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दोस्त! तुम लिखते हो कविता लिखते हो उपन्यास लिखते हो नाटक कहानी लेख आलोचना सब सच-सच? जीवन के सुख-दुख उतारते हो कागज पर परंतु जीवन कितना झूठा है? कमीज की सफेदी की भीतर कितने धब्बे हैं तुम्हारे पास? झूठ-सच का मैल किस चादर से ढ़ँकते हो? इनके बीच के अपशब्द कब फूटेंगे? टकराव कब चमकेगा?