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स्टेटिन से कम हो सकता है अवसाद का खतरा

हमें फॉलो करें स्टेटिन से कम हो सकता है अवसाद का खतरा
, शुक्रवार, 2 मार्च 2012 (14:16 IST)
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दिल की बीमारी और कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करने की दवाई लेने वाले लोगों को अवसाद का खतरा कम होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 1 हजार लोगों पर किए गए अध्ययन के बाद यह बात पता चली है।

अध्ययन के बाद तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली दवाई स्टेटिन का इस्तेमाल करने वाले लोगों को अवसाद होने का खतरा कम होता है। जबकि दवाई का इस्तेमाल नहीं करने वालों को इस बीमारी के चपेट में आने की संभावना अधिक होती है।

बर्लिन के युनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के डॉक्टर क्रिस्टियान ओटे के अनुसार अभी साफ नहीं है कि यह प्रभाव दवाई की वजह से सामने आया है या अच्छे मूड की वजह से। डॉ. ओटे के अनुसार स्टेटिन के परिणाम बताते हैं कि यह मस्तिष्क की रक्त कोशिकाओं को प्रभावित कर अवसाद के असर को कम कर देता है।

डॉ. ओटे के अनुसार, 'यह संभव है स्टेटिन्स से अवसाद के प्रभाव दूर किया जा सकता है। यह दिमाग की रक्त कोशिकाओं पर सुरक्षात्मक प्रभाव डालता है।' राष्ट्रीय स्वास्थ्य सांख्यिकी केंद्र के अनुसार साल 2005 से 2008 के बीच अमेरिका में 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों पर अध्ययन किया गया।

डॉ. ओटे के समूह ने कैलिफोर्निया के 965 लोगों का बारीकी से अध्ययन किया। इन्हें पिछले छ: वर्ष के दौरान दिल का दौरा पड़ा था या दिल से जुड़ी बीमारी हुई थी। रिसर्च में 65 फीसदी ऐसे लोग शामिल थे जो स्टेटिन ले रहे थे।

रिसर्च के लिए तैयार की गई सवालों के अनुसार शुरुआत में स्टेटिन लेने वाले 17 फीसदी लोगों की तुलना में दवाई न लेने वाले 24 प्रतिशत लोग अवसाद की समस्या से पीड़ित मिले। मूड खराब होने की समस्या से भी स्टेटिन लेने वाले 18 प्रतिशत लोगों की तुलना में न लेने वाले 24 प्रतिशत लोग परेशान पाए गए।

मेसाचुसेट्स में लॉन कॉर्डियोवस्कुलर केंद्र के चार्ल्स ब्लाट ने कहा, 'मैं इन नतीजों से बिलकुल भी हैरान नहीं हूं।' चार्ल्स सीधे तौर पर नए अध्ययन में शामिल नहीं थे, लेकिन 2003 में उन्होंने अवसाद पर स्टेटिन के प्रभाव का अध्ययन किया था। तब भी दोनो के बीच संबंध पाया गया था। उन्होंने कहा कि लक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता कि यह एक नहीं हो सकता है, लेकिन जैविक रूप से देखा जाए तो यह प्रासंगिक हो सकता है। पर इस तथ्य से सभी सहमत नहीं है।

बोस्टन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुसेन जेक के अनुसार यह साफ नहीं है। शोधकर्ताओं ने शोध में शामिल किए गए लोगों के दवाई लेने के समय को इसमें शामिल नहीं किया। उन्होंने कब दवाई लेना शुरू की और कब बंद कर दी। उनमें कितने लोग धूम्रपान करते हैं, कितने गरीब लोग हैं और कितनों को अवसाद की बीमारी लंबे समय से है। कई दवा कंपनियों के बोर्ड से जुड़े ओटे के अनुसार भविष्य में इसकी और जांच की जाना चाहिए।

बाल्ट का कहना है, 'हम कोलेस्ट्रॉल से डरे देश में रहते हैं। किसी भी तरीके से आप अपने कोलेस्ट्राल के स्तर को कम कर सकते हैं तो आप बेहतर महसूस करेगें।'

रिपोर्ट : रायटर्स/ जे. व्यास
संपादन : एन रंजन

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