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सोनियाजी, 1500 में कैसे चलाएं आंगनवाड़ी

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नई दिल्ली , बुधवार, 12 दिसंबर 2012 (09:06 IST)
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गर्भ में पल रहे तीन माह के भ्रूण से लेकर छह वर्ष की आयु तक बच्चे का पालन पोषण करने वाली आंगनवाड़ी की 'पन्ना धाय' को दैनिक मजदूरी से भी कम 100 रुपए की पगार मिलती है, जबकि जच्चा-बच्चा की देखभाल के अलावा उन्हें घर-घर जाकर पोलियो अभियान जैसे केन्द्र पोषित कार्यक्रमों के बारे में जागरूक करने और सरकारी सर्वेक्षण करने जैसी अन्य कई जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है।

उत्तरप्रदेश के सिद्धार्थनगर से आई आंगनवाड़ी कर्मी नीलम पांडे का कहना है कि उन्हें पिछले छह माह से एक पैसा भी नहीं मिला है, लेकिन वे इसी उम्मीद में यह सारा बोझ उठा रही हैं कि देर सबेर बकाया के साथ उन्हें पूरा पैसा मिल जाएगा।

मिर्जापुर की मीना कुमार का कहना था कि महंगाई के इस जमाने में तीन हजार रुपए में हम घर का खर्च का कैसे चलाएं। सोनिया गांधी महिला हैं, उन्हें महिलाओं का दर्द समझना चाहिए। हम इसी आसरे पर दिल्ली आए हैं कि सरकार हमारी परेशानियां समझेगी।

मिर्जापुर की ही आंगनवाड़ी सहायिका निर्मला देवी ने कहा कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मई में घोषणा की थी कि आंगनवाड़ी कर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाएगा, उन्हें स्कूलों में समायोजित किया जाएगा तथा पेंशन सुविधा भी दी जाएगी, लेकिन छह माह बीत जाने पर भी इस पर कोई अमल नहीं हुआ।

निर्मलादेवी का कहना था कि उनकी आंगनवाड़ी में न बर्तन हैं न ईंधन। वे लकड़ी का चूल्हा जलाकर किसी तरह खाना बनाती हैं।

महाराष्ट्र की नलिनी राउत ने कहा कि उन्हें आंगनवाड़ी के काम के अलावा सर्वेक्षण आदि का भी काम करना पड़ता है। राजस्थान की विमलादेवी का कहना था कि उन्हें सुपरवाइजर के शोषण का शिकार बनना पड़ता है। अकसर सुपरवाइजर बच्चों को मिलने वाला पोषण आहार बीच में ही हड़प लेती हैं।

आंगनवाड़ी कर्मियों ने बुधवार से शुरू यहां जंतर-मंतर पर दो दिवसीय धरना-प्रदर्शन के दौरान यह दास्तां बयान की। (भाषा)

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