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चुनाव सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग

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जालंधर , मंगलवार, 15 अप्रैल 2014 (19:33 IST)
जालंधर। आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव सर्वेक्षणों पर रोक लगाने की मांग करते हुए पंजाब के राजनीति के जानकारों ने कहा है कि ऐसे सर्वेक्षणों से देश के मतदाता भ्रम की स्थिति में आ जाते हैं। खासकर ऐसे मतदाता जिनके मत निर्णायक होते हैं। वे मजबूरन उसी दल या गठबंधन के पक्ष में अपना वोट दे आते हैं जिनके पक्ष में सर्वे की हवा होती है।

देश में चुनावों से पहले होने वाले चुनाव सर्वेक्षण को मतदान के दौरान जारी करने से रोक लगाने की मांग करने वाले राजनीति के जानकारों का यह भी कहना है कि यह केवल तीन चार फीसदी लोगों का विचार होता है जो देश के बाकी लोगों पर थोपा जाता है। न केवल मतदाताओं को बल्कि देश को भी ऐसे सर्वेक्षणों से बचना चाहिए।

पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक आशुतोष कुमार ने इस बारे में कहा, लोगों के दिमाग में एक ही बात आती है, जो जीतने वाली पार्टी या गठबंधन हैं उनके पक्ष में मताधिकार का इस्तेमाल करना है। ऐसे सर्वेक्षणों से एक खास प्रकार की हवा चल पड़ती है। किसी खास गठबंधन या दल के पक्ष में माहौल बन जाता है।

कुमार ने कहा, जिन मतदाताओं के मत निर्णायक होते हैं अर्थात जो मतदान के दिन यह निर्णय करते हैं कि उनका वोट किसके पक्ष में जाएगा। वे भी उसी दल या गठबंधन के पक्ष में मतदान करने को मजबूर हो जाते हैं जिनके पक्ष में सर्वेक्षण होते हैं।

कुमार ने कहा, मैं ओपिनियन पोल्स (चुनाव सर्वेक्षण) को प्रतिबंधित करने के पक्ष में नहीं हूं, लेकिन इसके लिए एक समय सीमा निर्धारित होना चाहिए। मेरा मानना है कि चुनाव आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद इसे रोक दिया जाना चाहिए। मतदान प्रक्रिया के बीच में तो बिलकुल भी नहीं होना चाहिए। ऐसे में मतदाता भ्रम की स्थिति में आ जाते हैं और उनकी ‘सोच हाइजैक’ हो जाती है, जिससे वे अपने तरीके से स्वतंत्र होकर मतदान नहीं कर पाते हैं।

दूसरी ओर गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंस के पूर्व अध्यक्ष डॉक्‍टर एसएस जोहल ने कहा, ओपिनियन पोल से सबको बचना चाहिए। यह तीन चार फीसदी लोगों का मत होता है। जो लोग यह करते हैं वह दरअसल अपनी ओर से इन तीन-चार फीसदी लोगों के मत को हम पर थोप देते हैं।

यह पूछने पर कि क्या आप ओपिनियन पोल को प्रतिबंधित करने के पक्ष में हैं, जोहल ने कहा, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ओपिनियन पोल को प्रतिबंधित कर दीजिए। मेरा कहना है कि हमें इससे बचना चाहिए क्योंकि ओपिनियन पोल समाज के खास वर्ग के कुछ फीसदी लोगों का विचार है। हम सब पर इसे थोप दिया जाता है और हमारे दिमाग को हाइजैक कर लिया जाता है।

उन्होंने यह भी कहा, वह ओपिनियन पोल को कैसे निर्धारित करते हैं। क्या इसकी कोई प्रणाली है और अगर ऐसा है भी तो क्या यह सबको स्वीकार्य है। अगर नहीं, तो फिर कैसे खास वर्ग के तीन चार फीसदी लोगों का विचार पूरे देश पर थोप दिया जाता है। इसका परिणाम होता है कि लोग खास दल के पक्ष में मतदान करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

हालांकि पंजाब विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफसर हरमोहिंदर सिंह बेदी ने कहा, ओपिनियन पोल का स्थान लोकतांत्रिक मूल्यों में है। यह अभिव्यक्ति है। सभी संवैधानिक संगठनों का फर्ज बनता है कि वह लोकतांत्रित मूल्यों की रक्षा और सुरक्षा जिम्मेदारीपूर्वक करें और इन मूल्यों के प्रति ईमानदार भी बने रहें।

उन्होंने कहा, किसी भी चीज को प्रतिबंधित कर दिया जाए, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि अब मतदाताओं को उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार मिल गया है। वह अपना काम वहां करेंगे। हां, यह अवश्य विचार का विषय है कि खारिज करने वालों का परिचय गुप्त रखा जाना चाहिए।

दूसरी ओर जालंधर के वरिष्ठ उपन्यासकार डॉक्‍टर अजय शर्मा मानते हैं, ओपिनियन पोल पूरी तरह फर्जी होता है ताकि किसी खास दल के पक्ष में हवा चलाई जाए। मैं यह जानना चाहता हूं कि इसका आधार क्या है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से इसका कुछ लेना-देना नहीं है।

शर्मा ने जोहल और कुमार की बात से सहमति जताते हुए कहा, ओपिनियन पोल को आचार संहिता लागू होने तक सीमित कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह एक ऐसी कुव्यवस्था है। यह आम लोगों की मानसिक अवधारणा को पूरी तरह बदल देती है जो लोकतंत्र के लिए घातक है।

जोहल ने हालांकि बाद में यह भी कहा कि ओपिनियन पोल के होने और न होने पर सविस्तार से चर्चा होनी चाहिए कि क्या तीन-चार फीसदी लोगों के विचारों को देश का विचार बताते हुए मीडिया, उद्योग एवं कॉर्पोरेट जगत तथा राजनीतिक दल को प्रभावित कर उन्हें अपने हिसाब से काम कराने की आजादी उन संगठनों को दी जानी चाहिए, जो ऐसे सर्वेक्षण करते हैं। (भाषा)

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