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भरपेट खाने से वजन पर असर नहीं

हमें फॉलो करें भरपेट खाने से वजन पर असर नहीं
- आभा मोंढे निवसरकर

आमतौर पर मोटे लोगों को सलाह दी जाती है कि वे कम से कम खाएँ और मीठे से दूर रहें, बस सलाद ही खाएँ और दाल का पानी पिएँ और भी न जाने क्या क्या। लेकिन अगर ऐसा हो जाए कि खाना भी भरपेट खाएँ और वजन भी न बढ़े तो कैसा। हो सकता है यह आपको असंभव लगे लेकिन जर्मनी के एसन शहर में रहने वाली एक महिला हेसे से पूछिए तो उनका जवाब होगा, बिलकुल ऐसा मुमकिन है।

वे पिछले एक साल से भरपेट खा रही हैं, लेकिन उनका वज़न कम हो रहा है और इसके लिए कोई हेल्थ क्लब नहीं। वे बताती हैं कि बहुत खाना है मुझे वज़न कम करने के लिए। सुबह चार ब्रेड जैम के साथ फिर चार पाँच घंटे कुछ नहीं, फिर दोपहर का भोजन जिसमें मैं सब कुछ खा सकती हूँ- केक, आइसक्रीम जो भी दिल चाहे। लेकिन रात को सिर्फ प्रोटीन. ब्रेड, मीठा, मटर, गाजर नहीं खाना है। बस! जब भी खाना है भरपेट खाना है।

ये शोध जर्मनी के एसन शहर के आहार विशेषज्ञ डॉक्टर डेटलेफ पापे ने किया है। उनका कहना है कि नींद में वजन घटाएँ और इसके लिए डाइटिंग नहीं, कोई गोली नहीं, कोई उबाऊ भोजन नहीं। डॉ. पापे का मूलमंत्र है भरपेट खाएँ। उन्होंने पिछले वर्ष इससे संबंधित पुस्तक श्लांक इम श्लाफ जर्मन भाषा में प्रकाशित की थी, जिसका पोलिश, स्पेनिश सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है लेकिन अँगरेजी और हिन्दी में अभी तक नहीं हुआ और यह जर्मनी में सबसे अधिक बिकने वाली किताबों में थी।

* लेकिन भरपेट खाएँ और वज़न ये कैसे संभव है
- डॉ पापे- बिलकुल संभव है क्योंकि इस तरह खाने से व्यक्ति के शरीर की प्राकृतिक, जैविक प्रणाली फिर से काम करने लगती है। हर व्यक्ति के शरीर का तापमान 37 डिग्री होता है, जिसे बनाए रखने के लिए शरीर को बहुत ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है और यह ऊर्जा शरीर दिनभर के खाने से लेता है। रात में आठ या दस घंटे जब हम कुछ नहीं खाते तो शरीर कैलोरी का इस्तेमाल शरीर का तापमान बनाए रखने के लिए करता है।

हर व्यक्ति के वजन के हिसाब से रात में शरीर कम से कम 30 से 50 ग्राम वसा यानी चर्बी जलाता है, लेकिन देर रात को खाना खाने से सारी प्रक्रिया उलट जाती है क्योंकि हमारी कोशिका में पाया जाने वाला हार्मोन इंसुलीन वसा कोशिकाओं को ठीक उसी तरह बंद कर देता है जैसे कोई कॉर्क से बोतल बंद करता है।

* जीवन में यह कैसे किया जा सकता है
- डॉ. पापे - सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रात को कार्बोहाईड्रेट वाली चीजें न खाएँ। मतलब रात को चावल, आलू, ब्रेड, फल, जूस या कोई मिठाई खाने से हमें बचना चाहिए। इन चीजों का स्वाद आप दिन में ही लें तो बेहतर होगा। कार्बोहाइड्रेट, तली हुई चीजें या मीठा आप दिन में खा सकते हैं, लेकिन रात को शरीर को प्रोटीन की ज़रूरत होती है। इसके लिए आप दही, तीन अंडे या मछली ले सकते हैं। साथ ही सलाद या सब्जी खा सकते हैं। इसके अलावा दालें भी खाई जा सकती हैं, जिसमें प्रोटीन भरपूर मात्रा में मिलता है।

