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चोर, डाकु और साधु

मूल गुजराती से हिंदी अनुवाद

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- (नीलम कुलश्रेष्‍ठ)
मेरे दो मित्र हैं, एक मैनचैस्टर में रहता है और दूसरा लिवरपूल में। वे एक-दूसरे को नहीं जानते हैं। मुद्दत हो गई थी उनसे मिले हुए। कभी चिट्ठी नहीं और न ही कभी टेलीफोन।

संयोग से एक दिन वे दोनों मित्र मुझसे मिलने के लिए आ गए। उन्हें देखकर मेरा मन खिल उठा। थोड़ा जल-पान और हंसी-मजाक की बातें करने के बाद उन्होंने अपनी-अपनी रामकहानी सुनानी शुरू कर दी।

एक बोला- 'भइयां, क्या बताऊं मैं अपने उस दोस्त के बारे में? वो दोस्त नहीं था, चोर था चोर। मेरा दिमाग फिर गया था, जो मैं उसे अपना सच्चा दोस्त समझ बैठा था। विनाश काले विपरीत बुद्धि।

एक दिन मैंने उसको अपने घर बुला लिया था, खिलाने-पिलाने के लिए। उसको तो पिलाई ही, लेकिन मैं उसके आने की खुशी में शराब कुछ ज्यादा ही पी गया। नशा मुझ पर कुछ ऐसा तर हुआ कि मुझे अपनी खबर नहीं रही। सुबह उठा तो देखा मेरी कलाई से सोने की महंगी घड़ी गायब थी। मैं सिर पीटकर रह गया। दोस्त भी चोर हो सकता है, मैंने कभी सोचा नहीं था।'

दूसरा दोस्त रुआंसा होकर बोला- 'मेरा वो दोस्त तो डाकू निकला, डाकू। बड़ा अपनापन दिखाता था। हमेशा मुझसे कहा करता था कि तुमको मेरे जैसा दोस्त नहीं मिलेगा। दोस्तों, घनिष्ठता बढ़ते ही उसने रोज ही मेरे घर आना शुरू कर दिया। मेरी गैरहाजिरी में भी वो आ जाता था।

एक दिन काम से लौटा तो मैंने देखा कि पत्नी गायब थी। हैरान-परेशान हुआ। मेज पर उसका पत्र पड़ा हुआ मिला। लिखा था- मैं तुम्हारे रोज-रोज के अत्याचारों से तंग थी इसलिए तुम्हें छोड़कर जा रही हूं, सदा-सदा के लिए। मुझे ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करना। दोस्तो, मेरे पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई, जब पता चला कि वो डकैती मेरे उस दोस्त ने की थी।'

'दोस्तो, मेरा अनुभव कुछ और ही है दोस्त के बारे में।' दोनों का दुखड़ा सुनकर मैं भी बोल पड़ा- 'मुझे नेक दोस्त मिला है। आप हैं और भी कई हैं। एक दोस्त तो मेरे मन में बसा रहेगा, सदा-सदा के लिए। उसकी याद कभी ध‍ूमिल नहीं होगी। अब वो ‍जीवित नहीं है। मेरे लिए उसने मौत को अपने गले से लगा लिया।

हुआ यूं कि हम दोनों स्कॉटलैंड की गहरी और सबसे बड़ी झील 'लोमोंड' में तैरने के लिए कूद गए। एक मगरमच्छ की लपेट में मैं आ गया। मेरा दोस्त मेरे बचाव के लिए आगे बढ़ा। मुझे तो बचा लिया उसने लेकिन वो खुद उसकी लपेट में आ गया।'

- अनुवादक - प्राण शर्मा

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