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हिल स्टेशन में नहीं अब गांव में मनती हैं छुट्टियां

हमें फॉलो करें हिल स्टेशन में नहीं अब गांव में मनती हैं छुट्टियां
, शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012 (17:10 IST)
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शहरों में भीड़ बड़ती जा रही है तो छुट्टियां बिताने के लिए अब लोग गांव का रुख कर रहे हैं। शहर की भाग दौड़ और तनाव भरी जिंदगी से दूर लोग गांव की ताजी हवा और सीधे सादे जीवन का आनंद लेना चाहते हैं। पर्यटन का एक नया चेहरा।

48 साल के प्रदीप सिंह ने हरियाणा के झज्जर में अपने घर को एक पर्यटन स्थल में बदल दिया है। फर्क बस इतना है कि शहरी लोगों के लिए जो पर्यटन है वह सब प्रदीप सिंह और उनके परिवार के लिए रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है।

प्रदीप सिंह चारपाई पर परिवार के अन्य पुरुषों के साथ बैठे हुक्का पीते हैं और उनके घर की महिलाएं दूध दुहती हैं। प्रदीप सिंह ने 2006 में अपने खेत का पर्यटन के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया। सैलानी यहां आकर ट्रैक्टर की सैर कर सकते हैं, खेत जोत सकते हैं, मिट्टी के चूल्हों पर रोटियां पका सकते हैं और गोबर के उपले बनाने में मदद कर सकते हैं।

प्रदीप सिंह इस बारे में बताते हैं, 'लोग चाहते हैं कि वे अपने बच्चों का देहात से भी परिचय करा सकें। वह अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ना चाहते हैं।'

पर्यटन मंत्रालय का समर्थन : लंबे समय से भारत का मध्यम वर्ग छुट्टियां बिताने के लिए शिमला, नैनीताल और मसूरी जैसी जगहों पर जाता रहा है। गांव देहात में छुट्टियां बिताना एक नया चलन है। पर ऐसा भी नहीं कि यह कहीं और छुट्टी बिताने की तुलना में सस्ता हो। बल्कि इस सीधे सादे जीवन का हिस्सा बनने के लिए लोगों को काफी जेब ढीली करनी पड़ती है। गांव के लोगों के लिए यह कमाई का एक नया जरिया बन गया है। पर्यटन मंत्रालय ने भी इस तरह की योजनायों का समर्थन किया है। पर्यटन मंत्रालय की वेबसाइट पर ऐसे 150 गांव के नाम दिए गए हैं जहां इसी तरह के प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं।

भारत में ऐसोसिएशन ऑफ डोमेस्टिक टूर ऑपरेटर्स के सुभाष वर्मा का कहना है, 'हमारा उद्देश्य यह है कि गांव की संस्कृति को मरना ना दिया जाए। साथ ही इस से गांव के कलाकारों और शिल्पकारों को आर्थिक सहयोग भी मिल सकता है।'

गांव में आने वाले लोगों के लिए बाजरे की रोटी बनाने वाले कलावती कहती हैं कि उन्हें इस से रोजगार मिला है और इसी के कारण वह अपने बच्चों को स्कूल भेज पाती हैं। कलावती पहले मजदूरी कर के अपना और अपने बच्चों का पेट पालती थीं। उनकी तरह और भी कई लोगों को लिए यह रोजगार का एक नया अवसर बन गया है।
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गांव का आकर्षण : सैलानियों के लिए गांव में खास तैयारियां की जाती हैं। इस बात का ख्याल रखा जाता है कि उन्हें किसी तरह की परेशानी ना हो। इसीलिए शहरों की तरह वेस्टर्न टॉयलेट भी बनाए गए हैं। हालांकि गांव में होने वाली बिजली की कटौती का उन्हें सामना करना पड़ता है। और अधिकतर लोगों को इस से कोई दिक्कत भी नहीं। बल्कि वह इसमें भी गांव का आकर्षण ढूंढते हैं।

दिल्ली से अपने परिवार के साथ झज्जर पहुंचे राकेश बुद्धिराजा कहते हैं, 'हमारे बच्चों को गांव के जीवन के बारे में कुछ भी नहीं पता, तो हमने सोचा इसमें उन्हें मजा भी आएगा और हम भारत के एक अलग रूप को भी देख लेंगे।'

प्रदीप सिंह ने पिछले कुछ समय में सैलानियों के बर्ताव में बदलाव भी देखा है, 'पहले यहां स्कूली बच्चे आया करते थे। वे गोबर देख कर चहरे बनाने लगते थे, गांव वालों पर और उनकी बोली पर हंसते थे।' जैसे-जैसे लोगों को पर्यटन के इस विकल्प के बारे में पता चल रहा है वे खुद को गांव में छुट्टियां बिताने के लिए तैयार करके आने लगे हैं।

अधिकतर लोग अपने साथ पानी, सन स्क्रीन और खाने पीने का समान भी ले कर आते हैं। लेकिन इस से गांव की सुंदरता पर बुरा असर भी पड़ रहा है। लोग जो समान साथ लाते हैं उसे गांव में ही फेंक जाते हैं। पानी की बोतलें, प्लास्टिक की थैलियां, इनसे गांव में गंदगी बढ़ रही है। जो कंपनियां गांव वालों को पर्यटन से जुड़ने में मदद कर रही हैं उनकी कोशिश है कि गांव वालों को इस बात से भी सतर्क कराया जाए कि किस तरह पर्यटन के बावजूद गांव की खूबसूरती बरकरार रहे।

रिपोर्ट: ईबी/एएम(रॉयटर्स)

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