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परित्यक्ता : भाग-3

हमें फॉलो करें परित्यक्ता : भाग-3
- कुसुम सिन्हा

गतांक से जारी...

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राजीव फिर नूतन को घर छोड़ जाने लगे थे। अभी स्कूल नहीं जा रही थी क्योंकि काफी कमजोर हो गई थी। फिर एक दिन शाम दफ्तर से लौटते समय राजीव वंदना के घर आए तो थोड़े परेशान से थे। लगता था जैसे कुछ कहना चाह रहे थे परंतु संकोचवश कुछ बोल नहीं पा रहे थे। उसने माँजी से कहा- क्या मैं आपका बेटा नहीं बन सकता। माँ ने तुरंत कहा- क्यों नहीं? रिश्ते सिर्फ खून के ही नहीं होते, भावनाओं के भी होते हैं। तुम तो मेरे बेटे जैसे ही और मैं तुम्हें अपने बेटे जैसा ही प्यार करती हूँ।

राजीव ने झुककर माँजी के पाँव छू लिए और बोला- तो माँजी नूतन को अपनी पोती के रूप में स्वीकार कर लीजिए। अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो। अब उन्हें राजीव की बातों का मर्म समझ में आया और वे एकटक राजीव की ओर देखने लगी। क्या बोल रहा है यह? ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं? थोड़ी देर बाद बोली- मुझे सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए। फिर वंदना क्या सोचती है, यह भी तो जरूरी है।

फिर दो-तीन दिनों तक न राजीव आए और न नूतन ही आई। वंदना के हृदय में उथल-पुथल मची थी। निर्णय करना बड़ा मुश्किल था। माँ तो यह कहकर निश्चिंत हो गई कि वंदना जैसा चाहे। लेकिन वंदना क्या करे? जब भी इस विषय पर सोचती, आँसुअओं की झड़ी लग जाती। कितना प्यार करती थी अमर से? वह कैसे उसे झटककर चला गया? वह तो चाहती थी कि जन्म -जन्मांतर तक उसकी पत्नी बनी रहे। उसके तो संस्कार कहते थे कि किसी पर-पुरुष की ओर इस दृष्टि से देखे भी नहीं। अमर ने ऐसा क्यों किया?

फिर उसने सोचा अगर अमर को कोई स्त्री मिल सकती है तो वंदना किसी और के विषय में क्यों नहीं सोच सकती? इस प्रकर उसके हृदय में विचारों की आँधी चल रही थी किंतु निर्णय तो लेना ही था। इतना बड़ा कदम उठाने में माँ को भी डर लग रहा था फिर सोचती थीं कि मेरे बाद इन दोनों का क्या होगा? मेरे जीवन का क्या भरोसा? कोई तो हो जो मेरे पोते और मेरी बहू का ध्यान रख सके।

मेरी आँखों के सामने अगर सही व्यक्ति हाथ थाम ले तो निश्चिंत होकर मर सकेंगी। फिर भी निर्णय वंदना को करना है। वंदना है कि सोचे जा रही है। वह तो अमर को दिलोजान से प्यार करती थी और उसे हर प्रकार का सुख देना चाहती थी। फिर उसे अमर ने क्या सोचकर छोड़ दिया? उसमें क्या कमी थी? वंदना फिर रोने लगी थी। उसे अपनी चिंता नहीं थी पर नन्हे अतुल को वह पिता का प्यार कहाँ से दे? निर्णय तो करना ही था?

तीन दिन के बाद राजीव आया। बड़ा उदास लग रहा था। कैसा परेशान सा था। उसने माँजी को प्रणाम किया और पूछा आपने क्या निश्चय किया है माँजी? उसका स्वर काँप रहा था। अगर ना सुनने को मिला तो उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचेगी। माँ ने सकुचाते हुए कहा- मैं वंदना को भेजती हूँ। तुम उसी से बात कर लो। वंदना ने आकर नमस्ते की तो उस की आँखें लाल थीं।

वंदना ने कहा- मैं अतुल के लिए पिता का प्यार चाहती हूँ पर भीख ‍में मिला प्यार नहीं। अगर बिना किसी पूर्वाग्रह के उसे अपना सके तो मुझे बहुत खुशी होगी। राजीव ने कहा- मैं भी तो यही चाहता हूँ और इसी डर से विवाह से दूर भागता रहा हूँ पर आपको देखकर यही लगा कि मेरी बेटी को माँ का प्यार आप ही दे सकती हैं और इसीलिए मन में यह ख्याल आया।

राजीव ने उठकर वंदना के हाथ पकड़कर लिए- बोला धन्यवाद बहुत-बहुत धन्यवाद। उसी समय माँजी आ रही थी किंतु उल्टे पैर लौट गईं। मारे उत्तेजना के उनके हाथ-पैर काँप रहे थे। उनके बेटे की जगह कोई और ले रहा था। फिर भी वे खुश थीं। उन्हें राजीव गंभीर लड़का लग रहा था और वे भी उसे प्यार करने लगी थीं। एक सप्ताह बाद राजीव-वंदना की ने कोर्ट में जाकर विवाह कर लिया। सभी साथ रहने लगे थे।

राजीव अतुल को बहुत प्यार करने लगा था। इसी प्रकार नूतन को वंदना भी ज्यादा चाहने लगी। दोनों ही संतुष्ट थे, खुश थे, निर्णय सही था। घर में एक प्रकार की जो उदासी थी वह काफूर हो गई थी। सभी साथ घूमने जाते और हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत होने लगा। एक दिन नूतन ने वंदना के गले में बाँहें डालकर पूछा- तुम कहाँ चली गई थी माँ। पापा कहते थे मर गई? यह मरना क्या होता है? वंदना ने कहा- मैं बाहर चली गई थी न इसी से तुम्हारे पापा ने ऐसा कहा ‍होगा। अब तो मैं आ गई हूँ। नूतन ने कहा- अब मुझे छोड़कर न जाना। तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता।

आज नूतन को स्कूल भेजकर वंदना रसोई में व्यस्त थी कि राजीव के हँसने की आवाज सुनकर बाहर आ गई। उसने देखा राजीव ने अतुल को नहलाकर एक बड़ा सा तौलिया उसकी कमर में लपेट दिया था और बड़े नाटकीय ढंग से अतुल को सैल्यूट मार रहे थे। वंदना को हँसी आ गई और उसने झुककर राजीव के गाल चूम लिए। यही तो कमी थी उसके जीवन में जिसके कारण इतना दु:खी थी वह। राजीव ने कितने सुंदर ढंग से उसे पूरा कर दिया था। वह जितना भी एहसान माने राजीव का कम था। उसकी जिंदगी फूलों से भर उठी थकी। अतुल ने इसी बीच कहा- थैंक्यू बोलो पापा। थैंक्यू बोलो। फिर दोनों ही खिलखिलाकर हँस दिए।

वंदना को लग रहा था कि उसका निर्णय ‍ठीक ही था। नहीं तो ये खुशियों भरे दिन कहाँ देखने को मिलते? राजीव अतुल को हृदय से प्यार करता था। माँजी भी खुश और नूतन भी। अब वह किसी की परित्यक्ता नहीं था। उसका एक पति था, एक बेटा और एक बेटी। ऊपर से माँजी का आशीर्वाद भी। और क्या चाहिए उसे? (समाप्त)

साभार- गर्भनाल

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