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महँगाई पर रिजर्व बैंक की चिंता बरकरार

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नई दिल्ली , सोमवार, 2 मई 2011 (20:34 IST)
रिजर्व बैंक महँगाई दर को लेकर चिंतित है और उसका कहना है कि अभी चालू वित्तवर्ष की पहली छमाही, यानी अगस्त-सितंबर 2011 तक अर्थव्यवस्था पर ऊँची मुद्रास्फीति का दबाव बना रह सकता है।

सोमवार को जारी इन अनुमानों के बीच केन्द्रीय बैंक ने अपनी प्रमुख नीतिगत ब्याज दरों में एक बार फिर वृद्धि के संकेत दे दिए हैं ताकि मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसा जा सके। वर्ष 2011-12 की सालाना ऋण एवं मौद्रिक नीति घोषित करने की पूर्व संध्या पर रिजर्व बैंक की यहाँ जारी ‘वृहत आर्थिक और मौद्रिक घटनाक्रम’ रिपोर्ट में कहा गया है अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपभोक्ता वस्तुओं, खासतौर से कच्चे तेल के ऊँचे दाम के मद्देनजर इस साल अभी महँगाई के दबाव से निजात मिलने वाली नहीं है। बैंक का कहना है कि वित्तवर्ष की पहली छमाही में मुद्रास्फीति के ऊँचा बने रहने की आशंका है।

रपट के अनुसार वर्ष के उत्तरार्ध में मुद्रास्फीति कुछ नीचे आएगी लेकिन फिर भी सामान्य स्तर से ऊपर ही रहेगी। उल्लेखनीय है कि मार्च के अंत में मुद्रास्फीति 8.98 प्रतिशत थी।

रिजर्व बैंक का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपभोक्ता वस्तुओं के दाम ऊँचे हैं। विशेषकर कच्चे तेल के दाम उच्चस्तर पर बने हुए हैं और घरेलू बाजार में पेट्रोलियम कीमतें नहीं बढ़ाई गई हैं और निकट भविष्य में जब कभी पेट्रोलियम मूल्य बढ़ाए जाएँगे, मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ने का जोखिम बना रहेगा।

रिजर्व बैंकी की इस राय से लगता है कि कल घोषित होने वाली सालाना ऋण एवं मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक नकदी उधार देने (रेपो) और अल्पकालिक उधार लेने (रिवर्स रेपो) की दरों में और वृद्धि कर सकता है। रेपो दर इस समय 6.75 प्रतिशत और रिवर्स रेपो 5.75 प्रतिशत पर है। पिछले एक साल में रिजर्व बैंक इनमें आठ बार वृद्धि कर चुका है।

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में सामान्य मानसून की भविष्यवाणी, सेवा क्षेत्र के सकारात्मक संकेतक और माँग की स्थिति के अनुमानों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि 2011-12 में भी आर्थिक वृद्धि की गति पिछले वर्ष की भाँति बनी रहेगी। पर बैंक का कहना है कि कच्चे माल के दामों के कारण उत्पादन लागत का दबाव बढ़ सकता है।

पिछले वित्तवर्ष की अनुमानित 8.6 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि के मुकाबले चालू वित्तवर्ष में वृद्धि 9 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद लगाई जा रही है।

चालू खाते के घाटे के बारे में केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि इसकी चिंता कम हुई है लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। वर्ष 2010-11 में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है। पहले इसके तीन प्रतिशत तक रहने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा था।

रिजर्व बैंक ने कहा है कि चालू खाते के घाटे को लेकर चिंताएँ कुछ कम हुई हैं लेकिन कच्चे तेल के लगातार ऊँचे दाम से इस साल इसमें वृद्धि का खतरा बना हुआ है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी, इक्विटी और बॉड बाजार में निवेश के उतार-चढ़ाव और देश पर बढ़ते विदेशी कर्ज से चालू खाते के घाटे के नियंत्रित दायरे में रखने को लेकर जोखिम बना हुआ है।

केन्द्रीय बैंक के अनुसार पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के देशों में अशांति का उल्लेखनीय असर पड़ सकता है लेकिन जापान की प्राकृतिक आपदा का मामूली असर होगा। भारत के साथ इन देशों का व्यापार ज्यादा नहीं है लेकिन देश के कुल कच्चे तेल में इनका एक तिहाई हिस्सा है, दूसरी तरफ जापान से होने वाले निवेश पर कुछ असर पड़ सकता है।

केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि कुल माँग में तेजी का रुख बना रहेगा। पिछले वित्त वर्ष में निजी क्षेत्र की खपत और निवेश आर्थिक वृद्धि के अगुवा बने रहे, हालाँकि तीसरी तिमाही में इसमें कुछ हल्कापन आया। इस दौरान सरकारी खर्च घटने से सरकारी खातों में वित्तीय मजबूती आने का संकेत देता है। बावजूद इसके घाटे सभी संकेतक 13वें वित्त आयोग द्वारा बताए गए आँकड़ों से ऊपर हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्सिडी खर्च बढ़ने का जोखिम बरकरार है। उर्वरक और कच्चे तेल पर दी जाने वाली सब्सिडी बजट प्रावधानों से ऊपर निकल सकती है। समय रहते यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुरूप घरेलू बाजार में दाम नहीं बढ़ाए गए तो सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ेगा।

रिजर्व बेंक ने आवासीय संपत्तियों के आसमान छूते दाम पर भी चिंता व्यक्त की है। बैंक के अनुसार वर्ष 2010-11 की तीसरी तिमाही में देश के ज्यादातर शहरों में संपत्तियों के दाम ऊँचे रहे। बैंक के सात शहरों से जुटाए गए आँकडों के आधार पर निष्कर्ष सामने आया है। हालाँकि इसके अनुसार दिल्ली और चेन्नई के आवास मूल्य सूचकांक में इस दौरान कुछ गिरावट दर्ज की गई।

कुल मिलाकार वृहत आर्थिक परिवेश पर जारी रिपोर्ट के अनुसार मौद्रिक नीति का रुझान मुद्रास्फीति के खिलाफ बना रहेगा, हालाँकि इस दौरान आर्थिक वृद्धि की निरंतरता को बनाए रखने के प्रयास भी जारी रहेंगे। ऊँचे तेल और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के ऊँचे दाम से ऊँची मुद्रास्फीति का जोखिम बना रहेगा। यूरोपीय देशों में जहाँ सुधार उम्मीद से बेहतर रहा है वहीं तेल और यूरो क्षेत्र को लेकर जोखिम बरकरार है। (भाषा)

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