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कोमा में है कर्नाटक-सुप्रीम कोर्ट

कहा- सरकार को सत्ता में बने रहने का हक नहीं

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नई दिल्ली , मंगलवार, 3 मई 2011 (22:52 IST)
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कर्नाटक को एक ऐसा राज्य करार दिया जो ‘कोमा की स्थिति में’ नजर आ रहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि बीएस येदियुरप्पा सरकार अगर कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्याएं खड़ी होने के डर से भूमि अधिग्रहण नहीं कर सकती तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है।

न्यायालय ने यह कड़ी टिप्पणी राज्य सरकार के रुख पर आश्चर्य जताते हुए की। राज्य सरकार ने कहा था कि वह ‘कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए’ कई करोड़ रुपए की लागत वाली बेंगलुर-मैसूर बुनियादी संरचना गलियारा परियोजना (बीएमआईसीपी) के लिए निजी भूमि का अधिग्रहण करने की प्रक्रिया में धीमी गति से आगे बढ़ रही है।

न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर, न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि आप भूमि अधिग्रहण क्यों नहीं कर रहे हैं? कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्या का प्रश्न कहां उठता हैं? अगर आप भयभीत हैं तो राज्य में शासन मत कीजिए। अगर आप भयभीत हैं तो आप टिक नहीं सकते।

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की इस स्वीकारोक्ति पर भी आश्चर्य जताया कि उसने सड़क निर्माण की बुनियादी सुविधाओं के लिए भी भूमि अधिग्रहण नहीं किया है। पीठ ने सरकार के वकील से कहा कि आपने सड़कों के लिए भूमि अधिग्रहण क्यों नहीं किया। यह जनता के लिए है। आप कोमा की स्थिति में नज़र आ रहे हैं।

पीठ ने राज्य के महाधिवक्ता हरनाहल्ली की इस दलील पर ये टिप्पणियां की कि सरकार अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण करने को लेकर सतर्क है क्योंकि किसान कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्या खड़ी कर सकते हैं और प्रशासन को ऐसे मुद्दों पर संवेदनशील रहना चाहिए।

बेंगलुरु-मैसूर गलियारा परियोजना के तहत एक निजी निर्माण कंपनी 2500 करोड़ रुपए की लागत से पांच सैटेलाइट टाउनशिप का निर्माण करेगी। इस गलियारे से दो शहरों के बीच यात्रा की दूरी घटकर महज 90 मिनट की रह जाएगी।

इस परियोजना की परिकल्पना वर्ष 2004 में की गई थी, लेकिन इस पर अब तक काम शुरू नहीं हो पाया क्योंकि भूमि अधिग्रहण और कंपनी को फायदा पहुँचाने के लिए कथित तौर पर नियमों के उल्लंघन को चुनौती देते कई मामले कर्नाटक उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं।

परियोजना पर काम करने वाली कंपनी नंदी इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर एंटरप्राइजेस ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर राज्य पर आरोप लगाया कि वर्ष 2004 में मूल रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर होने के बावजूद सरकार भूमि अधिग्रहण में दिलचस्पी नहीं ले रही है। (भाषा)

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