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सुशील 'नजफगढ़ के नए सुल्तान' बने

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नई दिल्ली (भाषा) , बुधवार, 20 अगस्त 2008 (21:14 IST)
नजफगढ़ से भारतीय क्रिकेट को वीरेंद्र सहवाग जैसा नायाब हीरा मिला लेकिन दिल्ली के सुदूर पश्चिम में बसा यह इलाका आज पहलवान सुशील कुमार के कारण चर्चा में है जो बीजिंग ओलिम्पिक खेलों में काँस्य पदक जीतकर 'नजफगढ़ के नए सुल्तान' बन गए हैं।

नजफगढ़ इलाके एक गाँव दापरोला में 1982 में जन्में सुशील ने बीजिंग में आज जैसे ही 66 किग्रा फ्रीस्टाइल में कजा‍खिस्तान के लियोनिड स्प्रिडोनोव पर जीत दर्ज करके काँस्य पदक जीता उनके घर में बधाई देने वालों का ताँता लग गया। लोग ढोल-मंजीरे बजाने लगे और मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लगने लगा।

सुशील के पिता दीवानसिंह और माता कमला ने आज अपने बेटे की इस महान उपलब्धि पर मिठाई बाँटकर सबका स्वागत किया। सुशील तीन भाईयों के परिवार में सबसे बड़े हैं। वह बचपन से कुश्ती के दीवाने थे और शुरू से ही उनका लक्ष्य ओलिम्पिक में पदक जीतना था।

उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की लेकिन वह बचपन से ही महाबली सतपाल से जुड़ गए थे, जिन्होंने उनके कौशल को निखारने में अहम भूमिका निभाई।

रेलवे के कार्यरत और महाबली सतपाल के शिष्य सुशील ने 2006 में दोहा एशियाई खेलों में काँस्य पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था।

दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में प्रतिदिन सुबह पाँच बजे से कुश्ती के दाँवपेच सीखने वाले अर्जुन पुरस्कार विजेता सुशील ने अगले ही साल मई 2007 में सीनियर एशियाई चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता और फिर कनाडा में आयोजित राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया।

अजरबेजान में हुई विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में सुशील हालाँकि आठवें स्थान पर पिछड़ गए थे लेकिन उसने यहीं से बीजिंग ओलिम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई कर लिया था।

ओलिम्पिक खेलों के लिए पटियाला के राष्ट्रीय क्रीडा संस्थान में विदेशी कोच से ट्रेनिंग लेने वाले सुशील ने इस साल कोरिया में आयोजित सीनियर एशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप में काँस्य पदक जीता था।

एमटीएनएल में कार्यरत सुशील के पिता दीवानसिंह ने अपने पुत्र सुशील कुमार के ओलिम्पिक काँस्य जीतने पर बधाई देने वाले सभी लोगों का धन्यवाद अदा किया।

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