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अंतरिक्ष जगत के भारतीय 'नक्षत्र'

नौ अप्रैल अंतरिक्ष यात्री दिवस पर विशेष

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लोगों को अंतरिक्ष में भेजने की उपलब्धि अब तक अमेरिका और रूस के नाम ही रही है, लेकिन इन दोनों ही देशों के साथ इस उपलब्धि में कहीं न कहीं भारत का नाम भी जुड़ा है।

PTI
रूस ने अपने अंतरिक्ष मिशन में वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा को शामिल किया तो अमेरिका ने भारत में जन्मीं कल्पना चावला और भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स को लेकर भारतीयों की प्रतिभा का लोहा माना।

हरियाणा के करनाल में जन्मीं कल्पना अब बेशक इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अंतरिक्ष में अपने मिशन को अंजाम देने की उनकी चाहत आज भी अंतरिक्ष यात्रियों को प्रेरणा देती नजर आती है।

हर साल नौ अप्रैल को मनाया जाने वाला 'अंतरिक्ष यात्री दिवस' भी ऐसे ही लोगों के योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, जो गगन और सितारों की थाह पाने का हौसला रखते हैं तथा जिनके लिए अपने जीवन से बढ़कर सिर्फ और सिर्फ अंतरिक्ष है।

प्रोफेसर यशपाल का कहना है कि राकेश शर्मा, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने निश्चित ही अंतरिक्ष की ऊँचाइयों में भारत का झंडा बुलंद किया है। आगामी छह या सात साल में भारत खुद अपने दम पर ही अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने लगेगा।

नासा वैज्ञानिक एल्डरीन ने अंतरिक्ष यात्री दिवस के मौके पर अपने संदेश में कहा है कि कल्पना चावला जैसी बुलंद इरादों वाली लड़कियों का योगदान अंतरिक्ष यात्रियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। कल्पना एक फरवरी 2003 को कोलंबिया यान के धरती पर लौटते समय हवा में ही दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण हमें अलविदा कह गईं।

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मिशन विशेषज्ञ कल्पना चावला 16 जनवरी 2003 को अंतरिक्ष में गई थीं। वहाँ उन्होंने 15 दिन 22 घंटे 21 मिनट गुजारे।

एक फरवरी 2003 को धरती पर पहुँचने से लगभग 16 मिनट पहले अंतरिक्ष यान कोलंबिया के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण कल्पना अंतरिक्ष में ही विलीन गईं, लेकिन अमेरिकी मिशन में वे भारत का नाम रोशन कर गईं।

प्रोफेसर यशपाल के अनुसार भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक सुनीता विलियम्स में भी कल्पना चावला की तरह ही गजब की इच्छाशक्ति है। सुनीता ने अंतरिक्ष जगत में भारत का नाम रोशन किया है। सुनीता दुनिया की ऐसी पहली महिला अंतरिक्ष यात्री हैं, जिन्होंने अंतररराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आईएसएस) में सर्वाधिक 195 दिन गुजारे।

भारतीय मूल की इस अमेरिकी नौसैन्य कमांडर ने अंतरिक्ष में कई बार चहलकदमी की और यहाँ तक कि मैराथन दौड़ भी लगाई।

सुनीता विलियम्स डिस्कवरी में सवार होकर नौ दिसंबर 2006 को आईएसएस गईं और 22 जून 2007 को धरती पर लौटीं। वहाँ उन्होंने एसटीएस 116, एक्सपिडीशन 14, एक्सपिडीशन 15 और एसटीएस 117 नाम के मिशनों को अंजाम दिया।

राकेश शर्मा 1984 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी सोवियत इंटर कास्मॉस के संयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत दो रूसियों के साथ अंतरिक्ष में गए।

उन्होंने सलयुत 7 अंतरिक्ष केंद्र में आठ दिन गुजारे। इसके लिए सोवियत संघ ने उन्हें हीरो ऑफ सोवियत यूनियन पुरस्कार से सम्मानित किया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने जब यह पूछा कि राकेशजी अंतरिक्ष से भारत कैसा लगता है तो उन्होंने जवाब दिया सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा। (भाषा)

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