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ओबामा की आर्थिक नीतियों पर उठेंगे सवाल

हमें फॉलो करें ओबामा की आर्थिक नीतियों पर उठेंगे सवाल
वाशिंगटन , शुक्रवार, 27 मार्च 2009 (19:00 IST)
दुनिया के 20 प्रमुख औद्योगिक और विकासशील देशों के आगामी 2 अप्रैल को लदंन में आयोजित हो रहे शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की आर्थिक नीतियों पर कई सवाल उठ सकते हैं।

राष्ट्रपति पद संभालने के बाद पहली बार किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने जा रहे ओबामा की वित्तीय नीतियों पर सम्मेलन में काफी ठंडी प्रतिक्रिया आ सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि सदस्य देश आर्थिक मंदी की उद्‍गम स्थली बने अमेरिका की नीतियों को लेकर कुछ सख्त राय दे सकते हैं।

विश्व स्तर पर आई आर्थिक मंदी की चुनौतियों से निबटने के उपायों पर चर्चा के लिए बुलाए गए इस सम्मेलन के पूर्व ही यूरोपीय देश यह साफ कर चुके हैं कि वह ओबामा प्रशासन के संकट ग्रस्त परिसंपत्तियों की खरीद के नुस्खे पर आमराय नहीं रखते और इसकी जगह ओबामा पर कुछ सख्त वित्तीय नियम लागू करने का दबाव डाल सकते हैं।

सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनैशनल स्टडीज के आर्थिक विशेषज्ञ रेगिनाल्ड डेल का कहना है कि इस बात पर गौर किया जाना जरूरी है कि अमेरिका में आई मंदी के कारण विश्व अर्थव्यवस्था का नेतृत्व उसके हाथों से छिन सकता है।

डेल के मुताबिक चीन और अन्य देशों की ओर से विदेशी मुद्रा भंडार के लिए सबसे मानक मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर के स्थान पर किसी अन्य वैकल्पिक मुद्रा की माँग इस बात का संकेत है कि अमेरिकी डॉलर की साख गिर रही है।

ऐसे में जी 20 सम्मेलन में ओबामा को यह सिद्ध करना होगा कि उनकी आर्थिक नीतियाँ समय के सर्वथा अनूकूल ही नहीं बल्कि सर्वोत्तम भी हैं। हालाँकि अमेरिका का करीबी मित्र ब्रिटेन ओबामा की नीतियों से सहमति रखता है लेकिन जर्मनी और फ्रांस आर्थिक स्थिति दुरूस्त करने के लिए (खर्च को बढ़ावा) देने की ओबामा की नीति से सहमत नहीं हैं।

खुद ओबामा प्रशासन भी इस बात को लेकर चिंता में है कि राहत पैकेज लाने की उसकी नीतियाँ घरेलू स्तर पर सफल होने के बावजूद यदि अन्य मुल्कों में सफल नहीं हुई तो विश्व अर्थव्यवस्था की हालत क्या होगी।

इसके बावजूद आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि जी 20 सम्मेलन में सदस्य देश ऐसी किसी व्यवस्था और नीति पर आम राय बनाने की जीतोड़ कोशिश करेंगे जो विश्व को आर्थिक मंदी के गहराते संकट से उबार सके।

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