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शाहरुख के लिए पलकें बिछाए बर्लिन

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, बुधवार, 8 फ़रवरी 2012 (15:42 IST)
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दुनिया के सबसे बड़े फिल्म महोत्सवों में एक, बर्लिनाले, इस हफ्ते जर्मन राजधानी बर्लिन में शुरू हो रहा है। बॉलीवुड बर्लिनाले का कई दशकों से हिस्सा है, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां शाहरुख का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है।

इस साल बर्लिनाले में दिखाई जाने वाली फिल्में बदलाव दिखाएंगी और समारोह के निदेशक डीटर कोसलिक मानते हैं कि इस बदलती दुनिया का एक अहम हिस्सा शाहरुख खान हैं जो पहले से ही जर्मन जनता के चहेते हैं।

फिल्मों के मेले की शुरुआत से पहले शाहरुख जर्मन टेलीविजन के जाने माने टॉक शो मेजबान थोमास गॉटशाल्क के साथ दिखेंगे। यहां डॉन 2 और किंग खान पर बातचीत और बहस होगी। इस शो के साथ शाहरुख खान को जर्मनी में बॉलीवुड के दीवाने ही नहीं, बल्कि आम लोग भी थोड़ा और करीब से जान सकेंगे। बर्लिन प्रशासन के सहयोग से बनी डॉन 2 भी बर्लिनाले में दिखाई जा रही है। शाहरुख के अलावा फिल्म के निर्देशक फरहान अख्तर और प्रियंका चोपड़ा भी बर्लिन की चमक बढ़ाने आ रहे हैं।

फिल्म से आध्यात्म तक : जहां तक भारतीय फिल्मों का सवाल है, डॉन 2 जर्मन अखबारों पर छाया हुआ है। लेकिन भारत की ओर से सिर्फ एक ही फिल्म बर्लिनाले के पुरस्कारों की दौड़ में है। मोहन कुमार की पंचभूत एक डॉक्यूमेंटरी है जिसमें कोलकाता के पास कचरे के ढेर की कहानी है।

डॉयचे वेले के साथ खास बातचीत में फिल्मकार ने बताया कि कचरे के आसपास की दुनिया अलग होती है। उन्होंने फिल्म में वहां की आबोहवा पर ध्यान दिया है। कहते हैं कि कचरे के ढेर में मिट्टी, जल, आग, आकाश और हवा, सब मिल जाते हैं, और उनकी फिल्म इसे आध्यात्म से भी जोड़ती है।

बर्लिनाले में बॉलीवुड : बॉलीवुड और बर्लिनाले का रिश्ता दशकों पुराना है। 1956 में बर्लिनाले को शुरु हुए छह साल ही हुए थे तब रवि प्रकाश की डॉक्यूमेंटरी फिल्म स्प्रिंग कम्स टू कश्मीर को सिल्वर बीयर मिला। श्रीनगर की डल झील और आसपास के पहाड़ों की सुंदरता को विश्व मंच पर ले जाने वाली यह पहली भारतीय फिल्मों में से थी। तपन सिन्हा की काबुलीवाला भी ज्यूरी के खास सिलवर बीयर की हकदार बनी। भारत के दिग्गज फिल्म निर्देशकों में एक वी शांताराम की दो आंखे बारह हाथ ने बर्लिन के फिल्म आलोचकों का दिल जीत लिया और चमचमाता भालू एक बार फिर भारत की झोली में आया।

1964 से लेकर 1973 तक लगभग हर साल सत्यजीत राय की फिल्में भारत को मौजूदगी दिलाती रहीं। इन फिल्मों ने आलोचकों को अपने पक्ष में फैसला लेने पर मजबूर किया। चारुलता, अशनी संकेत और नायक ने सत्यजीत राय को बर्लिनाले में खूब मशहूर किया। पिछले सालों में केतन मेहता और बुद्धदेब दासगुप्ता की भी कई फिल्में बर्लिन में भारत की पेशकश रही हैं। आलोचकों की पसंद ही नहीं, बर्लिनाले में भारत की जनता को पसंद आने वाली फिल्मों ने भी फैंस को अपनी तरफ खींचा है। 2005 में के आसिफ की मुगल-ए-आजम बर्लिनाले के रेट्रोस्पेक्टिव फिल्मों में दिखाई गई।

ब्लॉकबस्टर की चमक : 2012 भारत की आलोचनात्मक फिल्मकारों का साल तो नहीं है, लेकिन चीन और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों सहित आर्थिक महारथियों में गिना जाने वाला देश अब पश्चिमी साझीदारों के साथ अंतरराष्ट्रीय दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा है। डॉन-2 इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। पिछले सालों में देवदास, हम दिल दे चुके सनम, सात खून माफ, माई नेम इज खान और विवादित फिल्म गांडू को बर्लिन में देखने का मौका मिला। आमिर खान भी ज्यूरी का हिस्सा बने। डॉन-2 और बर्लिन में अपनी लोकप्रियता की वजह से शाहरूख पर मीडिया की नजरें इस बार भी टिकी हैं।

शाहरुख को देख कर बर्लिन में कई बार ट्रैफिक तक रुक जाता है। जो लोग उन्हें अच्छे से नहीं जानते, वे समझते हैं कि भारत में एक सुपरस्टार हैं जिनका नाम चंगेज खान से मिलता है। लेकिन जानते उन्हें सब हैं। शायद भारत से आ रहे नए फिल्मकारों को भी सुपरस्टार की चमक का कुछ हिस्सा मिल जाए।

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन
संपादनः आभा एम

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