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तितली-कुंज : एक संस्मरण

- शकुन्तला बहादुर

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लो आ गए हम
कैलिफोर्निया में 'पिस्मो बीच' पर
तितलियों के कुंज में।
यहां
दूर-दूर तक
जहां तक भी दृष्टि जाती है
उड़ रही हैं, दस-पांच नहीं
सौ-हजार या लाखों-करोड़ों भी नहीं
अनगिनत हैं तितलियां
पीले और काले रंग की
मनमोहक-सी ये तितलियां।
ऊंचे संतरी से खड़े
यूक्लिप्टिस के सघन पेड़ों पर-
शाखाओं की पतली टहनियों पर-
पत्तों पर और सभी कहीं
कुछ शांत स्‍िथर-सी
कुछ पंख फड़फड़ाती सी
क्षण में उड़ जातीं
फिर दूसरे ही क्षण कहीं बैठ जातीं
कुछ क्षणों को बैठतीं मिल
मानो सभा-सी कर रहीं
प्यार के दो शब्द कहकर
फिर उड़ानें भर रहीं।

कब तक उड़ेंगी? किस दिशा में जाएंगी?
जाने बिना ही उड़ रहीं।
ति‍तलियों की बारात-सी है जा रही
और सबका मन प्रफुल्लित कर रहीं।
झूमती मदमस्त-सी ये तितलियां।

आंखों के सामने से-
एकदम निकट से, छूती हुई-सी
उड़ती हुई दूर चली जाती हैं।
आंखें अचरज से निहारती रह जाती हैं
ये अनेकों तितलियां‍

दाएं-बाएं, ऊपर-नीचे
पूरब-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण में
सब ओर तितलियां ही तितलियां।
आकाश में उड़ती दिखती हैं
पृथ्वी पर आती और जाती हैं
उन्हें किसी का डर नहीं
ये स्वतंत्र हैं यहां।
सचमुच अपने नाम को
सार्थक सिद्ध करती हुईं
ये 'मोनार्क' ही हैं इस क्षेत्र की
हैं राज करती तितलियां।

कितनी होंगी भला?
आकाश के अनगिनत तारों को
क्या कभी कोई गिन पाया है?
लगता है, हर बढ़ती भारत की आबादी से
ये होड़ करतीं तितलियां।
लग रहा ज्यों कुम्भ में स्नान करने जा रहीं
या चुनावी रैलियों से हैं स्पर्धा कर रहीं
दर्शकों को हैं लुभातीं निरंतर ति‍तलियां

कभी लगता कि मानव-मन में उठतीं
प्रतिपल नित नवीन आकांक्षाओं के अम्बार सी
या फिर सागर की निरंतर उठती
ऊंची-नीची अगणित हिलोरों सी
पर्यटकों को दूर से आकृष्ट कर मोहती सी
अपनी छोटी सी जिंदगी में-
सतत गतिशील, उड़ान भरतीं
आनंदित सा करतीं ये तितलियां

ये अचानक क्या हुआ?
ये झुंड के झुंड सघनता से
उड़ चले अं‍तरिक्ष में।
टिड्डियों के दलों सी ये ति‍तलियां।
हिमपात में जैसे बरफ के फाए
समग्रता से दृष्टि को ढक लें
ठीक वैसे ही दृष्टि को ढकतीं
उड़ती हुई रंगीन सी ये तितलियां।

इस अनोखे दृश्य से, सौंदर्य से
प्रकृति के विचित्र करिश्मे से
प्राप्त हुए आनंद के ये क्षण
कभी न भूलने वाली मधुर-स्मृतियों के
काफिले बन जाएंगे।
और जीवन में बार-बार
मन को हर्ष-विभोर कर जाएंगे।

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