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रंग नहीं, जायके पर जोर देते हैं भारतीय

खाने को लेकर खानसामों की अलग-अलग राय

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नई दिल्ली (भाषा) , बुधवार, 9 जुलाई 2008 (17:25 IST)
जब खान-पान की आदतों की बात आती है तो भारतीय आज भी खाद्य पदार्थ की रंगत देखते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भारतीयों का दृढ़ विश्वास है कि खाने का रंग अच्छा है तो भोजन भी अच्छा ही होना चाहिए।

इंटर कांटिनेंटल के प्रमुख खानसामे इरशाद अहमद कहते हैं भारतीय सबसे पहले भोजन का रंग देखते हैं। उनका मानना है कि रंग अच्छा है तो स्वाद अपने आप ही अच्छा होगा।

कुरैशी कहते हैं कि वे चीन, जापान, मलेशिया, इंग्लैंड और पश्चिम एशिया गए हैं, जहाँ खानसामों की प्राथमिकता व्यंजनों का प्रस्तुतीकरण रहती है और रंगत से उन्हें कोई खास सरोकार नहीं रहता है, लेकिन भारत में व्यंजनों विशेषतौर पर मौसमी व्यंजनों को आकर्षक दिखाने के लिए विभिन्न प्रकार के और रंगों के मसालों का प्रयोग किया जाता है।

ताज होटल के कार्यकारी खानसामें राजेश वाधवा कहते हैं कि भारतीयों के लिए भोजन का स्वाद और स्थान का वातावरण भी मायने रखता है। आजकल भारतीय भोजन पकाने का माध्यम भी पूछने लगे हैं, हालाँकि इस विषय पर विदेशियों की ओर से ज्यादा जिज्ञासाएँ आती हैं।

राजधानी के इटालियन रेस्तराँ 'दिवा' की संचालिका रितु डालमिया कहती हैं कि वे दिन गए, जब भारतीय भोजन का रंग देखा करते थे। वैसे भी स्वाद ही हमेशा से प्राथमिकता रहा है।

रितु से सहमति जताते हुए 'इम्पिरियल' की वीना अरोरा कहती हैं भारतीय लोगों को पता रहता है कि उन्हें क्या चाहिए और उनके सामने उनकी पसंद साफ रहती है, इसलिए प्रयोग करना मेरे लिए आसान हो जाता है और इसी कारण अपने मैन्यू में नई रेसिपी जोड़ सकती हूँ। अब भारतीय वैश्विक स्वादों को अपना रहे हैं।

फेडरेशन ऑफ रेस्टोरेंट्स एंड होटल्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएचआरएआई) के पूर्व अध्यक्ष राजेश मिश्रा के अनुसार पकाए जाने की अनोखी प्रक्रिया के कारण भारतीय भोजन को विदेशों में अलग पहचान मिली है।

उनके अनुसार सिर्फ उत्तर भारतीय व्यंजन ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारतीय भोजन जैसे इडली डोसा और उत्तपम भी लोकप्रिय हो रहे हैं। मिश्रा कहते हैं कि भारत में खान-पान संस्कृति काफी भिन्न है और प्रत्येक व्यंजन को परोसने का तरीका भी अलग है। चीन या जापान में सी फूड को सजाए जाने की जरूरत होती है।

हो रही है सेहत की फिक्र : नामी खानसामे संजीव कपूर कहते हैं कि समय के साथ विश्वसनीयता में भी बदलाव आया है। 400 साल पहले हमारे पास मिर्च टमाटर या आलू नहीं थे, पर क्या आज हम इनके बिना भारतीय भोजन की कल्पना कर सकते हैं। हालाँकि आज भारतीय वैश्विक दृष्टिकोण दर्शा रहे हैं और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं।

रोजगार में इजाफा : वाधवा के अनुसार विदेशी भोजन में मसालों का स्तर एक समान बनाए रखना चाहते हैं। उनसे यह कहा जाए कि यह अधिक मसालेदार है तो भी वह इसे खाना पसंद करेंगे, क्योंकि वे भोजन के स्वाद को वैसे का वैसा ही बनाए रखना चाहते हैंकुरैशी कहते हैं विश्व के दूसरे भागों में भी भारतीय व्यंजन लोकप्रिय हो रहे हैं। इससे दूसरे देशों में भारतीय खानसामों के रोजगार अवसर भी बढ़े हैं।

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