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लखनऊ में हर कदम पर वाजपेयी की छाप

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लखनऊ , रविवार, 3 मई 2009 (18:00 IST)
-योगेश मिश्
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो...। यही एहसास है अदब के शहर लखनऊ के वाशिंदों का यहाँ के पुराने सांसद और भारतीय जनता पार्टी के नेता अटलबिहारी वाजपेयी के लिए।

अगर आप उनके संसदीय क्षेत्र में एक-आध किमी की भी यात्रा करें तो कहीं न कहीं इसी एहसास का भाव जगाते हुए अटलबिहारी वाजपेयी की कोई न कोई छोटी-बड़ी योजना तामीर हुई या सरकारों की चकरघिन्नी में फँसी हुई जरूर मिल जाएगी।

पर इन्फ्रास्ट्रक्चर-बिजली, सड़क, पानी और नागरिक सुविधाओं के मामले में लखनऊ ने भले ही प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने का खूब लाभ उठाया हो पर उद्योग-धंधे से यह शहर उनके सत्रह साल सांसद और तकरीबन सात साल के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल के बावजूद महरूम ही रहा।

रोजगार के लिए सरकार के अलावा इस इलाके में लोगों को कुछ नहीं मिला। यह जरूर है कि अपट्रान और स्कूटर इंडिया सरीखे उद्योग बंद न हों इसकी कोशिश वाजपेयी के जमाने में गंभीरता से हुई।

लखनऊ सूबे की राजधानी भले ही रहा हो पर अटलबिहारी वाजपेयी के 1991 में यहाँ सांसद बनने के पहले गोमती पार के इलाकों में विकास दिखता नहीं था। गोमती नगर कॉलोनी हो या जानकीपुरम या इंदिरा नगर सब जगह पहुँचने के रास्ते तो थे लेकिन लैम्प पोस्ट, सड़कें और बिजली के साथ सीवर की मुकम्मल व्यवस्था इन्हीं के कार्यकाल में हुई।

इसकी वजह यह भी रही कि अटलजी के यहाँ से सांसद बनने के बाद ही सूबे में भाजपा की सरकार आ गई। आज के उनके उत्तराधिकारी लालजी टंडन न केवल उनके प्रतिनिधि थे बल्कि नगर विकास मंत्री भी बने। नतीजतन, उन्होंने भी वाजपेयी के संसदीय क्षेत्र में अपनी और अपने महकमे की खूब उपस्थिति दर्ज कराई। अटलबिहारी वाजपेयी ने इस शहर की चिकित्सा सुविधा को नया आयाम दिया।

उनकी जद्दोजहद और परिकल्पना के बाद मेडिकल यूनिवर्सिटी बनी। डेंटल विश्वविद्यालय खुला। सूबे के सभी मेडिकल और डेंटल कॉलेज इसी से संबद्ध हो गए। पहला ट्रॉमा सेंटर भी उन्हीं की देन है। तकनीकी विश्वविद्यालय भी खोलकर निजी क्षेत्र के इंजीनियरिंग कॉलेजों के मानदंड तय करने की दिशा में कदम बढ़ाए गए।

राजाजीपुरम और अलीगंज में दो बालिका महाविद्यालय भी उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र को दिए। मेडिकल कॉलेज के पास उन्होंने एक बड़े कन्वेंशन सेंटर का सपना देखा। तकरीबन 38 करोड़ की लागत वाले इस कन्वेंशन सेंटर में भाजपा के तमाम सांसदों और विधायकों ने अपनी निधि से पैसा दिया। दूसरे फेज का काम चौदह करोड़ खर्च होने के बाद भी बाकी है।

