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प्राइमरी स्कूल वैश्विक मंदी की चपेट में

- ललित मोहन बंसल

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विश्व के सबसे धनी देश अमेरिका के पब्लिक प्राइमरी (पाँचवीं कक्षा तक) स्कूल भी वैश्विक मंदी की मार से नहीं बच पाए। यहाँ स्कूल के खर्चों में कटौती कर दी गई, क्लास रूम की संख्या घटा दी गई, एक कक्षा में छात्रों की संख्या डेढ़ गुना (अधिकतम 30) कर दी गई।

प्राइमरी स्कूल शिक्षकों के मजबूत संगठनों और उनके बीच लिखित समझौतों की वजह से शिक्षकों की छँटनी तो नहीं हो सकी लेकिन जहाँ जरूरत थी, उन्हें शहर के दूसरे स्कूलों में जरूर भेजा गया। यहाँ सरकारी स्कूलों में फीस माफ है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों में एक हजार से 1500 डॉलर प्रतिमाह फीस देनी पड़ती है।

मंदी के कारण स्कूलों के प्रशासकीय स्टॉफ के काम के घंटे कम कर दिए गए। बच्चों को मिलने वाली दूसरी सुविधाओं में कटौती कर दी गई। इस घड़ी में छात्रों के माता-पिता और अभिभावक एक मजबूत दीवार के रूप में काम आए। पैरेंट्स टीचर एसोसिएशन (पीटीए) ने स्कूल प्रशासन का जम कर साथ दिया, जो आज भी जारी है। पीटीए ने स्कूल प्रशासन की आर्थिक मजबूरी को सकारात्मक ढंग से लिया। ज्यादातर स्कूलों में पीटीए में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लग गई।

सिलिकॉन वैली में भारतीय और चीनी बहुल समुदाय वाले स्कूलों में भारतीयों ने हर जगह मोर्चा संभाला। फ्रांसिस्को के पास भारतीय, पाकिस्तानी और चीनी आदि एशियाई बहुल फ्रेमोंट शहर के फोरेस्ट पार्क स्कूल की पीटीए के अध्यक्ष महेश नवानी ने बताया कि इस क्षेत्र के पब्लिक स्कूलों में यह बेहतरीन स्कूल माना जाता है।

मंदी की मार और पीटीए की भूमिका के बारे में नवानी कहते हैं- जैसे ही नगरपालिका और राज्य सरकारों ने स्कूलों को मिलने वाली अनुदान राशि कम की, पीटीए की जिम्मेदारी बढ़ गई। क्रिसमस हो या कोई अन्य त्योहार, पीटीए- पैरेंट्स और अन्य लोगों को बुला कर मेले, समारोह और कार्यक्रमों से धन जुटाकर स्कूल की जरूरतें पूरी करते हैं। छुट्टी के दिन अभिभावक बच्चों को अप्पू घर की तरह ग्रेट अमेरिका या नासा जैसे ज्ञान-विज्ञान केंद्रों में ले जाते हैं। कभी- कभार नासा के वैज्ञानिक स्पेस के बारे में जानकारी देने आते हैं।

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