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चंद्रयान की सफलता पर दुनिया की निगाहें

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नई दिल्ली (भाषा) , रविवार, 19 अक्टूबर 2008 (19:43 IST)
भारतीय कवियों, शायरों और फिल्मकारों के पसंदीदा चंद्रमा की पड़ताल के लिए बुधवार को जब चंद्रयान-एक रवाना होगा तो भारत ही नहीं दुनियाभर के वैज्ञानिकों के दिलों में सिर्फ दो ही हसरते होंगी कि यह मिशन कामयाब हो और इसमें लगे उपकरण कुछ ऐसी जानकारी जुटा सकें, जिससे धरती के इस एकमात्र उपग्रह के बारे में नए खुलासे हो सके।

चंद्रयान अभियान में भारत के प्रयासों को कई देशों ने तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी सहयोग देकर इस मिशन के महत्व को कई गुना बढ़ा दिया है, क्योंकि आज भी चंदामामा की कई गुत्थियों को वैज्ञानिक नहीं सुलझा पाए हैं।

चंद्रमा पर वैसे तो मनुष्य कदम रख चुका है, लेकिन जिन 12 लोगों के पग चाँद की धरती पर पड़े हैं, वे सभी अमेरिकी हैं। कोई गैर अमेरिकी अभी तक चाँद पर नहीं पहुँच सका है।

अंतिम बार 1972 में यूगेन सेरनैन और हैरिसन जैकश्मिट चंद्रमा पर गए थे। लेकिन आज भी इसकी मिट्टी इस पर जीवन की संभावना जमीन की संरचना ऑक्सीजन की उपलब्धता आदि के बारे में बहुत ठोस रूप से कुछ भी कह पाना मुश्किल है।

चाँद तक पहुँचने की पहली कोशिश 1957 में स्पुतनिक के जरिए रूस ने की, लेकिन उस पर पहला कदम अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन एडविन ने जुलाई 1969 में रखा।

हालाँकि अमेरिका के अपोलो-11 यान में तीन अंतरिक्ष यात्री गए थे, लेकिन सिर्फ दो ही सतह पर उतरे और माइकल कोलिन्स कमांड माड्यूल में बने रहे और आर्मस्ट्रांग ने नासा को रेडियो संदेश दिया ईगल हैज लैंडेड यानी ईगल उतर गया है।

अपोलो-11 मिशन के बाद अमेरिका ने अपोलो-12, 13, 14, 15, 16 और 17 मिशन चंद्रमा पर भेजे जिसमें अपोलो 13 के अंतरिक्ष यात्री सतह पर नहीं उतर सके और वे सिर्फ चक्कर लगाकर धरती पर लौट आए थे, क्योंकि यान के साथ कुछ दुर्घटना हो गई थी।

आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा की सतह पर पहुँचने के 30 साल पूरे होने पर अमेरिका में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, अपोलो की महत्वपूर्ण उपलब्धि इस बात का प्रमाण था कि मानवता सिर्फ इस ग्रह तक बंधी नहीं है और हमारा दृष्टिकोण उससे भी आगे जाने का है।

ऐसा नहीं है कि अपोलो-11 के यात्री एकबारगी चंद्रमा की धरती पर उतरे थे, बल्कि उनके यान ने इन लोगों के सतह पर उतरने से पहले दर्जनों बार करीब 68 मील की ऊँचाई पर चक्कर लगाया था और उसके बाद ल्यूनर लैंडर ईगल कमान एवं सर्विस माड्यूल से अलग हुआ था। लैंडर को सतह पर उतरने में करीब एक घंटे का समय लगा था।

मनुष्य के पहली बार चंद्रमा की धरती पर उतरने के बाद के मिशनों में चंद्रमा पर जीवन की तलाश पूरी होने की आस बलवती हुई लेकिन अब तक ऐसा कोई ठोस संकेत नहीं मिल सका है।

ल्यूनर प्रॉसपेक्टर मिशन के बाद यह जानकारी सामने आई कि इस उपग्रह पर बड़ी मात्रा में पानी उपलब्ध है। दरअसल 1994 के क्लेमेंटाइन मिशन ने आईस स्पॉट होने के संकेत दिए, जिससे पहले माना जाता था कि चंद्रमा पूर्णत: सूखा है।

अमेरिका के साथ-साथ चीन जापान ब्रिटेन मलेशिया और रूस की रूचि अब भी पृथ्वी से रात को चमकीले दिखने वाले इस उपग्रह में बनी हुई है।

नासा के ल्यूनर प्रॉस्पेक्टर आर्बिटर ने पाया कि चंद्रमा पर दर्रे हैं और वहाँ हाइड्रोजन बड़ी मात्रा में मौजूद है। चंद्रमा पर हीलियम की भी प्रचुर उपलब्धता मानी जाती है जो यदि धरती पर लायी जा सके तो ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में काफी मदद मिलेगी।

इसी के आधार पर अमेरिकी वैज्ञानिक वहाँ से अन्य ग्रहों की उड़ान भरने के ख्वाब सजाने लगे हैं। लेकिन अब भी चंद्रमा के बारे में पूर्ण जानकारी मनुष्य को उपलब्ध नहीं है और भारतीय चंद्र अभियान इसमें योगदान कर सकता है।

चंद्रयान-। का लक्ष्य चंद्रमा के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान संवर्धन करना है, जहाँ धरती के मुकाबले छठा अंश ही गुरुत्व बल लगता है। इसके साथ ही इसका उद्देश्य भारत की प्रौद्योगिकी क्षमता बढ़ाना और युवा भारतीय वैज्ञानिकों को ग्रह अनुसंधान का चुनौतीपूर्ण मौका उपलब्ध कराना है।

भारतीय अभियान हाई रिजोल्यूशन रिमोट सेंसिंग के जरिए विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम पर चंद्रमा के दृश्य इंफ्रारेड के निकट और एक्स रे क्षेत्रों का अध्ययन करेगा।

इस अभियान के दौरान चंद्रमा का व्यापक मानचित्रीकरण किया जाएगा, जो दुनिया में पहली बार हो रहा है क्योंकि पूर्व में दुनिया में जो भी अभियान हुए थे वे कुछ विशिष्ट क्षेत्रों या सिर्फ सीमित पहलुओं तक सिमटे हुए थे।

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का भी मानना है कि भारत के पहले चंद्र अभियान का आर्थिक और सामरिक महत्व है। लेकिन कुछ लोग इसे धन का अपव्यय भी मानते हैं।

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