फिक्की की संगोष्ठी के मौके पर गोकर्ण ने कहा‘जब आप प्रोत्साहनों से बाहर निकलने की रणनीति की बात करते हैं, आपको इसे एक धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिए, एक बार में होने वाली प्रक्रिया के रूप में नहीं। वृद्धि दर के आँकड़े इसका सिर्फ एक कारण हो सकते हैं।’

यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि नवंबर के तीसरे सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति 17 प्रतिशत के आँकड़े को पार कर गई, जबकि अक्तूबर में कुल मुद्रास्फीति सिर्फ 1.34 प्रतिशत थी।

गोकर्ण ने कहा‘यहाँ आपको काफी विभिन्नता देखने को मिल रही है। यह कहना उचित नहीं होगा कि हम सिर्फ 17 प्रतिशत को देख रहे हैं 1.34 फीसद को नहीं।’

गोकर्ण ने इस बात पर सहमति जताई कि केंद्रीय बैंक का ध्यान अब सिर्फ आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने पर ही नहीं टिका है, बल्कि अब उसका ध्यान आर्थिक विस्तार तथा महँगाई को रोकने के लिए संतुलन पर है।

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक वृद्धि प्रभावित न हो और साथ ही मुद्रास्फीतिक दबाव भी नियंत्रण से बाहर नहीं होने पाए।

पिछले साल सितंबर में अमेरिका में लीमन ब्रदर्स के ढहने के बाद से शुरू हुए वित्तीय संकट के बाद आरबीआई ने बाजार में तरलता बढ़ाने के लिए कई उपाय किए थे। अक्तूबर में मौद्रिक नीति की समीक्षा के समय पहले बार आरबीआई ने इन उपायों को वापस लेने का सांकेतिक इशारा किया था।

गोकर्ण ने यह भी कहा कि दूसरी तिमाही के बेहतर आँकड़ों के बाद चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाया जा सकता है। जब उनसे पूछा गया कि क्या आरबीआई आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाएगा, उन्होंने कहा यह संभव है। (भाषा)

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