Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दाँत लगते ही लौट आई दृष्टि

हमें फॉलो करें दाँत लगते ही लौट आई दृष्टि
-एजेंसियाँ/राम यादव
अमेरिका के मिसीसिपी राज्य की शैरॉन थॉर्नटन की आँखें 2000 में एक अनोखी बीमारी के बाद से कुछ देख नहीं पा रही थीं। इस बीच वे 60 साल की हो गई हैं और एक अनोखे ऑपरेशन के बाद से उनकी दृष्टि क्षमता लौट आई है।

स्टीवेंस-जॉन्सन सिन्ड्रोम कहलाने वाली उनकी बीमारी ऐसी है कि रोगी का शरीर कॉर्निया के प्रतिरोपण को ठुकरा देता है। कॉर्निया को हिंदी में आँख का स्वच्छमंडल कहते हैं।

शैरॉन थॉर्नटन का शरीर कॉर्निया के प्रतिरोपण को ठुकरा न दे, इसे रोकने के लिए सर्जनों ने उनकी आँख में पहले उन्हीं के एक दाँत का प्रतिरोपण किया, ताकि दाँत बाद में लगने वाले महीन प्लास्टिक लेंस को थामे रहे। कॉर्निया के ऑपरेशन का यह तरीका सबसे पहले इटली में विकसित किया गया था। यह पहला मौका था कि उसे अमेरिका में भी अपनाया गया है।

ऑपरेशन में थॉर्नटन के एक दाँत और उसके पास की कुछ हड्डी को निकाल कर तराशा गया और उस में बेलनाकार लेंस को बैठाने के लिए एक छेद किया गया। लेंस सहित दाँत को पहले रोगी के गालों या कंधों की त्वचा के नीचे दो महीनों के लिए प्रतिरोपित किया जाता है, ताकि वे अच्छी तरह आपस में जुड़ जाएँ। बाद में उन्हें वहाँ से निकाल कर आँख में प्रतिरोपित किया जाता है। इसके लिए आँख वाले गड्ढे को पहले अच्छी तरह तैयार किया जाता है।

आँख की श्लेश्मा वाली परत में एक छेद किया जाता है, ताकि लेंस थोड़ा-सा बाहर निकला रहे और आसपास के प्रकाश को ग्रहण कर सके।

शैरॉन थॉर्नटन की आँख पर लगी पट्टी दो ही सप्ताह पहले खोली गई है। कुछ ही घंटों में वे चीजों और चेहरों को पहचानने लगीं। पहली बार जब उन्हें दिखाई देना लगा तो उनके मुँह से ये शब्द निकले, यह तो एक सच्चा चमत्कार है। एक सप्ताह बाद वे पत्र-पत्रिकाएँ भी पढ़ सकती थीं। वे कहती हैं- मैं अपने नाती-पोतों को देखने का इंतजार कर रही हूँ।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi