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लंदन का आकर्षण और उसकी बौद्धिकता

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- डॉ असगर वजाहत

5 जुलाई 1946 को फतेहपुर में जन्म। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमए और पीएचडी। लिखने की शुरूआत कॉलेज के दिनों से हुई। लघुकथा, नाटक, उपन्यास और दीगर विषयों पर दर्जनों आलेखों का प्रकाशन। अभी तक 19 किताबें छप चुकी हैं, जिनमें पाँच कथा संग्रह, चार उपन्यास, छह नाटक और नुक्कड़ नाटकों के संग्रह शामिल है। अँग्रेजी रूसी और इतालवी में कहानियों का अनुवाद हुआ। फिल्मों और टेलीविजन के लिए भी लिखा। कोलाज, रेखाचित्रण और फोटोग्राफी में भी दखल रखते है। पाँच साल तक बुडापेस्ट, हंगरी में हिंदी के प्रोफेसर। अनेक पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं

लंदन एक आकर्षित करने वाला शहर है। मेरे लिए लंदन का आकर्षण उसकी बौध्दिकता है जो असहमतियों को भी स्थान देने पर विश्वास करती है। मैं कई वर्षों से इस मौके की तलाश में था कि लंदन में कम से कम एक महीना रह सकूँ। मेरी यह इच्छा पिछले साल गर्मिर्योमें पूरी हुई जब कथा यूके
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के महामंत्री श्री तेजेन्द्र शर्मा ने बताया कि मुझे इस वर्ष का इंदु शर्मा कथा यूके सम्मान लेने के लिए लंदन आना होगा। मैं गया। कथा यूके ने जिस आत्मीयता, गंभीरता, लगन और साहस के साथ कार्यक्रम किया था वह अपने आप में अनूठा अनुभव रहा

एक सप्ताह तक कथा यूके का मेहमान रहने के बाद मैं अपने भतीजे के साथ शिफ्ट हो गया। इससे पहले तेजेन्द्र शर्मा मुझे यार्क की यात्रा पर ले गए थे। यार्क का पुराना शहर प्राचीन योरोपीय गाथाओं का शहर लगता ह। लंदन को उसा शहर माना जाता है जहाँ सबके लिए जगह है, पूरे यूरोप में जो लोग अपने निर्भीक, क्रांतिकारी तथा समाज व्यवस्था को चुनौती देने वाले विचारों के कारण प्रताडि़त और निष्कासित किए जाते रहे है, उन्हें लंदन में शरण मिलती रही है। कार्ल मार्क्स और रूसो के अलावा भी ऐसे तमाम बुद्धिजीवी राजनैतिक नेता हैं जो लंदन में शरण लेते रहे हैं और लिए हुए हैं।

मैंने अपने पुराने मित्र सुरेंद्रकुमार जैन और नए मित्र इस्माइल चुनारा के साथ लंदन को खोजने का फैसला किया। इस्माइल चुनारा अँग्रेजी में नाटक और लेख आदि लिखते हैं। जाने-माने व्यक्ति हैं, उनके नाटकों का मंचन भारत के कई शहरों में हो चुका है। वे लंदन में तीस-पैंतीस साल से रह रहे हैं और कहा जा सकता है, चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। इसके अलावा अगर आपको आज के जमाने में कोई शरीफ, हमदर्द और मिलनसार दोस्त की जरूरत हो तो चुनारा साहब से जरूर मिलिए

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सबसे पहले हमने तय किया कि लंदन की फुटपाथिया बाजारों को देखा जाए। ये वे बाजार हैं जो सप्ताह में एक बार सड़क के किनारे फुटपाथ या सड़क के किनारे लगते हैं। यह देखकर आश्चर्य हुआ, खुशी भी हुई कि कि प्रशासन सड़क के किनारे दुकानें लगाने वालों का भी बड़ा ध्यान रखता है। उनका पंजीकरण होता है। (जैसा अब कोलकाता में शुरू किया गया है।) उन्हें बिजली, फोन, पानी आदि सुविधाएँ मिलती है ।

लंदन के दिल यानी ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट और आसपास के इलाके में आप अपनी कार द्वारा नहीं जा सकते, यहाँ केवल पब्लिक ट्राँसपोर्ट यानी बसों और टैक्सियों के माध्यम से जाया जा सकता है। मुझे ध्यान आया कि दिल्ली के कनाट प्लेस के अंदर इसका उल्टा है यानी आप कनाट प्लेस के अंदर अपनी प्रायवेट कार से ही जा सकते हैं, बस से नहीं। यहीं दिखाई पड़ता है लोकतंत्र और लोकतंत्र में अंतर।

ऐतिहासिक इमारतें, पर्यटन स्थल, पार्क, मनोरंजन की जगहें क्या था जो हमसे छूटा।

और महत्वपूर्ण यह रहा कि तेजेन्दर शर्मा, सूरज प्रकाश और जाकिया जुबैरी के साथ मैं लंदन के हाईगेट इलाके के उस कब्रिस्तान में भी गया जहाँ कार्ल मार्क्स दफन हैं। उसके आसपास के इलाके में कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट और अन्य विद्रोही राजनेताओं-कार्यकर्ताओं को दफन किया गया है। वह कब्रिस्तान का वामपंथी कोना बन गया है

लंदन की सुंदरता इमारतों में नहीं, उसके आचार व्यवहार में है जो स्थापित लोकतंत्र की मान-मर्यादाओं पर आधारित है।

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