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डॉ. नैयर मसूद को सरस्वती सम्मान

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नई दिल्ली (वार्ता) , गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008 (20:31 IST)
उर्दू के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. नैयर मसूद को उनके कहानी संग्रह 'ताऊस चमन की मैना' के लिए वर्ष 2007 के सत्रहवें सरस्वती सम्मान के लिए चुना गया है।

के.के. बिड़ला फाउंडेशन द्वारा दिए जाने वाले इस पुरस्कार के तहत पाँच लाख रुपए और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। सरस्वती सम्मान प्रतिवर्ष संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषा की सम्मान वर्ष से पहले दस वर्ष की अवधि में प्रकाशित उत्कृष्ट साहित्यिक कृति को दिया जाता है।

इससे पहले यह सम्मान डॉ. हरिवंश राय बच्चन, रमाकांत रथ, विजय तेंडुलकर, हरिभजनसिंह, श्रीमती बालामणि अम्मा, शम्सुर्रहमान फारुकी, मनुभाई पाँचोली दर्शक, प्रो. शंख घोष, डॉ. इंदिरा पार्थसारथी, मनोज दास, डॉ. दलीप कौर टिवाणा, महेश एलकुंचवार, आचार्य गोविंद चन्द्र पाण्डे, सुनील गंगोपाध्याय, प्रो.के. अय्यप्प पणिक्कर और डॉ. जगन्नाथ प्रसाद दास को दिया जा चुका है।

लखनऊ में 1936 में जन्मे डॉ. मसूद ने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और इसके बाद इसी विश्वविद्यालय से 1957 में फारसी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1965 में उन्होंने उर्दू में और लखनऊ विश्वविद्यालय से फारसी में पीएचडी की उपाधि हासिल की। मसूद ने 21 से अधिक पुस्तकों का लेखन, संपादन और प्रकाशन किया है और उर्दू तथा फारसी में उनके लगभग दो सौ से अधिक लेख प्रकाशित हुए हैं।

डॉ. मसूद को उत्तर आधुनिक उर्दू तथा कथा साहित्य के प्रवर्तकों में से एक माना जाता है। उन्हें उर्दू अकादमी के कई पुरस्कारों और प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। ताऊस चमन की मैना उर्दू का लघु कथा संग्रह है, जिसमें फेर बदल विशेष रूप से अस्तित्व के ह्रास की तरफ बढ़ने के बारे में प्रभावशाली कल्पनाएँ की गई हैं।

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