* श्लाकं इम श्लाफ यानी नींद में वजन घटाएँ, इस सिद्धांत पर कैसे पहुँचे।
- डॉ पापे- मैं पिछले बीस साल से मोटापे से होने वाली बीमारियों पर काम कर रहा हूँ। मैंने बहुत प्रयोग किए एक्यूपंक्चर सीखा जिससे भूख रोकी जा सकती है, लेकिन यह तरीका इतना अच्छा नहीं है क्योंकि इससे मांसपेशी को पोषण नहीं मिलता। इसके अलावा रोकोस डायटिंग, और भी बहुत कुछ किया लेकिन हर डायटिंग में कुछ न कुछ कमी थी। फिर नब्बे के दशक में मैंने देखा कि मोटे लोगों को अधिक मात्रा में प्रोटीन खाने की सलाह दी जाती है औऱ इससे उनका वजन जल्दी घटता है। इसी तरह प्रयोग करके आज का श्लांक इम श्लाफ यानी नींद में वजन कम करने सिद्धांत आया।

* वैसे तो डाइट के लिए महिलाओं की संख्या अधिक होती है। तो क्या आपके पास भी महिलाएँ ही ज़्यादा आती हैं?
- डॉ पापे- जी! अकसर देखा यह गया है कि डायटिंग के लिए महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है, लेकिन मेरे यहाँ इन दिनों बिलकुल अलग है। मेरे पास आने वाले लोगों में पुरुषों की संख्या पच्चीस प्रतिशत है जो कि सामान्य से ज्यादा है। क्योंकि यहाँ कोई डायटिंग नहीं है। इसीलिए पुरुष भी यहाँ आना पसंद करते हैं। महिलाओं के मुकाबले पुरुष जल्दी वजन कम करते हैं।

* भोजन के बाद शरीर में इंसुलीन किस तरह से काम करता है?
- डॉ पापे- सारा काम इंसुलीन हारमोन का होता है। भोजन के बाद ताले-चाबी की तरह इंसुलीन वसा प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट को अपनी अपनी जगह पर भेजता है। कोशिका जो है वह एक बंद चहारदीवारी और इसके दरवाजे का ताला है इंसुलीन रिसेप्टर और चाबी है इंसुलीन। तो जैसे ही हमारा खाना पचता है और पोषक पदार्थों के आते ही झट से दरवाजा खुलता है तो सारे पोषक पदार्थ कोशिका में चले जाते हैं। सारे मतलब वसा यानी चर्बी भी।

* इंसुलीन का सेल्स यानी कोशिकाओं में बढ़ा हुआ स्तर ज्यादा हो तो ये मोटापे की वजह बनता है?
- डॉ पापे- अगर हम रात को वसायुक्त भोजन करते हैं तो इंसुलीन हारमोन सब कुछ कोशिका में भर लेता है और फिर वसा जलने की बजाए जमा होता जाता है और अगर सालभर (तीन सौ पैंसठ दिन) यही किया जाए तो सोचिए कितना वसा कोशिका में जमा होगा।

डॉ. पापे का कहना है कि कोशिका में वसा जमा नहीं होने देना वज़न घटाने के लिए पहला और आख़िरी कदम है। डॉ. पापे का मानना है कि अगर मधुमेह शुरुआती दौर में हो तो इस कार्यक्रम की सहायता से उसे काबू में रखा जा सकता है।

- डॉ पापे- अगर हम कोशिका को वसा और मीठे से पूरा न भरें लेकिन भरपूर खाएँ तो क्या होता है कि इंसुलीन की मात्रा बढ़ती नहीं है इंसुलिन वसा को बंद करके नहीं रखता और इसीलिए कोशिका में वसा जमा होने की बजाय जलता रहता है।

* रात में प्रोटीन खाने से क्या होता है
- डॉ पापे- जब हम रात को प्रोटीन खाते हैं तो एक हारमोन जिसे हम बिलकुल भूल जाते हैं उसका प्रवाह शुरू हो जाता है। यह हारमोन है सोमेटोट्रोपीन जिसे एसटीएच भी कहा जाता है। इस हारमोन के कारण शरीर में प्राकृतिक रूप से वसा जलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसे लिपोलेसिस कहते हैं। इस हारमोन के कारण कोशिका का दुबारा निर्माण शुरू हो जाता है और शरीर के अंगों में सुधार का और पुनर्निर्माण का काम आरंभ होता है। इस प्रक्रिया में शरीर ऊर्जा का उपयोग करता है और शरीर का तापमान 37 डिग्री पर बनाकर रखता है और इस प्रक्रिया के जरिए हर घंटे बड़ी मात्रा में शरीर में भरपूर मात्रा में जलता है।

* डॉ. पापे आप मोटापे को आलसीपन के तौर पर देखते हैं या एक बीमारी के रूप में?
- डॉ पापे- नहीं आलसीपन से इसका कोई लेना-देना नहीं है। मैं आपको बता दूँ कि खेलकूद भी वजन कम करने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाता है। क्योंकि खेलकूद छोड़ने के बाद खिलाड़ियों की भूख उतनी ही रहती है और उस ऊर्जा का उपयोग नहीं होता तो वसा शरीर में जमा होने लगता है।

डॉ पापे का कहना है कि पिछले कुछ सालों में जब से लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ी है तब से लोगों को सादा भोजन अच्छा नहीं लगता सिर्फ आलू हम नहीं खा सकते, उसके साथ हमें बटर चाहिए और पचास चीजें और चाहिए।

* तो क्या इस दुनिया में कोई ऐसा देश है जहाँ आदर्श भोजन खाया जाता हो?
डॉ पापे- हमेशा जहाँ लोग गरीबी में रहते हैं और जहाँ लोग सादा भोजन करते रहे हैं और जहाँ एक व्यवस्था थी कि सुबह नाश्ता फिर काम, दोपहर का खाना फिर काम और रात को सादा भोजन करते थे, वहाँ सालोंसाल लोग बिलकुल स्वस्थ थे और उन्हें डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। अगर चीन की बात की जाए तो वहाँ करोड़ों लोग हैं जो दुबले-पतले हैं और स्वस्थ हैं। ये लोग बिलकुल सादा खाना खाते हैं आलू, चावल, कभी मछली। और इनकी कोशिकाओं में वसा की अधिकता कभी नहीं होती क्योंकि खाने और काम का अनुपात आदर्श है।

भारत के बारे में बताते हुए वे कहते हैं
डॉ पापे- भारत में भी पिछले सौ साल यही व्यवस्था थी। लोग अनाज जैसे गेहूँ की रोटी के रूप में और छिलके वाला अनाज जैसे कि दालें खाते रहे हैं और फली खाते रहे हैं तथा चावल के साथ दाल। यह बहुत ही अच्छा शाकाहारी मिश्रण है उच्च स्तर का प्रोटीन जो कि मांस से मिलने वाले प्रोटीन से कहीं बेहतर है।

डॉ. पापे का कहना है कि दिन में आप भरपेट लेकिन नियम से सिर्फ तीन बार खाएँ और सुबह प्रोटीन वर्जित है। रात को कार्बोहाइड्रेट और मीठा यानी गेहूँ और मिठाई का प्रयोग न करें। केवल प्रोटीन का सेवन अर्थात दाल, सब्जी दही, दूध अंडे या मछली खाएँ और देखिए कैसे भागता है मोटापा दूर। (जर्मनी बॉन)

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