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एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में शांति शिक्षा

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नई दिल्ली (भाषा) , सोमवार, 30 जून 2008 (21:54 IST)
राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने शांति शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण अंग बताते हुए इसमें समानता सामाजिक न्याय मानवाधिकार सहिष्णुता सांस्कृतिक विविधता जैसे विषयों को शामिल करने की सिफारिश की है।

इस संबंध में डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन साइकोलॉजी एंड फाउंडेशन ऑफ एजुकेशन (डीईपीएफई) वर्ष 2005 से शांति शिक्षा पेश कर रही है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की सिफरिशों में शांति शिक्षा को पूरी तरह से स्कूली शिक्षा का अंग बनाने की सिफारिश की गई है।

डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन साइकोलॉजी एंड फाउंडेशन ऑफ एजुकेशन (डीईपीएफई) की प्रमुख सुषमा गुलाटी ने बताया कि हम अभूतपूर्व हिंसा के दौर में जी रहे हैं।

इस दौर में असहिष्णुता, कट्टरवाद, विवाद का समाज में बोलबाला हो गया है जो विकास और कल्याणकारी कार्यो में बाधा उत्पन्न कर रहा है। उन्होंने कहा कि वैश्विक राष्‍ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर बढ़ती हुई हिंसा के चलते राष्ट्रीय स्कूली शिक्षा पाठ्यचर्या के ढाँचे में शांति शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिए जाने की जरूरत है।

गौरतलब है कि एनसीईआरटी के शांति पर शिक्षा के फोकस ग्रूप की स्थिति रिपोर्ट में शांति शिक्षा को ऐसे अंग के रूप में विकसित किए जाने की बात कही गई है, जिसमें पाठ्यचर्या स्कूल प्रबंधन शिक्षक विद्यार्थी संबंध और स्कूल की तमाम गतिविधियाँ समाहित हों।

गुलाटी ने कहा कि आज ज्यादातार स्कूलों में जिस प्रकार की शिक्षा दी जाती है उसमें सांकेतिक और वास्तविक हिंसा को ही बढ़ावा मिलता है। इन परिस्थतियों में शिक्षा को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है।

उन्होंने बताया कि शांति शिक्षा नैतिक विकास के साथ उन मूल्यों और दृष्टिकोण के पोषण पर बल देती है जो प्रकृति और मानव जगत के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि शांति शिक्षा के पाठ्यक्रम में पाकिस्तान के विशेषज्ञों के अनुभवों को भी शामिल किया गया है। एनसीईआरटी ने अपनी सिफारिशों में स्कूल में विशेष क्लबों और रीडिंग रूम की स्थापना की बात कही है जो शांति संबंधी समाचारों एवं ऐसी घटनाओं पर केंद्रित हो, जो सामाजिक न्याय और समानता के विरूद्ध हो।

इसके तहत ऐसी फिल्मों की सूची तैयारी करने और इन क्लबों या रीडिंग रूम में रखने की सिफारिश की गई जो शांति के मूल्यों को बढ़ावा देती हो। इसे समय समय पर स्कूलों में दिखाए जाने की बात भी कही गई है।

शांति शिक्षा के तहत स्कूलों में जाने-माने पत्रकारों को बुलाने की बात भी कही गई है, जहाँ बच्चों के साथ इनकी बातचीत कराने पर जोर दिया गया है। बच्चों के विचारों को भी प्रकाशित कराने की वकालत की गई है। इसके अलावा स्कूलों में धार्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता के उत्सव के आयोजन की बात भी कही गई है।

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