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आतंकवाद को लेकर उर्दू मीडिया सांप्रदायिक

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नई दिल्ली (वार्ता) , मंगलवार, 10 मार्च 2009 (17:05 IST)
देश में हर साल बारह-चौदह पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी के दौरान मारे जाते हैं, इसलिए पुलिसकर्मियों की मुठभेड़ को फर्जी नहीं करार दिया जा सकता है।

केन्द्रीय जाँच ब्यूरो के पूर्व निदेशक जोगिंदरसिंह ने यहाँ सोमवार को 'आतंकवाद और भारतीय मीडिया' विषय पर उर्दू, हिन्दी और अंग्रेजी में किए गए अध्ययन की रिपोर्ट के लोकार्पण समारोह में यह बात कही।

नईदुनिया के प्रधान संपादक आलोक मेहता, श्री सिंह और बाटला हाउस मुठभेड़ के शहीद मोहनचंद्र शर्मा की पत्नी माया शर्मा ने इस रिपोर्ट का लोकार्पण किया।

भारतीय नीति फाउंडेशन द्वारा आयोजित समारोह में डॉ. सिंह ने कहा कि यह बहुत शर्मनाक है कि बाटला हाउस मुठभेड़ में पुलिस इंस्पेक्टर एमसी शर्मा की शहादत पर मीडिया ने प्रश्नचिह्न लगाया।

उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि मीडिया पूर्वग्रहों से परे है। हर अखबार का अपना एजेंडा है। कई का अलिखित एजेंडा भी है। उन्होंने कहा कि आज अखबारों की पहुँच 20 करोड़ लोगों तक है। वह जनमत बना रहा है और इस तरह के सर्वेक्षण करा रहा है, जिसमें प्रश्न भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर पूछे जा रहे हैं।

इससे पूर्व भारत नीति फाउंडेशन के मानद निदेशक राकेश सिन्हा ने कहा कि आतंकवाद और भारतीय मीडिया के संबंध में 25 उर्दू अखबारों का भी अध्ययन किया गया। इससे पता चलता है कि उर्दू मीडिया आतंकवाद के संबंध में कितना सांप्रदायिक है। वह मुम्बई आतंकवादी हमले के पीछे पाकिस्तान के बजाय इसराइल और सीआईए का हाथ मानता है और कसाब को पाकिस्तानी भी नहीं मानता।

उन्होंने यह भी दावा किया कि मुम्बई आतंकी हमले के समय किसी पत्रकार ने मुस्लिम ब्रदरहूड नामक वेबसाइट पर यह भी लिखा कि लालकृष्ण आडवाणी को गोली मार दी जानी चाहिए। इस घटना की उर्दू मीडिया में काफी चर्चा की गई।

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