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बच्चे के दूध के दाँतों का महत्व

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* बच्चा इन दाँतों की मदद से ही चीजों को चबाना सीखता है। वह बोलना तभी सीख पाता है, जब उसके दूध के दाँत आ जाते हैं। बच्चे के अगर दूध के दाँत टूट जाएँ तो उस के स्वर उच्चारण पर असर होता है। ऐसी हालत में उस स्थान को खाली नहीं छोड़ना चाहिए और दूसरा दाँत तुरंत लगवा लेना चाहिए।

* बच्चों के दूध के दाँतों की भी सही देखभाल की जानी चाहिए। कुछ भी खाने के बाद उसके दाँतों की सफाई जरूर की जानी चाहिए। दाँतों में चिपकने वाले खाद्य पदार्थ बच्चों को बिलकुल न दें, रेशेदार खाद्य पदार्थ ही खिलाएँ।

* बच्चों को हमेशा संतुलित आहार दें। इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि दाँत एक ही बार बनते हैं। उनमें कोई विकास और परिवर्तन नहीं होता।

* बच्चों के भोजन में कैल्शियमयुक्त पदार्थ ज्यादा से ज्यादा दें। कच्चे फल और सब्जियाँ खाने की आदत डालें, ताकि उन्हें चबाने से दाँतों और मसूड़ों का व्यायाम हो सके।

* बच्चे के जब दाँत निकलने की शुरुआत होती है, उस समय बच्चे को किसी योग्य बाल दंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए, परंतु व्यावहारिक रूप में ऐसा संभव नहीं हो पाता है। जब आपका बच्चा दो साल का हो जाए तो उसे दंत चिकित्सक के पास जरूर ले जाएँ, ताकि आपको अपने बच्चों के दाँतों के विषय में उचित जानकारी और दिशानिर्देश मिल सकें।

* बच्चों के दूध के दाँत असमय गिर जाते हैं। उनमें कैविटी हो जाती है। बच्चों के दाँतों में बड़ों के मुकाबले कैल्शियम की मात्रा कम रहती है, यही वजह है कि दूध के दाँतों में कैविटी बहुत जल्दी हो जाती है। पहले यह एक छोटे से गड्ढ़े के रूप में होती है बाद में बढ़कर पूरा दाँत ही इसकी वजह से खराब हो जाता है।

* एक बड़े व्यक्ति को जहाँ हर 6 महीने में किसी योग्य दंत चिकित्सक को दिखाने की सलाह दी जाती है, वहीं बच्चे को भी हर 6 महीने में किसी दंत चिकित्सक को दिखाना जरूरी है, ताकि आगे आने वाली किसी भी गंभीर समस्या से बचा जा सके।

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