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स्वात घाटी का अप्रतिम सौंदर्य

कश्मीर जैसी स्वर्ग-तुल्य स्वात घाटी

हमें फॉलो करें स्वात घाटी का अप्रतिम सौंदर्य
- जुल्फिकार हामि

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पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत स्थित स्वात घाटी इन दिनों सुर्खियों में है। तालिबान द्वारा इस पर किए गए कब्जे पर पाकिस्तान सरकार ने एक तरह से अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी है। इस घाटी में शरियत कानून लागू करने के सरकार के निर्णय को इसी रूप में देखा जा रहा है। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि स्वात में 'जीत' का स्वाद चखने के बाद तालिबान खामोश नहीं बैठेंगे।

उनके हौसले और बुलंद होंगे तथा वे दोगुने उत्साह से अन्य इलाकों में अपनी जीत का परचम फहराने के लिए आगे बढ़ेंगे। यह भारत के लिए भी खतरे की घंटी है क्योंकि तालिबान का प्रभाव क्षेत्र बढ़ते-बढ़ते भारत की सीमा के काफी करीब आता जा रहा है।

खैर, इस खूबसूरत घाटी के खबरों में आने से लोगों में इसके प्रति उत्सुकता जागी है। तो चलिए एक सफर स्वात घाटी का हो जाए..।
स्वात घाटी को पाकिस्तान का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। इसके सौंदर्य की तुलना अक्सर कश्मीर घाटी से होती रही है। करीब 4000 वर्ग मील में फैली इस घाटी में लगभग साढ़े 12 लाख लोग बसते हैं। बर्फ से ढँके ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों और हरियाली में नहाए मैदानों वाली स्वात घाटी की जीवन रेखा है स्वात नदी, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। तब इसे 'सुवस्तु' के नाम से जाना जाता था।

  स्वात घाटी को पाकिस्तान का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। इसके सौंदर्य की तुलना अक्सर कश्मीर घाटी से होती रही है। बर्फ से ढँके ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों और हरियाली में नहाए मैदानों वाली स्वात घाटी की जीवन रेखा है स्वात नदी, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।      
यही शब्द बिगड़ते-बिगड़ते 'स्वात' हो गया। इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि 2000 वर्ष से अधिक से यह इलाका आबाद रहा है। यहाँ का बौद्ध इतिहास बड़ा ही समृद्ध रहा है। यह घाटी बौद्ध शिक्षा एवं साधना के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरी थी। ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान बुद्ध ने यहाँ की यात्रा कर स्वातवासियों को अपने उपदेशों से उपकृत किया था।

घाटी में छोड़े गए उनके पदचिह्न आज भी स्वात संग्रहालय में सहेजकर रखे गए हैं। सन्‌ 326 ईसा पूर्व में सिकंदर अपने विश्व विजय अभियान पर स्वात आ पहुँचा और इस पर कब्जा कर लिया। बाद में चंद्रगुप्त मौर्य ने इसे मौर्य साम्राज्य का अंग बना लिया।

यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य तथा शांत, सुरम्य वातावरण ने राजाओं से लेकर भिक्षुओं-महात्माओं तक सबको अपनी ओर आकर्षित किया। यहाँ के शांत वातावरण को देखते हुए प्रसिद्ध बौद्ध सम्राट कनिष्क ने अपनी राजधानी पेशावर से हटाकर स्वात स्थानांतरित कर दी थी। बौद्ध धर्म के वज्रयान पंथ का उद्गम स्थल स्वात ही माना जाता है।

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गंधार कला का केंद्र :-
स्वात घाटी प्राचीन गंधार सभ्यता का हिस्सा थी, जहाँ की कला विश्व विख्यात है। खास तौर से यहाँ की मूर्ति कला का प्रसार दूर-दूर तक हुआ था। एक समय इस घाटी में लगभग डेढ़ हजार स्तूप तथा बौद्ध मठ स्थापित थे। आज इनमें से 400 के अवशेष ही पाए जा सकते हैं। बौद्ध काल के बाद यहाँ हिन्दूशाही राजाओं ने शासन किया। फिर सन्‌ 1023 में महमूद गजनवी ने हमला कर हिन्दूशाही हुकूमत का खात्मा किया। इसके बाद यहाँ अफगानों के विभिन्ना कबीलों ने बारी-बारी से शासन किया।

