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जब महात्मा गाँधी हुए आहत

गाँधीजी के ब्रह्मचर्य पर नई किताब

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नई दिल्ली (वार्ता) , गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008 (20:47 IST)
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग को लेकर उस जमाने के मराठी अखबारों ने चटखारे लेकर खबरें प्रकाशित की थीं और ब्रिटेन की लोकसभा में भी यह चर्चा का विषय बना रहा।

महात्मा गाँधी ने तब आहत हो कर इसका जोरदार खंडन किया था और 'हरिजन' में इसके जवाब में एक लंबा लेख भी लिखा था। गाँधी जी अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग के कारण हमेशा विवाद के केन्द्र में रहे। लखनऊ के पत्रकार रमाशंकर शुक्ल की नई पुस्तक 'महात्मा गाँधी-ब्रह्मचर्य के प्रयोग' में यह जानकारी दी गई है। गुरुवार को विश्व पुस्तक मेले में इस पुस्तक का लोकार्पण किया गया।

पुस्तक के अनुसार कुछ मराठी अखबारों ने यह खबर छापी की कि गाँधी जी कामी पुरुष हैं और उनका ब्रह्मचर्य उनकी काम वासना को छिपाने का साधन मात्र है। यह खबर ब्रिटेन की लोकसभा तक में चर्चा का कारण बन गई। इलाहाबाद आए अंग्रेज इतिहासकार मि. एडवर्ड टामसन ने इसे और हवा दी। उन्होंने इस बारे में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू और पी.एन.सत्रू से भी चर्चा की।

सब ने एक स्वर में खंडन किया। पुस्तक के अनुसार 1939 में बाम्बे क्रोनिकल में गाँधीजी के ब्रह्मचर्य के बारे में रपट छपी। इस रपट के जवाब में गाँधी जी ने चार नवम्बर 1939 हरिजन सेवक में एक लेख 'मेरा जीवन' शीर्षक से लिखा।

उन्होंने लिखा कि मेरे खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं वे अधिकतर मेरी आत्म स्वीकृतियों पर आधारित हैं जिन्हें संदर्भ से अलग करके पेश किया गया है। कहा गया है कि मेरा ब्रह्मचर्य अपनी वासना को छिपाने का साधन है। उन्होंने लिखा कि अगर स्त्रियों के प्रति मेरा झुकाव वासनापूर्ण होता तो अपने जीवन के इस काल में भी मुझे इतना साहस है कि मैंने कई शादियाँ कर ली होतीं। गुप्त या खुले स्वच्छंद प्रेम में मेरा विश्वास नहीं है।'

पुस्तक के अनुसार महात्मा गाँधी ने अपने ब्रह्मचर्य प्रयोगों के लिए तमाम स्त्रियों को साधन बनाया। वह यह मानकर चल रहे थे कि इन स्त्रियों में यौन इच्छा नहीं बची। वह खुद यौन रहित हो चुके थे। ऐसा उनका दावा था। गाँधी जी की शिष्याओं-मीरा, प्रेमा और डॉ. सुशीला नैयर में से किसी ने शादी नहीं की।

पुस्तक के अनुसार 1945 में गाँधीजी ने अपने आपको 1901 से बेहतर ब्रह्मचारी बताया। तब उनके ब्रह्मचर्य पर किसी ने सवाल नहीं उठाया था लेकिन 1945 में वह चारों ओर से सवालों से घिर गए।

1938 में उन्होंने सुशीला नैयर को लिखे पत्र में स्वीकार किया था कि उन्होंने ब्रह्मचर्य के प्रयोग को लेकर भयानक गलती की है और कितने वर्षों से वह गलती कर रहे हैं।

पुस्तक के अनुसार महात्मा गाँधी के जीवन से जितनी महिलाएँ आईं उनमें अधिकांश कम उम्र की लड़कियाँ थीं। द.अफ्रीका में वह 18 साल की माड से प्रभावित थे। एस्थर फैरिंग की उम्र 22 साल थी।

प्रेमा कंटक सिर्फ 18 साल की थीं। सुशीला नैयर के साथ जब महात्मा गाँधी ने सोना शुरू किया तो उसकी उम्र 18 साल थी। आभा के साथ उनका प्रयोग तब शुरू हुआ जब वह 16 साल की थीं।

पुस्तक के अनुसार अब सवाल उठता है कि ब्रह्मचर्य के प्रयोग का प्रयोजन क्या था। जैसा कि महात्मा गाँधी ने कहा कि संपूर्ण अंहिसा के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य जरूरी है। नोआखली में उनके ब्रह्मचर्य को लेकर जब विवाद चरम पर पहुँच गया तो उन्होंने अपने प्रयोग का नाम बदल दिया और उसे पूर्ण ब्रह्मचर्य का नाम दे दिया।

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