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दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है...

तलत मेहमूद की पुण्यतिथि पर विशेष

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नई दिल्ली (भाषा) , गुरुवार, 8 मई 2008 (21:14 IST)
'दिले नादाँ...तुझे हुआ क्या है, शामे गम की कसम, जलते हैं जिसके लिए, फिर वही शाम...वही गम वही तन्हाई है...' जैसे गीतों के अमर गायक तलत मेहमूद ने अपनी गायिकी का सफर आकाशवाणी से गजल गायक के रूप में 1939 में शुरू किया था। 9 मई 1998 को इस अमर गायक ने दुनिया को अलविदा कह दिया था।

केवल 16 साल की उम्र में वे लखनऊ आकाशवाणी के लिए दाग जिगर और मीर की गजलें गाया करते थे। उनकी रेशमी आवाज ने 'एचएमवी' का ध्यान अपनी तरफ खींचा और 1941 में उनकी पहली डिस्क निकाली गई।

1944 में 'तस्वीर तेरी दिल बहला ना सकोगी' जैसे लोकप्रिय गाने ने मेहमूद को रातों-रात स्टार बना दिया। फिर उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा। 1949 में वे बॉलीवुड पहुँचे। उनके पहुँचने से पहले ही उनकी आवाज की खनक बॉलीवुड तक पहुँच चुकी थी।

यह वह दौर था जब गायक फिल्मों में अभिनेता भी होता था। उन्होंने हिन्दी की 13 फिल्मों और तीन बांग्ला फिल्मों में अभिनय किया था। तलत ने 17 भारतीय भाषाओं में गाने गाए थे।

तलत मेहमूद पहले भारतीय गायक थे, जिन्होंने 1956 में विदेश में पूर्वी अफ्रीका में कार्यक्रम दिया था। इसके अलावा उन्होंने लंदन के रॉयल अल्बर्ट हाल, अमेरिका के मेडिसन स्क्वेयर गार्डन और वेस्टइंडीज के जीन पियरे कॉम्प्लेक्स में कार्यक्रम दिए।

बॉलीवुड के 'गजल सम्राट' कहलाने वाले तलत मेहमूद का जन्म 24 फरवरी 1924 को हुआ था। 9 मई 1998 को अपने संगीत का खजाना संगीत प्रेमियों को सौंपकर वे दुनिया को अलविदा कह गए। उन्हें सरकार ने गायन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्म भूषण से नवाजा था।

तलत ने 1986 में आखिरी रिकार्डिंग गजल एल्बम 'आखिरी साज उठाओ' के लिए की थी। संगीत निदेशक नौशाद ने एक दफा कहा था क‍ि तलत मेहमूद के बारे में मेरी राय बहुत ऊँची है। उनकी गायिकी का अंदाज अलग है।

जब वे अपनी मखमली आवाज से अनोखे अंदाज में गजल गाते हैं तो गजल की असली मिठास का अहसास होता है। उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है और उन्हें पता है कि किस शब्द पर जोर देना है। तलत के होंठो से निकले किसी शब्द को समझने में कठिनाई नहीं होती।

निर्देशक और निर्माता मेहबूब खान जब कभी उनसे मिलते तो तलत के गले पर अँग‍ुली रखते और कहते खुदा का नूर तुम्हारे गले में है।

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