मुगलों ने एक से अधिक बार स्वात पर कब्जा करने की कोशिश की मगर नाकाम रहे। 1840 के दशक में सूफी संत अब्दुल गफूर के नेतृत्व में स्वात के कबीले अँगरेजों के खिलाफ एकजुट हुए लेकिन अंततः अँगरेजों ने उन्हें परास्त कर दिया। फिर 1926 में ब्रिटिश हुकूमत ने स्वात घाटी को अब्दुल गफूर के पोते मियाँ गुल वदूद के शासन में एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता दे दी। 1947 में स्वात पाकिस्तान का हिस्सा तो बना लेकिन इसे मियाँ गुल वदूद के नेतृत्व में स्वशासी राज्य बनाए रखा गया। 1969 में यह व्यवस्था समाप्त कर स्वात को पूरी तरह पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया।

1969 से पहले स्वात शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़कों की बेहतर स्थिति तथा पर्यावरण संबंधी प्रगतिशील कानूनों के लिए जाना जाता था। यह शांत इलाका शेष पाकिस्तान से कहीं अधिक विकसित था। पाकिस्तान शासन के अधीन आने के बाद से यहाँ की स्थिति लगातार बिगड़ती गई है। अब तालिबान का शासन आ जाने से तो यह पुनः मध्य युग में जाता प्रतीत होता है। आज यहाँ की सड़कें जर्जर हैं और स्कूल व अस्पताल तहस-नहस हो चुके हैं।

पर्यटन स्थलों की भरमार :-
स्वात घाटी की जीवन रेखा स्वात नदी का उद्गम कलाम में उशू और उतरोर नदियों के संगम स्थल से होता है। यहाँ से 250 किलोमीटर बहकर यह चारसद्दा के पास काबुल नदी में जा मिलती है। स्वात नदी की ही वजह से स्वात घाटी की मिट्टी उर्वर तथा मौसम खुशगवार है। सिंचाई तथा मछली पालन के कारण यह घाटी की अर्थव्यवस्था में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसके अलावा यह यहाँ का प्रमुख पर्यटक आकर्षण तो है ही। पाकिस्तानी ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी इसके आकर्षण में यहाँ खिंचे चले आते रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि स्वात नदी ही यहाँ का एकमात्र पर्यटन स्थल है। अनेक ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक स्थल पूरी घाटी में बिखरे पड़े हैं। स्वात संग्रहालय में पूरी घाटी में मिले ऐतिहासिक अवशेष बड़े ही व्यवस्थित रूप से प्रदर्शित किए गए हैं। संग्रहालय के पास ही ईसा पूर्व दूसरी सदी का बुतकारा स्तूप है। इसका निर्माण संभवतः सम्राट अशोक ने कराया था।

बाद में अलग-अलग समय पर पाँच बार इसका विस्तार किया गया। इसके अलावा पान नामक स्थान पर पहली से पाँचवी सदी के बीच बना एक स्तूप तथा एक मठ के अवशेष हैं। कबाल में एक विशाल गोल्फ कोर्स है, जो बारहों महीने खुला रहता है। फीस भरकर यहाँ कोई भी, कभी भी गोल्फ खेलने जा सकता है।

छत से होकर गुजरती सड़क :-
स्वात का एक लोकप्रिय ग्रीष्मकालीन पर्यटन स्थल है मियाँदम। यहाँ के रास्ते में पड़ने वाले पहाड़ी गाँव भी अपने आप में दर्शनीय हैं। पहाड़ी पर क्रमिक रूप से अलग-अलग ऊँचाई पर मकानों की कतारें हैं। एक कतार के मकानों की आपस में जुड़ी छतें उनसे ठीक ऊपर वाली कतार के मकानों के लिए सड़क का काम करती हैं! मादयान नामक शहर शॉपिंग के कारण पर्यटकों में लोकप्रिय है।

यहाँ के बाजार में शॉल, परंपरागत कशीदाकारी, परंपरागत आभूषण, काश्तकारी का सामान, ऐतिहासिक महत्व के सिक्के आदि खरीदे जा सकते हैं। यहाँ विभिन्न आर्थिक वर्गों के पर्यटकों के लिए अनेक होटल उपलब्ध हैं। यहाँ से मात्र दस किलोमीटर दूर बाहरैन भी शॉपिंग के कारण पर्यटकों में लोकप्रिय है। पूरी स्वात घाटी में ट्रेकिंग की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं।

पर्वतारोहण, स्कीइंग आदि के लिए भी यहाँ अनुकूल स्थल हैं। तालिबान द्वारा इसे अपनी रणभूमि बना देने से अब यहाँ पर्यटन की तमाम संभावनाओं पर विराम लग गया है। अफसोस कि यह मनोरम घाटी हिंसा की चपेट में आकर कट्टरता और पिछड़ेपन की ओर जा रही है। शायद धरती पर स्वर्ग को भी कभी-कभी नारकीय दौर से गुजरना पड़ता है। उम्मीद करें कि यह दौर अधिक लंबा न हो।

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