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सच और झूठ

- शंभू बादल

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GN

दोस्त!
तुम लिखते हो कविता
लिखते हो उपन्यास
लिखते हो नाटक कहानी लेख आलोचना
सब सच-सच?

जीवन के सुख-दुख उतारते हो कागज पर
परंतु जीवन कितना झूठा है?
कम‍ीज की सफेदी की भीतर
कितने धब्बे हैं तुम्हारे पास?

झूठ-सच का मैल
किस चादर से ढ़ँकते हो?
इनके ब‍ीच के अपशब्द
कब फूटेंगे?
टकराव कब चमकेगा?

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