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वोटर को मिला 'राइट टू रिजेक्ट'!

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नई दिल्ली , शुक्रवार, 27 सितम्बर 2013 (14:42 IST)
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में शुक्रवार को कहा कि मतदाताओं के पास नकारात्मक वोट डालकर चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों को अस्वीकार करने का अधिकार है। न्यायालय का यह निर्णय प्रत्याशियों से असंतुष्ट लोगों को मतदान के लिए प्रोत्साहित करेगा।

निर्वाचन आयोग को उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में और मतपत्रों में प्रत्याशियों की सूची के आखिर में ‘ऊपर दिए गए विकल्पों में से कोई नहीं’ का विकल्प मुहैया कराएं ताकि मतदाता चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से असंतुष्ट होने की स्थिति में उन्हें अस्वीकार कर सकें।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान (निगेटिव वोटिंग) से चुनावों में शुचिता और जीवंतता को बढ़ावा मिलेगा तथा व्यापक भागीदारी भी सुनिश्चित होगी, क्योंकि चुनाव मैदान में मौजूद प्रत्याशियों से संतुष्ट नहीं होने पर मतदाता प्रत्याशियों को खारिज कर अपनी राय जाहिर करेंगे।

पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान की अवधारणा से निर्वाचन प्रकिया में सर्वांगीण बदलाव होगा, क्योंकि राजनीतिक दल स्वच्छ छवि वाले प्रत्याशियों को ही टिकट देने के लिए मजबूर होंगे।

पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान की अवधारणा 13 देशों में प्रचलित है और भारत में भी सांसदों को संसद भवन में मतदान के दौरान ‘अलग रहने’ के लिए बटन दबाने का विकल्प मिलता है। व्यवस्था देते हुए पीठ ने कहा कि चुनावों में प्रत्याशियों को खारिज करने का अधिकार संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिए गए बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

आखिर क्या होगा राइट टू रिजेक्ट का असर... पढ़ें अगले पेज पर...



पीठ के अनुसार, लोकतंत्र पसंद का मामला है और नकारात्मक वोट डालने के नागरिकों के अधिकार का महत्व व्यापक है। नकारात्मक मतदान की अवधारणा के साथ, चुनाव मैदान में मौजूद प्रत्याशियों से असंतुष्ट मतदाता अपनी राय जाहिर करने के लिए बड़ी संख्या में आएंगे, जिसकी वजह से विवेकहीन तत्व और दिखावा करने वाले लोग चुनाव से बाहर हो जाएंगे।

पीठ ने हालांकि इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया कि ‘कोई विकल्प नहीं’ के तहत डाले गए वोटों की संख्या अगर प्रत्याशियों को मिले वोटों से अधिक हो तो क्या होगा। आगे पीठ ने कहा कि ‘कोई विकल्प नहीं’ श्रेणी के तहत डाले गए वोटों की गोपनीयता निर्वाचन आयोग को बनाए रखनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश एक गैर सरकारी संगठन ‘पीयूसीएल’ (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) की जनहित याचिका पर दिया, जिसमें कहा गया था कि मतदाताओं को नकारात्मक मतदान का अधिकार दिया जाना चाहिए। गैर सरकारी संगठन के आग्रह पर सहमति जताते हुए पीठ ने यह अहम फैसला दिया और यह कहते हुए चुनाव प्रक्रिया में नकारात्मक मतदान की अवधारणा को शामिल करने को कहा कि इससे मतदाताओं को अपने मताधिकार का उपयोग करने का और अधिकार मिलेगा।

यह फैसला चुनाव प्रक्रिया के बारे में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए कई फैसलों का हिस्सा है। पूर्व में, न्यायालय ने हिरासत में लिए गए लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक की व्यवस्था दी थी।

न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि गंभीर अपराधों में दोषी ठहराए जाने के बाद सांसद और विधायक अयोग्य हो जाएंगे। इस फैसले के तहत निर्वाचन कानून का वह प्रावधान रद्द हो जाएगा जो दोषी सांसदों विधायकों को तत्काल अयोग्य होने से बचाता है। न्यायालय की इस व्यवस्था को निष्प्रभावी करने के लिए सरकार एक अध्यादेश लेकर आई है।

क्या हकीकत बनेगा 'राइट टू रिजेक्ट'... पढ़ें अगले पेज पर...


हालांकि यह हकीकत के धरातल पर कब तक आएगा फिलहाल कहना मुश्किल है क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल शायद से इस निर्णय को पचा पाएगा। उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने चुनाव सुधार के मद्देनजर पहले भी एक अहम फैसला दिया था, जिसमें दागी सांसदों की सदस्यता रद्द करने तक की बात कही गई थी।

...लेकिन सरकार ने इस बात का पूरा इंतजाम कर लिया कि कानून बनाने वाले खुद कानून की पकड़ से बच निकलें। कैबिनेट ने अध्यादेश के माध्यम शीर्ष अदालत के उस आदेश को पलट दिया है, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी नेता को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसे चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया जाए। अत: सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का भी पालन होगा, इसमें संदेह ही है। सरकार और राजनीतिक दल इसका भी कोई न कोई तोड़ निकाल ही लेंगे।

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