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अंतिम दिनों में हताश थे बापू

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चेन्नई (भाषा) , गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008 (16:12 IST)
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अपने जीवन के अंतिम दिनों में बेहद दु:खी हताश और ऊहापोह में थे। देशभर में हो रहे सांप्रदायिक फसाद ने बापू को अंदर से तोड़ दिया था। निराशा उनके मन को बहुत गहरे तक बेध चुकी थी।

वर्ष 1943 से हत्यापर्यंत गाँधीजी के निजी सहायक रहे 85 वर्षीय कल्याणम वेंकटरामन ने यह रहस्योद्घाटन किया। वेंकटरामन ने बताया कि दु:ख, हताशा और ऊहापोह की अवस्था में उनका निधन हुआ। अपनी हत्या के चार दिन पहले गाँधीजी ने एक पत्र लिखकर अपनी मनोदशा को व्यक्त भी किया था।

वेंकटरामन के मुताबिक पत्र में गाँधीजी ने लिखा था कि आजादी का असली जश्न तब होता जब हम स्वतंत्रता के लिए लड़ते लेकिन स्वतंत्रता के लिए लड़ाई कहीं नजर नहीं आती। मुझे सब कुछ दिशाहीन-सा प्रतीत होता है। आप लोग भले ही भ्रमित न हों लेकिन कम से कम मैं तो ऊहापोह में हूँ। हम किसका जश्न मना रहे हैं।

गाँधीजी के लिखे यह वे शब्द हैं जिन्हें वेंकटरामन ने अपने घर में सहेज कर रखा है।

वेंकटरामन ने दावा किया कि गोडसे द्वारा गोली मारे जाने के बाद गाँधीजी के मुख से हे राम या राम-राम जैसे कोई शब्द नहीं निकले थे। उन दु:खद क्षणों को याद करते करते हुए उन्होंने कहा कि जब गोडसे ने गाँधीजी पर पाँच गोलियाँ दागीं मैं उनसे बमुश्किल आधे मीटर की दूरी पर खड़ा था। वे तत्काल नीचे गिर पड़े और उनके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला।

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