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आदिवासी करेंगे पत्रकारिता

हमें फॉलो करें आदिवासी करेंगे पत्रकारिता
अमरकंटक, मध्यप्रदेश , मंगलवार, 26 जून 2012 (12:31 IST)
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घने जंगलों के ऊंचे-ऊंचे दरख्तों से घुसपैठ करता सूरज, पहाड़ों पर बने घरों के दरवाजों और खिड़कियों से किसी अपने से बेधड़क घुसते बादल, किसी एक मोड़ पर झिर-झिर बरसती रिमझिम बारिश तो अगले ही मोड़ पर धूप की अठखेलियां।

जनजाति बहुल मध्यप्रदेश का रमणीय स्थल अमरकंटक, जो तमाम प्राकृतिक खूबसूरती के साथ नक्सली गतिविधियों से भी घिरा है, इसी स्थल को अब एक नई पहचान मिल रही है। अक्सर खबर बनने वाले आदिवासी इस स्थल पर खबर देने वालों का प्रशिक्षण पाने की राह पर हैं।

देश के पहले तथा एकमात्र जनजातीय विश्वविद्यालय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में विशेष तौर पर आदिवासियों के लिए पत्रकारिता पाठ्यक्रम बहुत लोकप्रिय होता जा रहा है। विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. चंद्रदेवसिंह ने बताया कि आदिवासी छात्रों के द्वार पर जाकर उन्हें शिक्षा उपलब्ध कराकर उन्हें शिक्षित करने व रोजगार के लिए तैयार कर राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से गठित इस विश्वविद्यालय में पत्रकारिता पाठ्यक्रम इसी महत्वाकांक्षी एजेंडा का चरण है।

उन्होंने बताया कि आठ जुलाई 2008 को अत्यंत छोटी-सी शुरुआत के साथ शुरू हुए इस विश्वविद्यालय में प्रवेश के इच्छुक छात्रों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है और इसी के मद्देनजर अब यहां पाठ्यक्रमों का भी विस्तार किया जा रहा है।

पत्रकारिता पाठ्यक्रम को लेकर छात्रों में खासा उत्साह है तथा आदिवासी लड़कियां भी इस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले रही हैं। जाने-माने लेखक, विचारक तथा पत्रकार उदयप्रकाश को हाल ही में इस विभाग की फैकल्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

उदयप्रकाश के अनुसार इन छात्रों में खबरों को पकड़ने की ललक है। तमाम जिज्ञासाएं हैं। निश्चय ही अपनी मिट्टी को समझने की वजह से वे यहां के मसले, समस्याएं ज्यादा अच्छी तरह से मीडिया में उठा सकेंगे और स्थानीय लोगों को अपनी कलम के माध्यम से देश और दुनिया से बेहतर तरीके से जोड़ सकेंगे।

प्रो. सिंह के अनुसार जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना से आदिवासियों में शिक्षा का प्रसार बढ़ रहा है। उन्हें रोजगार के अवसर मिल रहे हैं और खासतौर पर नक्सली आंच से घिरे ऐसे प्रदेशों में वे अतिवादी गतिविधियों से दूर रहकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड रहे हैं। परस्पर उपयोगी यह समीकरण समाज व राष्ट्र के विकास में भी बहुत सहयोग दे रहा है।

शिक्षाविद् ने बताया कि क्षेत्र के आदिवासी छात्रों में उच्च शिक्षा के लिए कितना आकर्षण है, इसका पता इसी बात से चलता है कि प्रारंभिक सत्र में 2008-09 में जहां कुल 158 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया जिसमें 26 छात्राएं, 78 छात्र अनुसूचित जनजाति व 17 छात्र अनुसूचित जाति के थे वहीं 2011 में कुल छात्रों की संख्या 769 तक जा पहुंची है।

उन्होंने कहा कि छात्रों की बढ़ती संख्या तथा नए-नए पाठ्यक्रमों में उनकी बढ़ती इसी रुचि का परिचायक है। प्रो. सिंह के अनुसार पत्रकारिता पाठ्यक्रम निश्चय ही उनमें बढ़ती जागरूकता का घोतक है। अब वे खबर बनना नहीं, खबर बनाना चाहते हैं।

फिलहाल विश्वविद्यालय में अन्य सामान्य विषयों के अलावा अंग्रेजी, विदेशी भाषा, कम्प्यूटर शिक्षा, भूगर्भ खनिज विज्ञान, वन प्रबंधन जैसे विषयों के अलावा वर्ष 2011-12 में पांच नए विषयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम भी शुरू किए गए हैं। प्रो. सिंह ने बताया कि हाल ही में विश्वविद्यालय की मणिपुर इकाई भी शुरू की गई है।

इसके अलावा विश्वविद्यालय को आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, केरल, गुजरात, महाराष्ट्र तथा असम ने भी अपने यहां इस विश्वविद्यालय की ऐसी इकाइयां खोले जाने का प्रस्ताव भेजा है। उन्होंने कहा कि देश के लगभग 20 राज्यों में बड़ी तादाद में आदिवासी बहुल क्षेत्र है जहां इस तरह की इकाइयां स्थापित किए जाने का प्रस्ताव है ताकि ज्यादा से ज्यादा आदिवासी युवा शिक्षित होकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़कर स्वावंलबी हों।

प्रो. सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय एक छोटी-सी शुरुआत व सीमित संसाधनों के साथ शुरू हुआ। काफी अड़चनों के बाद धीरे-धीरे विश्वविद्यालय को अपने परिसर के लिए उपर्युक्त जगह मिली। यह देश का पहला जनजातीय विश्वविद्यालय था। एक चुनौती थी। सपना इस बिरवे को घना वटवृक्ष बनाने का है।

विश्वविद्यालय के विस्तार के अगले चरण में आयुर्वेद, एलौपैथी की चिकित्सीय विद्या मिलाकर एक मेडिकल कॉलेज बनाने का प्रस्ताव इस पंचवर्षीय योजना में भेजा गया है। एक एंग्रो इंजीनियरी कॉलेज खोले जाने का भी प्रस्ताव है। तपोभूमि का शिखर माने जाने वाला यह क्षेत्र गुरुनानक व कबीर का मिलन स्थल रहा है।

अध्यात्म व साहित्य का संगम, नर्मदा, सोन नदी का उद्‍गम स्थल, धर्म-अध्यात्म व प्राकृतिक सौंदर्य का संगम। यहीं अब गढ़ा जा रहा है एक नया इतिहास, बुना जा रहा है एक सपना सर्व शिक्षा का। प्रो. सिंह के अनुसार जनजातीय विश्वविद्यालय जनजातीय छात्रों के अलावा आसपास के क्षेत्रों के अन्य वर्गों के छात्र भी आते हैं। विश्वविद्यालय की वजह से पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा का प्रसार बढा है। (वार्ता)

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