शहर में बढ़ते यातायात के दबाव को अटलबिहारी वाजपेयी ने ठीक से महसूस किया था। उन्होंने दुबग्गा होते हुए कानपुर और सीतापुर को जोड़ने वाली छह लेन की सड़क और शहर के बाहर शहीद पथ बनवाए। शहीद पथ का काम केंद्र में सरकार बदलने के साथ ही रुक गया। इसकी वजह यह बताई जाती है कि चार सौ पचास करोड़ रुपए की लागत वाली यह परियोजना सात सौ करोड़ रुपए की हो गई है।

उन्होंने शहर के लिए एक बाहरी रिंग रोड की भी कल्पना की थी पर यह कागजों से बाहर नहीं निकल पाई। वाजपेयी ने अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों को शुद्ध पानी मुहैया कराने के लिए न केवल वाटर वर्क्स बनवाए बल्कि इस मद में चार सौ करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च की। पुराने लखनऊ के तकरीबन सभी कुएँ साफ कराए गए।

वाजपेयी गोमती को लखनऊ की जीवन रेखा कहते हैं। उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर भी कहा कि गोमती मर गई तो लखनऊ मर जाएगा। गोमती की सफाई के लिए 80 करोड़ की लागत से जल शोधन संयंत्र लगाए गए। गोमती में पानी कम न हो इसके लिए शारदा नहर से पानी लाने का भी सपना अटलबिहारी वाजपेयी ने अपने संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए देखा था पर यह योजना अभी पाइप लाइन में ही है।

अटलबिहारी वाजपेयी उद्योग धंधे भले ही न खुलवा पाए पर बंदी के कगार पर पड़े उद्योगों को उन्होंने बंद नहीं होने दिया। स्कूटर इंडिया को चलाने के लिए न केवल तीन सौ करोड़ रुपए का टैक्स माफ कराया बल्कि वहाँ के कर्मचारियों के लिए सावधि जमा भी खुलवाए। अपट्रान को उन्होंने बढ़ावा दिया। अटलबिहारी वाजपेयी के आने के बाद अमौसी में सिटी गैस के तहत गैस फिलिंग सेंटर खुला जिसके चलते भर कर आने वाली रसोई गैस की ढुलाई कम हुई और किल्लत भी। उन्होंने बाराबंकी और कानपुर को लखनऊ से जो़ड़ने के लिए बंद पड़ी छोटी लाइनों पर मेमो ट्रेन चलाई।

मेट्रो ट्रेन और रेज बस (फ्लाई ओवर के ऊपर चलने वाली बस) का भी सपना देखा पर इन पर उनके दौर में कुछ नहीं हो पाया। सूबे भर के खिलाड़ियों के लिए साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) का कई करोड़ रुपए का केंद्र खोला। बायोटेक पार्क के लिए पैसा और जमीन दोनों मुहैया कराया। अब यह योजना लखनऊ से चली गई है। लखनऊ में बिजली के 18 नए सब स्टेशन लगाए गए।

लखनऊ के सीवर और पानी की दिक्कतें दूर करने के लिए उन्होंने संसद में जो खाका पेश किया था उसके लिए जरूरी 500 करोड़ रुपए जवाहरलाल अर्बन मिशन में जल्द ही आने वाले हैं। वाजपेयी अपने मतदाताओं का कितना ख्याल रखते थे इसे नगर निगम को लिखे और समय-समय पर बताए गए लखनऊ वाशिंदों की जरूरत के कामों से तस्दीक किया जा सकता है।

उन्होंने नगर निगम से श्रद्धा उपवन, साँई उपवन, खाटू श्याम उद्यान, अवध गार्डन, मनकामेश्वर वन, बागे अकीदत, गोमती के किनारे सरस्वती घाट, कारगिल शहीद स्मृति वाटिका, न्यू लक्ष्मण पार्क बनवाए। यही वजह है कि साहित्यकार जगन्नाथ त्रिपाठी हों या लारेटों कॉलेज की अध्यापिका श्रीमती शोभा, सब यह कहते नहीं थकते कि उन्होंने लखनऊ का बहुमुखी विकास किया। उनकी कमी खल रही है।

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