Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्या भारत में व्यावहारिक है 'राइट टू रिकॉल'

हमें फॉलो करें क्या भारत में व्यावहारिक है 'राइट टू रिकॉल'
नई दिल्ली , रविवार, 29 सितम्बर 2013 (11:49 IST)
FILE
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के फैसले से भारतीय नागरिकों को नकारात्मक मतदान का अधिकार मिलने के बाद अब ‘राइट टू रिकॉल’ (निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार) की मांग तेज होने के बीच कानूनविदों एवं विशेषज्ञों ने भारत में लोकसभा क्षेत्रों के लिए मतदाताओं की संख्या अधिक होने, प्रक्रियागत जटिलताओं आदि के कारण इसे अव्यावहारिक बताया है।

लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा कि भारत जैसे बड़े देश में यह व्यवस्था स्थानीय निकाय के स्तर पर तो ठीक है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर यह व्यावहारिक नहीं है। अमेरिका में भी ‘राइट टू रिकॉल’ कुछ राज्यों में ही लागू है।

उन्होंने कहा कि भारत में एक लोकसभा सीट में मतदाताओं की संख्या 8 से 15 लाख तक होती है। अभी जिन देशों में ‘राइट टू रिकॉल’ का जो प्रावधान है, उसके तहत प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहीं 50 प्रतिशत और कहीं 10 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। इतने हस्ताक्षर जुटाना बड़ी समस्या है।

अगले पन्ने पर... आसान नहीं है राइट टू रिकॉल की राह...


पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपाल स्वामी ने कहा कि ‘राइट टू रिकॉल’ को भारत में लागू करना बहुत बड़ा कार्य है। इस प्रक्रिया के तहत सही मतदाताओं की पुष्टि करना आसान नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारत में एक लोकसभा सीट के तहत 10 से 15 लाख मतदाता आते हैं और औसतन 50 प्रतिशत मतदान करते हैं। अगर किसी सदस्य को वापस बुलाना है तो ‘राइट टू रिकॉल’ की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए हस्ताक्षर की पुष्टि करना बहुत जटिल कार्य है।

बहरहाल, कश्यप ने कहा कि अगर हस्ताक्षर की पुष्टि हो भी जाएगी तब भी यह आसान नहीं होगा। रिकॉल के लिए 50 प्रतिशत वोट की जरूरत होगी और यह कई चुनाव का मार्ग प्रशस्त करेगा।

हमारे यहां चुनाव पर आने वाला खर्च पहले ही काफी अधिक हैं और करीब 1,340 राजनीतिक दल हैं, ऐसे में यह अव्यावहारिक है। उन्होंने कहा कि एक अध्ययन के अनुसार लोकसभा में 83 प्रतिशत ऐसे सदस्य हैं जिन्हें प्राप्त वोट से अधिक मत उनके विरोध में पड़े हैं।

अगले पन्ने पर... कहां-कहां लागू है राइट टू रिकॉल...


राइट टू रिकॉल' का प्रावधान अमेरिका के लॉस एंजिल्स, मिशिगन, ओरेगन जैसे कुछ प्रांतों में लागू है। लॉस एंजिल्स में यह 1903 में और मिशिगन एवं ओरेगन में 1908 में लागू किया गया था। कनाडा में इसे 1995 में लागू किया गया था।

स्विट्जरलैंड की संघीय व्यवस्था में बर्न, सालोथार्न, थर्गउ, उड़ी प्रांत में यह व्यवस्था लागू है जबकि वेनेजुएला में अनुच्छेद 72 के तहत किसी सदस्य का आधा कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें वापस बुलाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है और इसके लिए 25 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं का मत जरूरी होता है। ऑस्ट्रेलिया में भी यह व्यवस्था अमल में है।

कौन बना था राइटू रिकॉल का पहला शिकार... अगले पन्ने पर...


गौरतलब है कि अमेरिका के उत्तरी डकोटा क्षेत्र के गवर्नर लिन जे. फ्रेजर ‘राइट टू रिकॉल’ के पहले शिकार बने। इसके दायरे में आने वाले दूसरे व्यक्ति कैलीफोर्निया के गवर्नर ग्रे डेविस थे जिन्हें 2003 में बजट कुप्रबंधन की शिकायत पर वापस बुलाया गया था।

भारत में सबसे पहले एमएन राय और इसके बाद जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण आंदोलन के दौरान ‘राइट टू रिकॉल’ पर जोर दिया था। हाल के वर्षों में अन्ना हजारे ने ‘राइट टू रिकॉल’ पर जोर दिया है। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi