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अलग रह रही बहनें हिंसा कानून से बाहर

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नई दिल्ली , रविवार, 9 मई 2010 (13:44 IST)
विशेष कानूनों के गलत इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त करते हुए दिल्ली की एक अदालत ने व्यवस्था दी है कि संयुक्त परिवार से अलग रह रही किसी व्यक्ति की बहनों के खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर उन पर घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

अपर सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने पति की बहन होने की वजह से विशेष कानूनों का ‘दुरुपयोग’ करके याचिकाओं में महिलाओं को पक्षकार बनाए जाने पर चिंता व्यक्त की।

अदालत ने कहा अपने अलग मकान में रह रहीं विवाहित बहनों की न तो घर के सामान में कोई हिस्सेदारी है और न ही संयुक्त परिवार में। घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा चलाने के लिए इन दोनों परिस्थितियों का होना जरूरी है। बहरहाल, अदालत ने स्पष्ट किया कि विवाहित बहनों को अपने पुश्तैनी मकान में हिस्सेदारी के दावे से वंचित नहीं किया जा सकता।

अदालत ने माना कि विशेष कानूनों के दुरुपयोग के मामलों की संख्या बढ़ रही है। साथ ही इन अधिनियमों का इस्तेमाल निजी रंजिश के तहत बदला लेने के लिए भी किए जाने की बातें सामने आई हैं।

न्यायालय ने कहा दहेजरोधी कानून और घरेलू हिंसा निरोधक अधिनियम का गलत इस्तेमाल होना गम्भीर चिंता का विषय है। अदालत ने जोर देकर कहा कि विशेष कानून का इस्तेमाल करके विवाहित बहनों और बूढ़े माता-पिता को परेशान करने की किसी भी कोशिश को रोका जाना चाहिए। (भाषा)

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