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'जीवन का आनंद लेना चाहती हूँ'

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, शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010 (17:15 IST)
DW
देवानंद की फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ से अपने करियर की शुरुआत कर दर्शकों के दिलोदिमाग पर छा जाने वाली जानी-मानी अभिनेत्री जीनत अमान अरसे बाद एक बार फिर ‘डोंट नो व्हाय’ के जरिए फिल्मों में वापसी कर रही हैं।

जीनत अमान कहती हैं, 'अब मैं जीवन का आनंद उठाना चाहती हूँ। इसी के लिए फिल्मों में काम कर कुछ पैसे कमाना चाहती हूँ।' हाल में एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता आई जीनत अमान ने अपने करियर, भावी योजनाओं और हिंदी फिल्मों के बदले परिदृश्य पर हमारे संवाददाता प्रभाकर से बातचीत की।

*फिल्मों में वापसी काफी समय बाद हुई इसकी क्या वजह रही?
- मैं अपने बच्चों के पालन-पोषण में व्यस्त थी। बाकी कामों के लिए समय ही नहीं मिला। इसमें इतना समय कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला। बच्चों के बड़े हो जाने की वजह से अब मेरे पास वक्त की कोई कमी नहीं है। इसलिए मैंने फिल्मों में लौटने का फैसला किया। मुझे अभिनय पसंद है। मुझे इसके अलावा दूसरी कोई कला नहीं आती। जीवन के दूसरे पहलुओं में व्यस्त रहने की वजह से मैंने अभिनय से एक ब्रेक लिया था।

*क्या उम्र के इस पड़ाव पर आकर आप अभिनय को करियर बनाना चाहती हैं?
- नहीं, मैं जीवन का आनंद उठाना चाहती हूँ। मैं फिल्मों में अभिनय का मजा लेना और इसके जरिए कुछ पैसे कमाना चाहती हूँ। उसके बाद बाकी समय मैं उन पैसों को खर्च करने में बिताऊँगी। उसके बाद फिर कोई दूसरी फिल्म हाथ में ले लूँगी।

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*डोंट नो व्हाय फिल्म में आपकी भूमिका कैसी है?
- यह एक पारिवारिक फिल्म है। मुझे इसकी कहानी और अपने चरित्र रेबेका की भूमिका पसंद आई थी। इस चरित्र के कई पहलू हैं। पूरी फिल्म इसी के आसपास घूमती है। मैं देखना चाहती थी कि इस चरित्र में कितनी फिट हो सकती हूँ। इसलिए मैंने यह फिल्म साइन करने का फैसला किया।

*छोटे पर्दे पर काम करने के बारे में आप क्या सोचती हैं?
- मुझे भी लगातार विभिन्न टेलीविजन कार्यक्रमों में काम करने के आफर मिल रहे हैं। लेकिन फिलहाल मैंने इस बारे में कुछ सोचा नहीं है।

*अब हिंदी फिल्मों की कई अभिनेत्रियाँ बांग्ला फिल्मों में भी काम कर रही हैं। क्या आपकी भी ऐसी कोई इच्छा है?
- बढ़िया भूमिकाएँ मिलें तो बांग्ला फिल्मों में जरूर काम करूँगी। बंगाल की फिल्मों के लिए मेरे दिल में खास जगह है।

*अपने करियर और उम्र का अहम पड़ाव पार करने के बाद अच्छी भूमिकाएँ मिलना कितना कठिन है?
- बॉलीवुड में अभिनेत्रियों को 30 साल की उम्र के बाद ही बूढ़ा मान लिया जाता है। कुछ भाग्यशाली इसे 35 तक ले जाने में कामयाब रही हैं। लेकिन आमतौर पर तो 30 पार अभिनेत्रियाँ को माँ की भूमिकाओं के आफर मिलने लगते हैं।

*क्या बॉलीवुड में अब महिला-प्रधान फिल्मों की जगह बनी है?
- जरूर, पहले के मुकाबले स्थिति काफी सुधरी है। अब महिलाओं को मजबूत भूमिकाएँ मिलने लगी हैं। रेखा और शबाना आजमी अब भी बेहतरीन भूमिकाएँ निभा रही हैं। लेकिन पश्चिमी सिनेमा इस मामले में हमसे काफी आगे निकल गया है।

*आपके करियर का सबसे अहम पड़ाव कौन-सा था?
- यह बताना तो मुश्किल है, लेकिन राज कपूर, मनोज कुमार, देव आनंद, फिरोज खान, संजय खान और इसी तरह के दूसरे अभिनेताओं-निर्देशकों के साथ काम करना उस दौर में मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि थी।

- प्रभाकर (कोलकाता)

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